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Friday, 22 November, 2024
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बस्तर स्थित स्टील प्लांट के निजीकरण के विरोध में आदिवासी नेताओं की चेतावनी, एस्सार और टाटा को रोका आगे भी रोकेंगे

बस्तर में पहले भी निजी कंपनियों ने घुसने का प्रयास किया था लेकिन सफल नही हुई. प्रदेश के आदिवासी नेताओं ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर प्लांट को अधिग्रहित करने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाया जाएगा.

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रायपुर: बस्तर स्थित नेशनल माइनिंग डेवलपमेंट कारपोरेशन (NMDC) के नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण का मामला एक बार फिर गरमाने लगा है. इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेताओं ने भी इसके खिलाफ लड़ाई छेड़ने के लिए हुंकार भरनी शुरू कर दी है.

नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण के विरोध में प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा पत्र लिखे जाने के बाद प्रदेश के आदिवासी नेताओं ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि स्टील प्लांट के निजीकरण का पुरजोर विरोध किया जाएगा.

इन नेताओं ने कहा है कि बस्तर में पहले भी निजी कंपनियों ने घुसने का प्रयास किया था लेकिन सफल नही हो सकीं और आगे भी ऐसा ही होगा.

आदिवासी नेताओं ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर प्लांट को अधिग्रहित करने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाया जाएगा.

दिप्रिंट से बात करते हुए अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष मनीष कुंजाम ने बताया, ‘बस्तर में हम किसी बड़े कॉर्पोरेट को घुसने देना नही चाहते हैं. हमने पहले भी एस्सार और टाटा जैसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और वापस भेजा है. आगे भी लड़ेंगे.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम इस दिशा में जल्द सर्व आदिवासी समाज की एक बैठक बुलाएंगे और आने वाले दिनों में इसके विरोध और आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी.’

निजीकरण का विरोध करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने कहा,’ मैं इस बात की शुरू से वकालत करता रहा हूं कि प्राइवेट इंडस्ट्री ट्राइबल एरिया में नहीं लगनी चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने नगरनार के प्लांट का विरोध इसलिए नहीं किया था क्योकि वह एक सार्वजनिक उपक्रम था. इसमें सभी वर्गों का इंटरेस्ट सेफ होता है. स्थानीय ग्रामसभा ने भी अपना अनुमोदन पब्लिक सेक्टर की वजह से दिया था जो सरकार के रिकॉर्ड में है.’

नेताम कहते हैं, ‘इससे पहले टाटा जैसे उद्योग घराने को यहां से वापस जाना पड़ा था. विरोध और आंदोलन तो होगा, कोई चाहे कितनी भी तैयारी करे. नगरनार प्लांट को निजी हाथों में नहीं दिया जा सकता, इससे आदिवासियों का शोषण होगा.’

26 अगस्त के अपने पत्र में, बघेल ने लिखा है कि इस कदम से आदिवासी समुदाय की अपेक्षाओं को ठेस पहुंचेगी जब राज्य माओवादी गतिविधियों को रोकने में सफल रहा है.

27 अगस्त को, केंद्र के स्वामित्व वाली एनएमडीसी ने तीन मिलियन टन के संयंत्र को ध्वस्त कर दिया – जो जिला मुख्यालय से लगभग 16 किमी दूर स्थित है और आयोग के पास है – निजीकरण की दिशा में पहला कदम क्या हो सकता है.


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क्या भाजपा और कांग्रेस कह रही है

बस्तर के कांग्रेस विधायक लखेश्वर बघेल का कहना है, ‘आजादी के बाद क्षेत्र में पहली बार कोई प्लांट डल रहा है. इसमें बस्तर के लोगों का विश्वास है. लेकिन निजिकरण हो गया तो यह विश्वास खत्म हो जाएगा.’

बघेल आगे कहते हैं, ‘इसके खिलाफ बस्तर का पूरा आदिवासी समाज और अन्य बस्तरवासी मिलकर एक बड़ा आंदोलन करेंगे जिससे केंद्र सरकार को बहुत नुकसान उठाना पड़ सकता है. भविष्य में कोई इंडस्ट्री या छोटे प्लांट भी नही लग पाएंगे’.

लोक सभा सांसद और भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविचार नेताम ने केंद्र सरकार का बचाव करते हुए यह आश्वासन दिया कि मोदी सरकार ऐसा कोई निर्णय नहीं लेगी जिससे बस्तर की जनता का अहित हो.

