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Sunday, 5 May, 2024
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कोरोना से जंग के बीच राष्ट्रीय पटल पर उभरे उद्धव ठाकरे

उद्धव ठाकरे एक ऐसे नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं, जो केंद्र सरकार और बीजेपी से उनके ही तौर-तरीकों से निपट रहे हैं. बीजेपी के दांव उद्धव पर काम नहीं आ रहे हैं.

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महाराष्ट्र सरकार ने बांद्रा उपद्रव और पालघर साधु हत्याकांड से लेकर आईटी सेल/सोशल मीडिया के हमलों व केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से जिस तरह से निपटा है, उसकी वजह से उद्धव ठाकरे राष्ट्रीय स्तर पर उभरकर सामने आए हैं. कोरोनावायरस से लेकर सांप्रदायिकता से निपटने तक उद्धव ने एक नया प्रशासनिक मॉडल पेश किया है. हालांकि उनके सामने महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों को नियंत्रित करने की एक बड़ी चुनौती भी है.

बांद्रा स्टेशन का मामला

बांद्रा स्टेशन पर जब विस्थापित मजदूरों की भीड़ जमा हुई और वे घर जाने के लिए ट्रेन की मांग करने लगे, तो राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे का वो चेहरा नजर आया जो शिव सेना नेता के पारंपरिक चेहरे से अलग था. मुख्यमंत्री ने हिंदी में अपना संबोधन किया. स्वाभाविक है कि उनका ध्यान इस बात पर था कि घर जाने की मांग करने के लिए स्टेशन पर जुटे लोगों में यूपी और बिहार तथा उत्तर भारतीय लोग ज्यादा हैं. उद्धव ठाकरे ने एक सधे हुए नेता के रूप में अपनी बात रखी. मजदूरों को मुंबई से न जाने की अपील करते हुए उन्होंने कहा, “चुनौती यहीं रहकर कोरोना वायरस से निपटने की है… सरकार जो भी कर रही है, वह आपके भले के लिए है. सरकार इस पर काम कर रही है कि लॉकडाउन कैसे खत्म किया जाए और औद्योगिक गतिविधियां बहाल हों. हमने आर्थिक मोर्चे पर काम करने के लिए समितियां बनाई हैं कि कौन सी औद्योगिक इकाइयाँ शुरू की जा सकती हैं.’ अपने संबोधन में वह मजदूरों के साथ खड़े रहे, कहीं भी भीड़ के रूप में जुटने के लिए जनता को दोषी नहीं ठहराया.

महाराष्ट्र सरकार ने अफवाह फैलाने के आरोपी चैनल के रिपोर्टर, सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों को घेरा, न कि भीड़ जमा होने के लिए जनता को दोषी ठहराया.

पालघर की घटना

उसके बाद हुई पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या की घटना. कुछ समाचार चैनलों सहित सोशल मीडिया पर इस तरह तूफान फैलाया गया जिससे ये ध्वनि आई कि पालघर में हिंदू साधुओं की हत्या किसी और धर्म वालों ने कर दी है. महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने तत्काल ट्वीट किया कि पालघर में मरने और मारने वाले दोनों एक ही धर्म के हैं. इसके अलावा उन्होंने इस घटना में गिरफ्तार आरोपियों की पूरी सूची जारी कर दी. उद्धव ठाकरे ने सार्वजनिक बयान देकर कहा कि बीजेपी इस मामले को सांप्रदायिक रंग दे रही है. उसके बाद इस मसले पर सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने और उद्धव को निशाना बनाने वालों की सरकार ने धर पकड़ शुरू की और बड़े पैमाने पर लोग गिरफ्तार हुए. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बहाने उद्धव ठाकरे को चुनौती देने वाले एक चैनल के एंकर पर भी सरकार सख्त नजर आई और लंबी पूछताछ हुई.


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ठाकरे का मुख्यमंत्री पद और उनका विधायक बनना

उद्धव इस समय किसी भी सदन (विधानसभा या विधान परिषद) के सदस्य नहीं हैं. मुख्यमंत्री बने रहने के लिए जरूरी है कि वे विधायक बनें. महाराष्ट्र कैबिनेट ने उन्हें विधानपरिषद में मनोनीत करने का प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा. राज्यपाल ने उस पर कोई फैसला नहीं किया. उसके बाद मंत्रिमंडल ने दोबारा प्रस्ताव पारित करके राज्यपाल के पास भेजा. उस पर भी राज्यपाल की ओर से फैसला नहीं करने पर यह कयास लगाया जाने लगा कि ठाकरे को केंद्र सरकार कानूनी तरीके से निपटा देना चाहती है. उन्हें कानून के मुताबिक 27 मई तक विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता हासिल करनी है. राज्यपाल उनके मनोनयन की फाइल दबाए हुए थे. चुनाव आयोग ने घोषणा कर रखी है कि कोविड-19 के चलते कोई भी उपचुनाव नहीं होगा. ऐसे में उद्धव की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ही बन आई. उन्होंने इस मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की. उसके बाद महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य में विधानपरिषद का चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखा. उसके एक दिन बाद ही चुनाव आयोग ने विधानपरिषद चुनाव कराने की अनुमति दे दी.

