गुमला(झारखंड): पंचू मुंडा और करमी देवी की दो साल पहले शादी हुई थी. करमी देवी पहली बार गर्भवती हुईं. तय समय पर वह शनिवार रात आठ बजे अस्पताल पहुंची. डॉक्टर नहीं थे. नर्स ने देखा और कहा कि ऑपरेशन में अभी टाइम है. उसे एक बेड पर लिटा दिया. दर्द के कराह रही करमी के पति बार-बार नर्स को पास जाते और उसे देखने का अनुरोध करते. नर्स पर मरीज से अधिक नींद भारी थी इसलिए नर्स उसे भला-बुरा कह भगा दे रही थी.
करमी का दर्द बढ़ता गया और रात एक बजे उसने मरे हुए बच्चे को जन्म दिया. सुबह जब पंचू ने अस्पताल प्रशासन से एंबुलेंस की मांग की तो प्रशासन ने कहा, ‘अभी नहीं है, दोपहर बाद ही मिल पाएगी.’ कोई उपाय न देख पंचू ने अपने मरे हुए बच्चे के शव को प्लास्टिक की थैली में लपेटा और घर चला गया. ये घटना रांची से 95 किलोमीटर दूर गुमला जिले के सिसई प्रखंड के रेफरल अस्पताल की है.
अस्पताल द्वारा मरीजों को तय समय पर एंबुलेंस न दिए जाने की यह पहली घटना नहीं है. बीते साल सितंबर माह में घाटशिला में सबर आदिम जनजाति की महिला की मौत एंबुलेंस न मिलने से हुई. परिजन शव को भी साइकिल पर लाद कर ले गए. अक्टूबर में साहिबगंज में एक गर्भवती महिला को बांस पर लादकर अस्पताल पहुंचाया गया. इसी महीने में सारंडा में एक गर्भवती महिला की मौत एंबुलेंस न मिलने का कारण हो गयी थी.
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जन्म से पहले ही अपना बच्चा को चुके नगर लालामाटी धोबीटोला गांव के निवासी पंचू ने बताया, ’देर रात जब दर्द ज्यादा बढ़ गया तो उन्होंने नर्स को उठाया. उसने कहा कि ज्यादा बोलोगे तो रेफर कर दूंगी. वह अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट मांग रही थी.’
’मैं अपने परिवार (पत्नी) को दो-दो बार अस्पताल लेकर गया था, लेकिन हमें टाइम नहीं मिला जिससे अल्ट्रासाउंड नहीं हो सका. खतरा मोल लेते हुए गर्भवती को ऑटो में लेकर जाता था. अब बताइए इसमें मेरा क्या दोष है.’
पंचू के मुताबिक, ’नर्स कहने लगी दारू पीने के लिए तुमलोगों को पैसा मिलता है, लेकिन अल्ट्रासाउंड कराने के लिए नहीं. इतना कहकर फिर वह सोने के लिए चली गई. पत्नी ने जब बच्चा जन्म दिया तब तक वह मर चुका था.’
यहां जब एंबुलेंस मांगा तो कहा गया कि बच्चा को लेकर जाओ दफना देना पत्नी को शाम तक छोड़ दिया जाएगा. पत्नी को फिर अगले दिन दोपहर बाद ममता वाहन से घर पहुंचा दिया गया. इसके बाद सोमवार को दोनों ने मिलकर अपने नवजात को दफना दिया.
नर्स कह रही थी केवल तुमने ही बच्चा पैदा किया है क्या
किसान पंचू के खेत में अभी सिर्फ लहसुन लगा हुआ है. पत्नी दर्द से कराहती रहती है. इस लापरवाही के बाद भी किसी सरकारी अधिकारी ने इनसे हाल जानने की कोशिश नहीं की.
बहुत मुश्किल से बात कर पा रही करमी देवी ने बताया, ’अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं था. दर्द के समय भी नर्स ने मारपीट किया. वह बार-बार कह रही थी, ‘तोहें मन छौआ कई रहीं का, और मन छौआ नै कई रहन का (केवल तुम्ही बच्चा पैदा कर रही हो क्या, हमलोगों ने नहीं किया क्या).’
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‘अस्पताल की ओर से दवाई तो दी गई है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि उसे कब और कैसे खाना है. वह तो साथ में गई सहिया ने नर्स ने पूछा कि यह किसकी दवाई है तो नर्स ने बताया कि रात में जिसका बच्चा मर गया था.’
