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Wednesday, 20 November, 2024
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राम मंदिर भूमि पूजन देश के लिए ‘सिविलाइजेशन मोमेंट’ था, दुनिया को संदेश है कि हम सनातन धर्म हैं और जिंदा हैं: लेखक अमीश त्रिपाठी

ऑफ द कफ के 100वें संस्करण में दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ हुई बातचीत में त्रिपाठी ने सेक्युलरिज्म को विदेशी विचार और भारतीय संस्कृति को बहुलतावादी कहा.

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नई दिल्ली: जाने-माने लेखक अमीश त्रिपाठी ने सोमवार को कहा कि 5 अगस्त को अयोध्या में आयोजित किया गया राम मंदिर भूमि पूजन भारत में सिविलाइजेशन मोमेंट था.

डिजिटल शो ऑफ द कफ के 100वें संस्करण में दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ हुई बातचीत में त्रिपाठी ने इस समारोह में पीएम मोदी के शामिल होने की आलोचना को लेकर अपनी बात रखी. कई लोगों ने तर्क दिए थे कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के पीएम को इस तरह के धार्मिक आयोजन में हिस्सा नहीं लेना चाहिए था.

त्रिपाठी कहते हैं, ‘मैं एक डिप्लोमैट हूं तो कह सकता हूं कि ये भारतीयों के लिए सिविलाइजेशनल मोमेंट था. ये दुनिया को एक संदेश देता है कि हम सनातन धर्म हैं और हम ज़िंदा हैं.’

वो आगे जोड़ते हैं, ‘कम्युनिटी गिल्ट और विक्टिमहुड से कोई फायदा नहीं हुआ था.’

‘अतीत के घावों को संबोधित करना आवश्यक हो जाता है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो परंपरावादी हैं लेकिन 200 साल पहले या 1,000 साल पहले किए जा सकने वाले काम के लिए आज किसी के खिलाफ नफरत फैलाने का कुछ हासिल नहीं है. हमें व्यावहारिकता की भी जरूरत है.’ उन्होंने कहा.

राम मंदिर उस विवादित क्षेत्र पर बनाया गया है जहां पहले एक मस्जिद को नष्ट कर दिया गया था. इस बात को लेकर त्रिपाठी ने कहा कि सच बोलने की ज़रूरत है.

उनके मुताबिक़, ‘हमें सच बोलना होगा और घृणा को न बढ़ाते हुए सामंजस्य स्थापित करना होगा. हमें सच बोलने और इसके साथ शांति बनाने की जरूरत है.’

साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भी सराहना की जिसमें केंद्र सरकार को एक मस्जिद के लिए अलग भूमि आवंटित करने का निर्देश दिया गया था. त्रिपाठी कहते हैं कि अब हमारा फोकस यूनिटी पर होना चाहिए. एक मस्जिद के लिए भूमि आवंटित की गई है. हमें एकजुट होने का रास्ता खोजना होगा. पानीपत की तीसरी लड़ाई से ही भारतीयों को हार का सामना पड़ा है क्योंकि हम आपस में ही बंटे हुए थे. अब हमें एक होने, रास्ते खोजने की ज़रूरत है.’

‘देश की रक्षा के लिए हिंसा जायज है’

अमीश त्रिपाठी की किताबें भारतीय पौराणिक कथाओं और परंपराओं पर आधारित हैं. वो जिक्र करते हैं कि भारत का इतिहास भले ही अहिंसा वाला रहा हो लेकिन ज़रूरत पड़ने पर भारत पीछे भी नहीं हटता है.

वो जोड़ते हैं, ‘भारत में दुनिया की सबसे पुरानी शांतिवादी धर्म जैन की परंपरा है लेकिन अपने डिफेंस में हिंसा जायज है. हम पहले हमला नहीं करेंगे लेकिन हम पर हमला होने पर हम लोग चुप भी नहीं बैठेंगे. साधारण नागरिकों को अहिंसक होना चाहिए लेकिन अगर स्टेट भी अहिंसक हो जाता है तो उस स्टेट को जीतना आसान हो जाता है. इसलिए देश की रक्षा के लिए हिंसा जायज है.’

उन्होंने यह भी कहा कि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा एक पश्चिमी विचार है जबकि भारतीय संस्कृति बहुलवाद को बढ़ावा देती है.

