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Thursday, 21 November, 2024
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सन फार्मा को कोविड के इलाज के लिए पौधों पर आधारित डेंगू की दवा को टेस्ट की मंज़ूरी मिली

सन फार्मा ने कहा-एक्यूसीएच की इंसानी सुरक्षा जांच पहले ही पूरी, 12 केंद्रों में 210 मरीज़ों पर किए जाएंगे क्लीनिकल ट्रायल्स. दस दिन होगी इलाज की मियाद.

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नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी सन फार्मास्यूटिकल को, भारत के सर्वोच्च ड्रग नियामक निकाय से, पौधों पर आधारित एक दवा एक्यूसीएच के क्लीनिकल ट्रायल्स की मंज़ूरी मिल गई है, ये देखने के लिए कि क्या इससे कोविड-19 मरीज़ों का इलाज हो सकता है.

ये पहली फ़ाइटोफार्मास्यूटिकल ड्रग है, जिसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने, कोविड-19 के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए मंज़ूरी दी है. डेंगू के इलाज के लिए बन रही एक्यूसीएच, अभी परीक्षण के दौर में है.

शुक्रवार को जारी एक प्रेस वक्तव्य में कम्पनी ने कहा, ’12 केंद्रों में 210 मरीज़ों पर क्लीनिकल ट्रायल्स किए जाएंगे. मरीज़ के इलाज की मियाद 10 दिन होगी. क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे अक्टूबर 2020 तक आने की उम्मीद है.’

बयान में कहा गया, ‘एक्यूसीएच की इंसानी सुरक्षा जांच पहले ही पूरी कर ली गई है, और दूसरे दौर की स्टडी के लिए बताए गए डोज़ पर, दवा को सुरक्षित पाया गया है’.

दिप्रिंट ने अप्रैल में ख़बर दी थी, कि मुम्बई स्थित ड्रग निर्माता ने, डीसीजीआई को एक प्रस्ताव भेजा है कि वो, कोविड-19 के इलाज में ड्रग का असर देखने के लिए, सीमित बेतरतीब ट्रायल करना चाहती है.

कम्पनी पिछले चार साल से, बायोटेक्नोलॉजी विभाग के इंटरनेशनल सेंटर फॉर जिनेटिक इंजीनियरिंग एण्ड बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी-आईसीजीईबी), और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के सहयोग से, डेंगू के इलाज के लिए फाइटोकैमिकल पर आधारित ड्रग विकसित कर रही है.

सन फार्मा ये क्लीनिकल ट्रायल, डीबीटी-आईसीबीईबी और सीएसआईआर के सहयोग से करेगी.

डेंगू की दवा का होगा दूसरा उद्देश्य

कम्पनी ने कहा कि एक्यूसीएच ने इन-वीट्रो स्टडीज़ में, मोटे तौर पर वायरस रोधी असर दिखाया है, और इसलिए इसे कोविड-19 के इलाज के एक संभावित विकल्प के तौर पर परखा जा रहा है.

2006 के बाद से सन फार्मा, डेंगू के लिए एक फाइटोफार्मास्यूटिकल ड्रग विकसित करने में लगी है, और बहुत निकटता से बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी) के साथ मिलकर काम कर रही है, जो विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है.

बयान में सन फार्मा के प्रबंध निदेशक, दिलीप संघवी ने कहा, ‘ये पहली फाइटोफार्मास्यूटिकल ड्रग है, जिसे डीसीजीआई ने कोविड-19 के संभावित इलाज के तौर पर, क्लीनिकल ट्रायल की मंज़ूरी दी है.’

संघवी ने आगे कहा, ‘इटली की आईसीजीईबी के सहयोग से की गई इन-वीट्रो स्टडीज़ में, एक्यूसीएच ने सार्स-सीओवी-2 विरोधी असर दिखाए हैं. इन-वीट्रो और छोटे जीवों पर हुई स्टडीज़ से मिली जानकारी के साथ मिलकर, ये नतीजे हमें कोविड-19 मरीज़ों के इस संभावित इलाज का, मूल्यांकन करने का भरोसा देते हैं.’

बायोटेक्नोलॉजी विभाग की सचिव डॉ रेणु स्वरूप ने कहा, ‘डेंगू की एक सुरक्षित, कारगर, और सस्ती दवा विकसित करने के हमारे प्रयास, क़रीब 13 साल पहले शुरू हुए थे. सहयोगी टीम ने तेज़ी के साथ, कोविड-19 की दवा विकसित करने के लिए, स्टडीज़ शुरू कर दीं.’

‘कोविड व डेंगू के वायरस का व्यवहार एक सा’

प्लांट पर आधारित दवा सीसमपेलोस परैरा (सीपा) प्लांट का इस्तेमाल करके बनाई जाती है, जो सभी चार डेंगू वायरस सेरोटाइप्स के खिलाफ, वायरस-रोधी गतिविधि का एक क़ुदरती स्रोत होता है.

कम्पनी ने कहा था कि कोरोनावायरस और डेंगू फैलाने वाला वायरस, इंसानी शरीर के अंदर एक तरह का व्यवहार करते हैं.

2015 में पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस में छपी एक स्टडी के अनुसार, ‘विस्टर चूहों में बुख़ार कम करने के निहित गुण के अलावा, सीपा उनमें टीएनएफ-ए का बनना भी कम करती है, जो एक साइटोकाइन होता है, और गंभीर डेंगू की बीमारी में फंसा होता है. अहम बात ये है कि स्टडी में, जब उन्हें एक हफ्ते तक 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बॉडी वेट के हिसाब से, ऊंचा डोज़ दिया गया तो विस्टर चूहों के अंदर कोई ज़हर नहीं मिला.’

रिसर्च इस निष्कर्ष पर पहुंचा है, ‘डेंगू के इलाज की, एक सस्ती हर्बल दवा विकसित करने के लिए, सोर्स के तौर पर सीपा की जांच में और काम की ज़रूरत है. डेंगू महामारी और कम संसाधनों वाले भारत जैसे ग़रीब देश में, ये व्यावहारिक रूप से उपयुक्त हो सकता है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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