सांसदों ने सीमा पर चीन की घुसपैठ और उसकी नीयत को लेकर बार-बार सवाल उठाए हैं. मुश्किल ये है कि संसद में हुई बहसों को गंभीरता से लेने का चलन खत्म हो चुका है. ये लापरवाही सिर्फ सरकार की ही नहीं मीडिया की भी है, क्योंकि ऐसी बहस और सवाल कभी उभरकर सामने नहीं आते. संसद के पिछले कुछ साल की कार्यवाहियों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न दलों के सांसदों ने चीन को लेकर सरकार को कई बार आगाह किया है.
अरुणाचल पूर्व के सांसद निनोंग इरिंग ने 7 जुलाई 2014 को लोकसभा में कहा कि जम्मू कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश का नक्शा चीन के हिस्से में दिखाया गया है. उन्होंने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही चीन लगातार घुसपैठ कर रहा है. उन्होंने कहा कि हम प्रधानमंत्री व विदेशमंत्री से जानना चाहते हैं कि चीन क्यों इसे अपना इलाका मानता है. ये मामला उन्होंने 2018 मे भी उठाया था, जब उन्होंने चीनी सेना की अरुणाचल प्रदेश के में गतिविधियों के बारे में सरकार को आगाह किया था.
22 जुलाई 2014 को केरल के वडाकरा लोकसभा क्षेत्र के सांसद रामचंद्रन मुलापल्ली ने चीन के सवाल पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से और उसके अरुणाचल प्रदेश पर दावे, पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की उपस्थिति और सड़कें व अन्य बुनियादी और उसके अरुणाचल प्रदेश पर दावे, पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की उपस्थिति और सड़कें व अन्य बुनियादी संसाधन विकसित करने को लेकर सवाल उठाया और सरकार से इस मसले पर स्पष्टीकरण मांगा और जानना चाहा कि ब्राजील में ब्रिक्स की बैठक में प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री की अपने चीनी समकक्षों के साथ बातचीत में क्या परिणाम निकला.
उसके बाद 4 दिसंबर 2014 को दार्जिलिंग के सांसद एसएस अहलूवालिया ने इस बात को लेकर सवाल उठाया कि चीन की आधिकारिक न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान के रूप में दिखाया है, जबकि 10 साल पहले पाकिस्तान ने गिलकित औऱ बाल्टिस्तान क्षेत्र को लेकर चीन के साथ समझौता किया था. उस समय जब भारत ने इसका विरोध किया, तो आखिरकार चीन ने कहा कि हम भारत और पाकिस्तान के बीच क्षेत्र को लेकर जो विवाद चल रहा है. उसमें नहीं पड़ेंगे.
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इस बीच, 5 मई 2016 को कटक के सांसद भर्तृहरि महताब ने चीन के असंतुष्ट नेता डॉकुन ईसा को वीजा दिए जाने और उसे रद्द किए जाने के भारत सरकार के ढुलमुल रवैये पर सवाल उठाए. साथ ही उन्होंने मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की भारत की कवायदों में चीन द्वारा अड़ंगा लगाए जाने को लेकर भी नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि चीन के मामले में हम इतने असहाय क्यों हैं, चीन को लेकर स्पष्ट नीति बनाए जाने की जरूरत है.
चीन और पाकिस्तान के तेवर को लेकर चिंता
बहरामपुर के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने 25 जुलाई 2016 को लोकसभा में कश्मीर में खराब होती स्थिति को लेकर चिंता जताई और कहा कि चीन भी कड़े तेवर दिखा रहा है औऱ हमें हिदायत दे रहा है. उन्होंने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा ‘हम सब सदन में चर्चा करते रहें और बाहर कभी हाफिज और कभी शरीफ पाकिस्तान में भाई-भाई मिलकर हिंदुस्तान के खिलाफ जंग छेड़ने की धमकी दे रहे हैं और हमारे यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई चुप्पी साधे हुए हैं.’
29 जुलाई 2016 को अरुणाचल पूर्व के सांसद निनोंग इरिंग ने चीन के जांग्मू हाइड्रो प्रोजेक्ट को लेकर सवाल उठाया, जिसकी वजह से न केवल तिब्बत और ज्ञाका इलाके में पर्यावरण प्रभावित हो रहा है. बल्कि निचले इलाके असम, अरुणाचल प्रदेश व अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ का खतरा होगा. उन्होंने कहा कि डागू, जिक्सू, जीच्या आदि इलाकों में भी इस तरह के डैम बनने जा रहे हैं और अक्टूबर 2016 में गोवा में होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री व विदेशमंत्री को यह मसला उठाना चाहिए, जिससे पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ की समस्या का समाधान हो सके.