‘धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी अनुभव से आती है क्योंकि यह चर्च के खिलाफ एक विद्रोह के रूप में उभरा हुआ विचार था. बहुलवाद भारत के लिए ज़्यादा उपयुक्त शब्द है. धर्म सिर्फ़ धर्म नहीं है बल्कि यह जीने का सही तरीका भी है. भारतीय दृष्टिकोण का अर्थ सभी धर्मों के लिए समान सम्मान है और भारतीय परंपरा बहुवादी है.’

उनके अनुसार, ‘यह बहुलवाद ही भारत को ‘अशोकन स्टेट’ की बजाय ‘चाणक्यन स्टेट’ के तौर पर स्थापित करता है. ‘चाणक्य राज्य’ का मतलब एक न्यूनतम राज्य है जिसमें बहुलवाद शामिल है. दूसरी ओर ‘अशोक राज्य’ का मतलब है कि हर चीज में हस्तक्षेप और कोई बहुलवाद नहीं.’

क्या आज हिंदुत्व को एक राजनीतिक अर्थ के साथ गलत समझा गया है के सवाल पर त्रिपाठी कहते हैं कि हिंदुत्व का अर्थ है- ‘हिंदू धर्म के सार के रूप में हिंदुत्व शब्द निकला है. तत्व का अर्थ है- सार.’

‘औरंगज़ेब की तारीफ़ करना हिटलर की तारीफ़ करने जैसा है’

इस बातचीत में, त्रिपाठी ने भारत में ‘मुस्लिम आक्रमण’ को दोबारा से रिब्रांड करने की बात पर ज़ोर दिया. वो कहते हैं, ‘यदि आप ब्रिटिश शासन को ‘ईसाई शासन’ नहीं कहते हैं तो आप तुर्की शासन को ‘इस्लामी शासन’ क्यों कहते हैं? तुर्कों ने केवल भारत में मंदिरों को नष्ट नहीं किया बल्कि उन्होंने हर जगह ऐसा किया. हमें निष्पक्ष होकर और सच्ची आंखों से अतीत को देखना चाहिए.’

वो आगे जोड़ते हैं कि क्लॉज़र के लिए भारतीयों के लिए सच्चाई और सामंजस्य महत्वपूर्ण है.

साथ ही उनका मानना है, ‘भारत में औरंगज़ेब की प्रशंसा करना इजराइल में हिटलर की प्रशंसा करने जैसा है. भारत को इन सच्चाइयों को स्वीकार करने और वैश्विक शक्ति बनने के लिए आगे बढ़ने का रास्ता खोजने की जरूरत है.’

एक लेखक के रूप में, उन्होंने यह भी कहा कि वे अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. वो कहते हैं, किसी भी समाज के स्थिर, स्वतंत्र और इनोवेटिव होने के लिए उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जश्न मनाना चाहिए. मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी का शिकार रहा हूं. मुझे अपनी पहली पुस्तक प्रकाशित करने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा.’

आख़िर में वो कहते हैं, ‘हमें अपनी अदालतों पर बोझ को कम करना होगा ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के मामलों की सुनवाई हो सके. अगर हम अदालत की क्षमता का निर्माण करते हैं तो हमारी जीडीपी में भी सुधार होगा, अपराध दर में गिरावट आएगी और हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा होगी.’

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1 टिप्पणी

  1. अमीश त्रिपाठी जी
    आपकी किताब मेलुहा का मिर्तुंजय सीरीज पढ़ कर बहुत ही आनंद आया।किसी भी व्यक्ति के सकरात्मक और नकारात्मक पहलू होते है।औरंगजेब के भी कुछ सकारात्मक पहलू है।उन्हें पढा जाना चाहिए।मुगलो में कुछ तो खाश होगा जिसने पूरे भारत मे शासन किया।
    जब मैं दिन्दू,हिंदुत्व, हिन्दुराष्ट्र व सनातनी के बारे में सुनता हूँ तो मुझे बहुत ही क्रूरतम वर्णव्यस्था याद आ जाती है जो जन्म आधारित है।इसी दुनिया के इकलौते धर्म मे जाति वेवस्था भी अंतर्निहित है।जो आज भी पूरे देश मे जातिय हिंसा और जाति आधारित सामुहिक दुष्कर्म बखूबी दिखती है।

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