उत्तर प्रदेश में साधुओं की हत्या

बुलंदशहर जिले में शिवमंदिर में 10 साल से पूजा पाठ करा रहे दो साधुओं की 27 अप्रैल 2020 को रात में मंदिर परिसर में हत्या कर दी गई. दूसरे दिन मंगलवार को गांववालों को साधुओं के खून से लथपथ शव मिले. इलाके में आक्रोश हो गया. हालांकि इस मामले को मीडिया ने पालधर मामले की तरह तूल नहीं दिया. पालघर मामले में उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ इतने सक्रिय थे कि उन्होंने उद्धव ठाकरे को फोन कर साधुओं की हत्या पर त्वरित कार्रवाई की मांग कर डाली थी. सरकार ने जवाब भी दिया कि गांव वालों ने चोर समझकर साधुओं को पीट कर मार डाला और इस मामले में बड़े पैमाने पर आरोपियों गिरफ्तारी की गई हैं.

जब बुलंदशहर की घटना हुई तो उद्धव ने तत्काल उसे लपक लिया. उन्होंने योगी आदित्यनाथ को फोन कर साधुओं की हत्या पर त्वरित कार्रवाई की मांग की.

आक्रामक हमले का हथियार

2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान ही नरेंद्र मोदी ने आक्रामक हमले का तरीका अपना लिया था. यह सिर्फ चुनावी जनसभाओं तक सीमित नहीं था. मोदी समर्थक विभिन्न नेताओं की जनसभा में पहुंच जाते थे और वहां हंगामा खड़ा करते थे, मोदी-मोदी के नारे लगाते थे. इसके अलावा सोशल मीडिया पर विपक्ष पर आक्रामक हमले शुरू हुए.

जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक के चरित्र हनन के वीडियो और टेक्स्ट मैसेज सर्कुलेट होने लगे, लेकिन कांग्रेस सरकार सोती रही. कभी उसने यह कवायद नहीं की कि जाना जा सके कि इसका सूत्रधार कौन है. नेताओं के चरित्रहनन के मैसेज फैलाने वालों के खिलाफ कांग्रेस सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. उसके बाद बीजेपी सत्ता में आ गई और यह मामले और तेजी से बढ़ गए, चलते ही रहे. यहां तक कि विपक्ष या कांग्रेस शासित राज्यों में भी सोशल मीडिया पर विपक्षी नेताओं के हो रहे चरित्र हनन के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.


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अब उद्धव ठाकरे ने वह ट्रेंड बदल दिया है. न सिर्फ सोशल मीडिया पर ऊल जुलूल मैसेज भेजने वालों के खिलाफ एफआईआर हो रहे हैं, बल्कि शिवसेना भी उनसे निपट रही है.

कोरोना से निपटने की चुनौती

मुंबई में न सिर्फ देश भर के विस्थापित श्रमिक बड़ी संख्या में मौजूद हैं, बल्कि आर्थिक राजधानी होने के कारण बड़े पैमाने पर वहां विदेशों से आवाजाही भी ज्यादा है. इसे देखते हुए मुंबई कोरोनावायरस के लिहाज से सबसे खतरनाक शहर है. मजदूरों के घर इतने छोटे हैं कि वहां शारीरिक दूरी रखना मुश्किल है. फरवरी में ही ठाकरे ने मुंबई के हवाईअड्डों पर जांच शुरू करा दी थी और लोगों को क्वारंटीन करना शुरू कर दिया था. हालांकि मुंबई हवाईअड्डे से अन्य राज्यों को जाने वाले लोगों पर काबू नहीं रखा जा सका, लेकिन मोदी सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के पहले ही महाराष्ट्र में हजारों की संख्या में लोगों की जांच हो चुकी थी और उन्हें क्वारंटीन कर दिया गया था.

राज्य में कोरोना फैलने के बीच महाराष्ट्र सरकार ने मजदूरों या मुसलमानों के खिलाफ घृणा नहीं फैलने दी. घृणा फैलाने वालों पर कठोर कार्रवाई की गई और चैनल व अखबारों ने भी ऐसे मामलों में बहुत संभलकर रिपोर्टिंग करना शुरू किया. एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ केंद्र की लड़ाई सुर्खियां बनती रहीं, वहीं उद्धव ने केंद्र से न तो कोई लड़ाई लड़ी और न ही केंद्र व राज्य के बीच जंग को सुर्खियां बनने दी. वह बहुत बारीकी से बीजेपी-आरएसएस के तौर तरीकों से केंद्र सरकार से सफलतापूर्वक निपटते रहे हैं.

उद्धव ऐसे नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं, जो केंद्र सरकार और बीजेपी के तौर तरीकों के खिलाफ उसी की भाषा में निपट रहे हैं. बीजेपी के दांव उद्धव पर काम नहीं आ रहे हैं. इसकी एक वजह मुंबई का आर्थिक राजधानी होना है, वहीं दूसरी वजह शिव सेना कार्यकर्ताओं की आक्रामकता है. वह सरकार से संसद से लेकर सड़क तक दो-दो हाथ करने को तैयार हैं.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)

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4 टिप्पणी

  1. This must be a joke! Maharastra is reeling under coronavirus infections and Uddhav has no clue. Yet the author is praising him.

  2. Aise ubhre ki cases chaaro or rukne ka naam nahi le rahi. Ubharta chaman aur ubharta sitara me fark aur uska sangyan lena shayad lekhika bhul gayi!

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