स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने नहीं दिया कोई जवाब
गुमला की सिविल सर्जन डॉ विजया भेंगरा ने कहा कि, ‘उन्हें मामले की पूरी जानकारी नहीं है, मैंने अपने स्तर पर सिसई रेफरल हॉस्पिटल से मामले की जानकारी मिली तो पता चला कि पंचू मुंडा अस्पताल को बिना बताए बच्चे को लेकर चला गया.’
विजया भेंगरा नर्स की लापरवाही, दुर्व्यवहार, रात में किसी डॉक्टर का न होना और जिले में एंबुलेंस की संख्या पूछने पर चुप्पी साध गई. मामले में किसी तरह की कार्रवाई तो दूर की बात.
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने पूरे मसले पर अपना पक्ष रखना जरूरी नहीं समझा. लगातार फोन और मैसेज का जवाब उन्होंने नहीं दिया.
सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक गुमला जिले में सदर अस्पताल के अलावा आठ पीएचसी और सात एपीएचसी हैं. साल 2011 के सेंसस के मुताबिक जिले की आबादी 10 लाख से अधिक है. यानी 62,500 व्यक्ति पर एक सरकारी अस्पताल है.
वहीं साल 2011 के सेंसस के मुताबिक झारखंड की आबादी की आबादी 3.3 करोड़ है है. वहीं स्वास्थ्य केंद्रों को देखें तो जिला अस्पतालों की संख्या 24, सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल 12, कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) 188, हेल्थ सब सेंटर 3876 है. यानी प्रति 8514 एक हेल्थ सब सेंटर है.
इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक भारत में इस वक्त छह लाख डॉक्टर और 20 लाख नर्सों की कमी है. वहीं डबल्यूएचओ के मुताबिक भारत में प्रति 10,189 व्यक्ति पर एक डॉक्टर की जरूरत है. झारखंड में इस वक्त 18,518 व्यक्ति पर एक डॉक्टर तैनात हैं.
केवल रिम्स में एक साल में मरे हजार से अधिक बच्चे
राजधानी रांची में सरकारी अस्पतालों के हालात कुछ ऐसे ही हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में साल 2019 में कुल 1150 बच्चों की मौत इलाज के दौरान हो गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत में एक से पांच साल के बच्चों में प्रति एक हजार पर 37 बच्चे हर साल मर रहे हैं.
वहीं रांची शहर से सटे कांके सीएचसी में मंगलवार चार फरवरी को बंध्याकरण कराने आई 14 महिलाओं को बंध्याकरण के बाद 12/12 के कमरे में फर्श पर ही लिटा दिया गया. इन महिलाओं में किसी के छह महीने तो किसी के दो साल के बच्चे साथ थे. केंद्र के प्रभारी डॉ साबरी ने बताया, ‘उनके यहां जगह ही नहीं है तो क्या करें. मात्र 10 बेड हैं. जो अधिकतर समय भरे रहते हैं अधिक मरीज आने से उन्हें नीचे ही सुलाना ही पड़ेगा न.
यही नहीं बेड़ो नामक जगह से एक मरीज को एंबुलेंस में रिम्स लाया गया. एंबुलेंस में ऑक्सीजन गैस के सिलेंडर को किसी तरह रस्सी से बांध कर रखा गया था. कोई सहायक न होने की वजह से परिजन खुद ही किसी तरह मरीज को ऑक्सीजन लगा रहे थे.
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इधर पलामू, दुमका और हजारीबाग जिले में तीन नए मेडिकल कॉलेज बन रहे हैं. इसमें इस सत्र से 100 सीटों पर एडमिशन होना है. लेकिन निर्माण कर रही कंपनी शापूरजी पालनोजी इंजीनियरिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी का राज्य सरकार पर 115 करोड़ रुपया बकाया है. कंपनी ने कहा है कि अगर एक सप्ताह के अंदर भुगतान नहीं होता है तो वह काम रोक देगी. जानकारी के मुताबिक नए सत्र से पहले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) इन कॉलेजों का निरीक्षण करनेवाली है.
हालिया पेश हुए केंद्रीय बजट में केंद्र सरकार ने 69 हजार करोड़ रुपए स्वास्थ्य सेवाओं के लिए घोषित किया गया है. प्रधानमंत्री आयुष्मान जैसी योजना लांच कर रहे हैं..लेकिन रांची के अस्पतालों में मूल-भूत सुविधाएं भी मरीजों को मुहैया नहीं हो रही है. अस्पतालों से डॉक्टर गायब है.. पैसे की कमी का रोना रो रही वर्तमान झारखंड सरकार आगामी बजट में स्वास्थ्य के हिस्सा कितना पैसा खर्च करती है, इसी पर निर्भर करेगा कि वर्तमान हालात में कितने सुधार की उम्मीद की जानी चाहिए.
(लेखक झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं)