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Monday, 23 December, 2024
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सरकारों के संकटकाल में रिज़ॉर्ट होते मालामाल, ये न्यू इंडिया का लोकतंत्र है

15 दिनों से चल रही मध्य प्रदेश की इस सियासी उठापटक के बीच एक बार फिर होटल और रिज़ॉर्ट की राजनीति देखने को मिली है.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक अपने चरम पर है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बेंगलुरु पहुंचे बागी विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट भी मध्य प्रदेश सरकार को फ्लोर टेस्ट करने के संदर्भ में निर्णय दे सकता है. ऐसे में लोगों की पूरी निगाहें मध्य प्रदेश छोड़ बेंगलुरु के होटल में रह रहे बागी कांग्रेसी विधायकों पर लगी हुई हैं. अब यह विधाानसभा में बहुमत परीक्षण में ही नज़र आएगा कि यह विधायक किसके पाले में जाते हैं.

इधर, दिग्विजय सिंह को बेंगलुरु में विधायकों से नहीं मिलने दिए जाने के बाद राज्य के सीएम कमलनाथ ने कहा कि ज़रूरत हुई तो वह खुद वहां जाकर विधायकों से बात करेंगे.

15 दिनों से चल रही मध्य प्रदेश की इस सियासी उठापटक के बीच एक बार फिर होटल और रिज़ॉर्ट की राजनीति देखने को मिली है. ताज़ा मामले में ही मध्य प्रदेश भाजपा ने अपने विधायकों को हार्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए गुरुग्राम एक पांच सितारा होटल में रखा. वहीं विधानसभा सत्र के दिन वे भोपाल पहुंचे. जब विधानसभा में बहुमत परीक्षण नहीं हुआ तो फिर से भाजपा ने उन्हें भोपाल के पास सिहोर में एक बड़े होटल में ठहरा दिया है. इसका ज़िम्मा मध्य प्रदेश सरकार के एक पूर्व मंत्री को दिया गया है. यह होटल उन्हीं का है. वहीं कांग्रेस ने भी अपने विधायकों को बचाने के लिए जयपुर भेजा था. बाद में वे भी विधानसभा की कार्यवाही के लिए भोपाल पहुंचे थे.

जयपुर पहुंचे गुजरात के कांग्रसी विधायक

हाल ही में होने वाले राज्यसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी में तोड़फोड़ न हो इसके चलते गुजरात कांग्रेस के सभी विधायक जयपुर पहुंचे हैं. इनको दिल्ली रोड स्थित शिव विलास रिज़ॉर्ट में ठहराया गया है. चार राज्यसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में हॉर्स ट्रेडिंग के डर से कांग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर शिफ्ट किया है. विधायकों के शिफ्ट होने से पहले पांच विधायक कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं.

इससे पहले कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता अहमद पटेल की 2017 में राज्यसभा सीट के चुनाव के दौरान भी पार्टी ने अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए रिज़ॉर्ट में ठहराया था. सभी विधायकों को बेंगलुरु के पास एक रिज़ॉर्ट में ठहराया गया था. कांग्रेस का कहना था कि सभी विधायकों को धमकियां मिल रही थीं. वहीं उनके खरीद-फरोख्त की कोशिशें की जा रही थीं. हालांकि, बड़ी जोड़-तोड़ के बाद अहमद पटेल अपनी सीट जीत जीतने में सफल रहे थे.

वहीं इसके पहले 1996 में भी ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला. भाजपा नेता रहे शंकर सिंह वाघेला ने भाजपा छोड़कर अपने नई पार्टी का गठन किया. उस दौरान राज्य में भाजपा की सरकार थी जिसके मुखिया केशुभाई पटेल थे. पटेल के नेतृत्व से नाराज़ होकर वाघेला बागी हो गए. उन्होंने अपने 47 समर्थक विधायकों को मध्य प्रदेश के खजुराहों के एक होटल में शिफ्ट कर दिया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई और राज्य के मुख्यमंत्री बने.

सरकार बनाने के लिए शिवसेना ने भी होटल में ठहराए अपने विधायक

हाल ही में महाराष्ट्र राज्य में होटल और रिज़ॉर्ट की राजनीति देखने को मिली. भाजपा से अलग होने के बाद शिवसेना कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने के लिए बातचीत कर रही थीं. उस दौरान भी शिवसेना को अपने विधायकों खरीद-फरोख्त का डर था. इसके बाद शिवसेना ने अपने सभी विधायकों को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के घर मातोश्री के पास रंगशारदा होटल में कुछ दिनों के लिए शिफ्ट करने की बात सामने निकल कर आई थी. इस पर शिवसेना ने तर्क दिया था कि राज्य में राजनीतिक सरगर्मिया तेज़ी से बदल रही हैं. उनके विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की कोशिश की जा रही है.

