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Friday, 22 November, 2024
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दिल्ली की झुग्गियों में केजरीवाल के मुफ़्त की स्कीमों की ‘बल्ले-बल्ले’ लेकिन बहुत से वोटर हैं नाख़ुश

आम आदमी पार्टी के सरकार चलाने के तरीक़े से जुड़ी चाहे जो भी चर्चाएं हो, पार्टी तो मुफ़्त में दी जा रही चीजों के नाम पर ही वोट मांग रही है. लेकिन कुछ लोग इससे नाखुश भी हैं.

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नई दिल्ली : एक सवाल ऐसा है जिसके जवाब से दिल्ली चुनाव के नतीजे तय हो सकते हैं: मुफ़्त में दी जा रही चीजों से केजरीवाल कितने वोट ख़रीद सकते हैं? आम आदमी पार्टी के सरकार चलाने के तरीक़े से जुड़ी चाहे जो भी चर्चाएं हो, पार्टी तो मुफ़्त में दी जा रही चीजों के नाम पर ही वोट मांग रही है. ऐसा तब है जब पार्टी ने 2015 के घोषणापत्र में की गई 8 लाख़ नौकरियों के वादे पर चुप्पी साध ली है और इस बार के घोषणापत्र में दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के पांच साल पुराने वादे को दोहरा दिया है.

मामले पर जब दिप्रिंट ने शहर के अलग-अलग इलाक़ों के लोगों से बात की तो इस मामले पर मत बंटे हुए मिले. झुग्गी-झोपड़ी वालों का एक बड़ा हिस्सा इस ओर इशारा करता है कि आप ने मुफ़्त की चीजों से समर्थन जीत लिया है. 55 साल के रघु कुमार के लिए ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ के वादे से ज़्यादा अहम उनका ‘आत्मसम्मान’ है जो उनकी कॉलोनी में बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से आया है. ये चुनाव के नतीजे तय करना का अहम कारक होगा.

पूर्वी दिल्ली के शाहदरा में रहने वाले कुमार यहां की झुग्गी में सालों से रहते आए हैं. पहले वो कांग्रेस के वोटर थे लेकिन 2015 में उन्होंने आम आदमी पार्टी को वोट देने का प्रयोग किया और तब से पार्टी के साथ क़ायम हैं.

नंद नगरी में रहने वाले राधे श्याम ख़ुशी से कहते हैं, ‘पहले हमें शौचालय इस्तेमाल करने के लिए दो रुपए देने होते थे लेकिन अब ये मुफ़्त है. इस सरकार ने हमारे लिए बिजली-पानी से लेकर सीसीटीवी-वाईफ़ाई सब फ़्री कर दिया. मेरे जैसे 100 रुपए रोज़ का कमाने वाले इंसान के लिए ये जीवन बदल कर रख देने वाला है. अब तो मैं बचत भी कर लेता हूं.’

ऐसी कई जगहों पर लोगों की इस मामले पर राय एक जैसी थी. ऐसे में अचरज की बात नहीं है कि कैंपेन के दौरान भाजपा ने अपने सांसदों को झुग्गी में समय बिताने को कहा था. कुछ सांसद गए भी लेकिन जाकर पार्टी का पर्चा बांटा और लौट आए, जबकि ज़्यादातर चुपचाप इससे दूर रहे.


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2018-19 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक़ दिल्ली सरकार ने 2014 में डीयूएसआईबी के ज़रिए झुग्गियों और जेजे कॉलोनियों में एक सर्वे कराया और अनुमान लगाया था कि इनमें 1.7 मिलियन यानी तक़रीबन 17 लाखों लोग रहते हैं. ये दिल्ली की आबादी का लगभग 10% हिस्सा है. बीते सालों में विकास की तेज़ रफ़्तार और नौकरी की तलाश वालों की वजह से यहां की आबादी और बढ़ी है. बीजेपी के रणनीतिकारों ने दिप्रिंट को बताया कि 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में इन जगहों के लोगों ने 26-30 सीटों पर बेहद अहम रोल अदा किया था.

फ्री सुविधाएं देना अच्छा मॉडल नहीं है

लेकिन इन जगहों से बाहर के लोगों की बातें आप के लिए उतनी सहूलियत भरी नहीं हो सकतीं. कई लोगों ऐसे भी हैं जो मुफ़्त की चीजों पर सवाल उठा रहे हैं. वो इस ओर इशारा करते हैं कि ये अच्छा मॉडल नहीं है. हौज़ ख़ास में रहने वाली सुप्रिया सिंह का कहना है, ‘स्वास्थ्य और शिक्षा ना सिर्फ़ मुफ़्त बल्कि बेहतर होनी चाहिए, लेकिन सरकार को पानी, बिजली और यात्राओं को मुफ़्त करने की क्या ज़रूरत है? सरकार को नए इंफ़्रास्ट्रक्चर की तरफ़ ध्यान देते हुए सड़कें, फ़्लाइओवर बनाने और ज़्यादा बसें चलवाने पर ध्यान देना चाहिए. मुझे उन सुविधाओं के लिए पैसे देने में गुरेज़ नहीं जिनका मैं इस्तेमाल करती हूं लेकिन उस पैसे का इस्तेमाल दिल्ली को बेहतर बनाने में होना चाहिए.’