नेताम कहते हैं, ‘नगरनार स्टील प्लांट  प्रदेश और बस्तर की जनता के लिए बहुत ही संवेदनशील और ज्वलंत मुद्दा है जो पहले भी उठा था. इस संबंध में भाजपा सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल पिछली सरकार में केंद्रीय इस्पात मंत्री से मिला था लेकिन बात निकालकर आई कि सरकार की ऐसी कोई नीति नही है.’

नेताम आगे कहते हैं,’कुछ लोग निजीकरण की बातें बार बार उठाते हैं. विधानसभा चुनाव 2018 से पहले भी ऐसा हो चुका है लेकिन यह वास्तविकता से परे था.’

वहीं भाजपा के अन्य आदिवासी नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा,’ केन्द्र में हमारी सरकार है इसलिये सार्वजनिक रूप से हमें उसके साथ रहना पड़ेगा लेकिन यदि नगरनार प्लांट का निजीकरण हुआ तो वक्त आने पर सभी आदिवासी नेताओं को जनता के साथ ही जाना पड़ेगा.’

भाजपा के इस पूर्व विधायक ने कहा, ‘प्लांट बंद हो सकता है लेकिन बस्तर में निजी कंपनी काम नहीं कर सकती.’

बस्तर जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर दूर  एनएमडीसी का निर्माणाधीन नगरनार स्टील प्लांट अपने अंतिम चरण में है.

क्या है पूरा मामला

हाल में यह मुद्दा एक बार फिर गरमाने लगा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर बताया कि केंद्र सरकार नगरनार स्टील प्लांट निजी हाथों में देने की तैयारी कर रही है जिसे रोकने के लिए उन्होंने उसे एक पत्र लिखा है.

बता दें कि इससे पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर में टाटा स्टील्स और एस्सार ग्रुप द्वारा बड़े स्टील प्लांट लगाने की कवायद की गयी थी लेकिन स्थानीय जनता के विरोध के चलते दोनों कंपनियों को अपना कारोबार समेटना पड़ा था.

एस्सार ग्रुप द्वारा बैलाडीला में 30.5 लाख टन और टाटा स्टील्स द्वारा लोहंडीगुड़ा में करीब 30 लाख टन क्षमता का प्लांट स्थापित करने की योजना थी. टाटा स्टील से तो भूपेश बघेल सरकार ने सत्ता में आने बाद अधिग्रहित जमीन भी वापस ले ली थी. आदिवासियों के विरोध के चलते एस्सार को जमीन ही नही मिल पायी थी.

करीब 20,000 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना के निजीकरण की बात  2016 में शुरू हुई थी. करीब 30 लाख टन इस्पात के सालाना क्षमता वाले निर्माणाधीन इस प्लांट के लिए एनएमडीसी ने कुल 610 हेक्टेयर निजी भूमि सार्वजनिक उपयोग के नाम से 2010-2011 में अधिग्रहित की थी. इसके अलावा करीब 211 हेक्टेयर भूमि आज भी राज्य सरकार के स्वामित्व वाली है जिसमें सिर्फ 27 हेक्टर भूमि  एनएमडीसी को 30 साल के लीज पर दी गई गई.

मोदी सरकार ने अपने पहले चरण में नीति आयोग की हरी झंडी के बाद यह निर्णय लिया था. हालांकि तत्कालीन राज्य सरकार ने केंद्र से अपने निर्णय  को वापस लेने के लिए आग्रह किया था लेकिन उसकी नहीं सुनी गई.

वर्ष 2016 में नगरनार के निजीकरण की बात काफी आगे तक बढ़ गयी थी लेकिन बाद में जनता के भारी विरोध और अनुसूचित क्षेत्र की संवैधानिक वैद्यता (PESA act -पेेसा अधिनियम) की वजह से केंद्र सरकार इसे अपने अंजाम तक नही ले जा सकी.


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राज्य सरकार पर बनाया जाएगा दबाव

कुंजाम का कहना है कि मुख्यमंत्री के नगरनार के निजीकरण को रोकने का आग्रह मात्र दिखावा है.

महासभा के अध्यक्ष का कहना है,’ यदि बघेल अपनी बात पर गंभीर हैं तो उन्हें केंद्र से प्लांट को राज्य सरकार को देने के लिए कहना चाहिए. राज्य सरकार को इसे लेने के लिए आगे आना चाहिए. आदिवासी समाज इसके लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाएगा.

कुंजाम की बात का समर्थन करते हुए लखेश्वर बघेल कहते हैं,’यदि केंद्र का समर्थन मिले और वह इसे विधिवत राज्य के हवाले करे तो हमारी सरकार नगरनार स्टील प्लांट को ले सकती है.’

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