राज्य में 1999 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी लेकिन तीन साल के अंदर ही राज्य में उठापटक का दौर शुरू हो गया था. कांग्रेस और एनसीपी ने भाजपा और शिवसेना को रोकने के लिए अपने विधायकों को मैसूर के होटल में रुकवाया था. तत्कालीन राज्य के सीएम में विलासराव देशमुख अपनी सरकार बचाने के लिए यहीं से सीधे महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे थे. फिर उन्होंने अपना बहुमत साबित किया था.

उत्तराखंड के भाजपा विधायक जब शिफ्ट हुए जयपुर

2016 में जब 9 कांग्रेस विधायक और 27 भाजपा के विधायकों ने तत्कालीन राज्यपाल केके पॉल से मिलकर तत्कालीन सीएम हरीश रावत की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की मांग की. इसके बाद राज्य में सियासी भूचाल आ गया था. इसके बाद भाजपा ने अपने विधायकों को जयपुर शिफ्ट किया था. इस दौरान दोनों ही दलों ने एक दूसरे के विधायकों के खरीद फरोख्त के आरोप लगाए थे. दोनों दलों के बीच चली उठापटक के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. 2017 में भाजपा यहां सत्ता में काबिज हो गई.

हरियाणा में भी 1982 में ऐसा ही कुछ सियासत देखने को मिली थी. विधानसभा चुनाव से पहले इंडियन नेशनल लोकदल और भाजपा के बीच गठबंधन हुआ था. राज्य की 90 विधानसभा सीटों में किसी भी दल का स्पष्ट जनादेश नहीं मिला. भाजपा व आईएनएलडी ने 37 और कांग्रेस ने 36 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उस दौरान आईएनएलडी के प्रमुख देवीलाल ने अपने खेमे के सभी विधायकों को दिल्ली एक होटल में भेज दिया था. वहीं से एक विधायक भाग भी गया था. इसके बाद राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जीडी तपासे ने देवीलाल को बहुमत साबित करने के कहा लेकिन वे साबित नहीं कर पाए. फिर कांग्रेस ने राज्य में गठबंधन सरकार बनाई और भजनलाल सीएम बने.

2000 के विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस और राजद विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए तो नीतिश कुमार को राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. नीतीश ने पहली बार राज्य के सीएम पद की शपथग्रहण की. वहीं विश्वास मत से पहले ही जदयू ने अपने सारे विधायकों को पटना के एक होटल में शिफ्ट कर दिया लेकिन इसके बाद भी नीतिश विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए. इसके बाद राबड़ी देवी दोबारा बिहार की सीएम बनीं.

1984 में आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी ऐसा वाकया देखने को मिला था. जब टीडीपी के मुखिया एनटी रामाराव को बहुमत साबित करने के लिए महीने भर का समय दिया गया था. तब कर्नाटक के सीएम आरके हेगड़े ने सभी विधायकों को कर्नाटक के एक रिज़ॉर्ट में ठहरने की व्यवस्था की थी.

वहीं आंध्र में 1995 में भी फिर एनटी रामराव को अपने दामाद चंद्राबाबू नायडू के कारण पार्टी में कलह का सामना करना पड़ा था. नायडू ने अपने समर्थक विधायकों को हैदराबाद के होटल में भेज दिया था. इसके बाद वह सीएम बने थे.

होटल और रिज़ॉर्ट की राजनीति सबसे ज्यादा कर्नाटक में ही देखने को मिली. 1983 में कर्नाटक में जनता पार्टी की सरकार थी. तब राज्य के सीएम रामकृष्ण हेगड़े थे. अपनी सरकार को गिरने से बचाने के लिए हेगड़े 80 विधायकों को बेंगलुरु के ही एक रिज़ॉर्ट में भेज दिया था. बाद में बहुमत साबित करने में कामयाब भी रहे. इसके बाद राज्य में 2004, 2006, 2008, 2012, 2017 और 2019 में भी कर्नाटक में रिज़ॉर्ट राजनीति देखने को मिली.

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