आम आदमी पार्टी ने हर महीने 200 यूनिट तक बिजली मुफ़्त और 400 यूनिट तक आधी कर रखी है, इसके अलावा पार्टी ने हर महीने 20,000 लीटर मुफ़्त पानी, मुफ़्त मोहल्ला क्लिनिक और महिलाओं के लिए मुफ़्त बस और मेट्रो जैसी योजनाएं या तो चला रही है या इनकी घोषणा कर रखी है. हालांकि नए स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी खोलने के मामले में फेल रही है लेकिन इससे जुड़ी पब्लिसिटी से राजधानी की आबादी का एक हिस्सा काफ़ी खुश है.

एक तबके के लिए मुफ़्त की चीजों पर सरकार को अपना ध्यान नहीं लगाना चाहिए. नेशनल यूनिवर्सिटी एजुकेशन प्लानिंग एंड ऐडमिनिस्ट्रेशन की एसोसिएट प्रोफ़ेसर मनीषा प्रियम की मानें तो सरकार को लंबे समय तक काम आने वाली योजनाओं को मज़बूत करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘ये सही तरीक़ा नहीं है. ऐसे छोटे कदमों से चीजों को बदलने की वो दूरदर्शिता नहीं दिखाई देती जो लंबे समय तक टिकाऊ होती.

जमरूदपुर में दवाई की दुकान चलाने वाले मनोज सिंह का कहना है कि आप ने मुफ़्त की चीजों की घोषणा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कीं. उन्होंने कहा, ‘ये सब चुनावी सरगर्मी में हो रहा है. उन्हें एक बात साफ़ पता है कि अभी वोट चाहिए.’


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बदरपुर विधानसभा के सौरभ विहार से आने वाले मुकेश शुक्ला का कहना है, ‘अगर औरतें नौकरी पर जाकर कमा सकतीं हैं तो टिकट के लिए 20 रुपए क्यों नहीं दे सकतीं? उन्हें मुफ़्त की जगह सुरक्षित ट्रांसपोर्ट दिया जाना चाहिए.’

दिल्ली की झुग्गियां पर सभी पार्टियों की नज़र

भाजपा के एक नेता ने कहा कि मोदी का ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ वाला नारा झुग्गी वालों में एक हिस्से के बीच चल निकला है. इस भाजपा नेता ने कहा, ‘ये एक तबका है जो अभी तक हमारे साथ पूरी तरह से नहीं है. लेकिन हम उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि केंद्र द्वारा उनके लिए क्या किया गया है. हम ये तथ्य भी उठा रहे हैं कि आप ने हमारी स्कीमें लागू नहीं कीं.’

आप नेताओं का भी मानना है कि झुग्गी वालों का समर्थन उनके लिए अहम है. दिसंबर में हुई चुनाव की घोषणा से कुछ महीने पहले दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने मुख्यमंत्री आवास योजना की घोषणा की थी जिसके तहत राजधानी भर की झुग्गियों में रहे लोगों को पक्का मकान दिया जाएगा.

हालांकि, अभी ना जाने ऐसे कितनी ही झुग्गियां हैं जिनकी हालत काफ़ी ख़राब है और उनपर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. इन्हीं में से एक है इंदिरा गांधी, पहाड़ी नंबर 1 जो दिल्ली के न्यू फ़्रेंड्स कॉलोनी के तैमूर नगर में स्थित है.

यहां रहने वाली लाली ने कहा, ‘हमें कब से पक्का मकान देने का वादा कर रखा है लेकिन अब तक कुछ नहीं मिला. शीला दीक्षित के समय चीज़ें तेज़ी से आगे बढ़ रही थीं लेकिन उनके चुनाव हारने के बाद सब ठप पड़ गया. भाजपा वालों ने जीतने पर हमें पक्का मकान देने का वादा किया है और सुना है कई और राज्यों में लोगों को ये पहले से ही मिल गया है.’


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ऐसी झुग्गियां जहां मुस्लिम आबादी ज़्यादा है वहां नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) एक बड़ा मुद्दा है. इसी कॉलोनी में रहने वाले रफ़ीक ने कहा, ‘चारों तरफ़ चल रहे प्रदर्शनों के बीच आप वालों ने सबसे ज़्यादा समझदारी दिखाई है और कई बार हमसे मिलने भी आए. उन्होंने ये भी कहा है कि वो एनआरसी लागू नहीं होने देंगे.’

भाजपा भी इन वोटरों को लुभाने की पूरी कोशिश कर रही है. पार्टी के मुताबिक़ इन इलाक़ों में 2013 में इन्होंने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया था और 2017 के नगरपालिका चुनाव में भी यहां से ख़ासा समर्थन हासिल किया था.

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