मुलायम सिंह यादव की चेतावनी
समाजवादी पार्टी के नेता और आजमगढ़ से सांसद मुलायम सिंह यादव ने 19 जुलाई 2017 को कहा, ‘आप सदन की कार्रवाई देख लें. मैं कितनी बार बोल चुका हूं कि चीन हमारा दुश्मन है, पाकिस्तान नहीं. पाकिस्तान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.’
मुलायम सिंह ने कहा कि चीन ने पाकिस्तान को अपने पक्ष में कर लिया है और वह भारत के खिलाफ साजिश कर रहा है. कश्मीर में पाकिस्तान के साथ चीनी सेना और चीनी हथियार भी लड़ाई के लिए उतर गए हैं और तिब्बत की सीमा पर चीन युद्धाभ्यास कर रहा है. भूटान और सिक्किम की रक्षा करना भारत की जिम्मेदारी है.
डोकलाम में चीन की गतिविधियों को लेकर 3 महीने बीतने पर 25 जुलाई 2017 को दमदम से सांसद सौगात राय ने सदन में कहा कि सड़क बनाकर चीन अपने इलाके का विस्तार कर रहा है. भारत के सुरक्षा बलों ने उसे सड़क बनाने से रोक दिया है. उन्होंने कहा कि चीन के सभी 14 पड़ोसी देशों के साथ कुछ न कुछ सीमा का विवाद है और किसी से उसका मित्रवत संबंध नहीं है. राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हैंबर्ग में हुई बैठक का ब्योरा मांगा.
2 अगस्त 2017 को झंझारपुर के सांसद वीरेंद्र कुमार चौधरी ने भी डोकलाम में भारत-चीन की सेनाओं के आमने-सामने डटे होने को लेकर चिंता जताई.
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वहीं 4 जनवरी 2018 को केरल के कोल्लम लोकसभा क्षेत्र से सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने उत्तरी अरुणाचल प्रदेश में चीन की सेना भारतीय इलाके में घुसने को लेकर सवाल उठाए और कहा कि चीन ने इस इलाके में एक किलोमीटर सड़क बना ली है. उन्होंने कहा कि डोकलाम में आक्रामकता दिखाने के बाद चीन की सेना ने अपर सियांग जिले में भी घुसपैठ की है. इस बीच चीन के आधिकारिक प्रवक्ता जेंग एस हुआंग ने खुले तौर पर कहा कि चीन की सरकार ने अरुणाचल प्रदेश को कभी मान्यता नहीं दी है.
इस साल भी उठा है चीन का मुद्दा
2019 में मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद भी चीन का मसला चलता रहा. 17 जुलाई 2019 को बहरामपुर के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि डोकलाम में 73 दिन तक चली खींचतान कम होते ही चीन की सेना 6 जुलाई को लद्दाख के डेमचेक इलाके में 6 किलोमीटर अंदर भारतीय सीमा में घुस आई, जहां भारत के लोग दलाई लामा का 84वां जन्मदिन मना रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच 4,000 किलोमीटर की सीमा है और चीन मैकमोहन रेखा का पालन नहीं कर रहा है.
उस समय केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 2018 में वुहान शहर में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति की शिखर वार्ता के बाद दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को रणनीतिक दिशानिर्देश जारी किए हैं ताकि दोनों देशों की सीमाओं पर बेहतर संवाद और विश्वास कायम हो सके.
अरुणाचल पूर्व के सांसद तापिर गाव ने 19 नवंबर 2019 को अरुणाचल प्रदेश के असाफिला, ओलमाजा, आतूपूपू दिबांग वैली सहित 50-60 किलोमीटर इलाके पर चीन द्वारा कब्जा कर लेने का मसला उठाया.
बहरामपुर के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने 4 दिसंबर 2019 को तापिर गाव से सहमति जताते हुए जब यह मसला उठाया तो जवाब में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘सीमा सुरक्षा को लेकर हमारी सेनाएं पूरी तरह चौकस हैं और पूरी मुस्तैदी से हमारी सीमाओं की सुरक्षा कर रही हैं. मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि सीमा को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है.’
चीन को लेकर गफलत पुरानी
केवल नरेंद्र मोदी सरकार ने ही चीन के मसलों को लेकर ढीला रवैया नहीं अपनाया था. बल्कि इसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का भी ढुलमुल रवैया रहा है. 1950 में तिब्बत पर चीन ने कब्जा कर लिया. भारत हमेशा तिब्बत की सरकार को अलग मान्यता देता रहा. जून 2003 में चीन की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन के साथ एक समझौता किया. समझौते में दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़ाने पर जोर दिया गया और तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया गया. उस समय भी समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सोमनाथ चटर्जी ने सरकार के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि अगर हमने तिब्बत दे दिया तो चीन को हिंदुस्तान में घुसने का सीधा रास्ता मिल जाएगा.
(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)