नई दिल्ली: शांत और सौम्य स्वाभाव वाले जेपी नड्डा ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाल लिया है. 6 अप्रैल 1980 के संविधान के तहत विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष बनने वाले वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी के बाद जेपी नड्डा पार्टी तीसरे ब्राह्मण हैं और अध्यक्ष के रूप में 11वें व्यक्ति हैं.
जून 2019 में नड्डा को बीजेपी का पहला कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया था, जिसके बाद शाह को प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी कैबिनेट में गृह मंत्री के रूप में पदभार सौंपा गया था. राष्ट्रीय राजनीति में 10 साल से भी कम समय में नड्डा आरएसएस के पसंदीदा बन गए थे.
इससे पहले 59 साल के नड्डा को पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के कई सारे मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में सर्वसम्मति से बीजेपी का नया अध्यक्ष चुना गया था.
महत्वपूर्ण माने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम के तीन हफ्ते पहले, बीजेपी ने बदलाव की योजना के तहत लो प्रोफाइल वाले, निष्ठावान जेपी नड्डा को अमित शाह की जगह पार्टी का अध्यक्ष बनाना तय किया है.
नड्डा के राजनीतिक कैरिअर के अहम मोड़
नड्डा का करिअर 2010 में तब मोड़ लेता है जब दिसंबर 2009 में नितिन गडकरी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. नड्डा और गडकरी ने राष्ट्रीय राजनीति में लगभग एक साथ प्रवेश किया. गडकरी आरएसएस के समर्थन से महाराष्ट्र से राजनाथ सिंह की जगह संभालने के लिए राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश कर रहे थे. गडकरी नड्डा को अपनी नई टीम में जनरल सेक्रेटरी के रूप में दिल्ली ले आए. इसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में नड्डा के राजनीतिक जीवन के नए दौर की शुरुआत हुई.
बहुत कम समय में नड्डा ने राज्यसभा का टिकट हासिल किया और मोदी के सत्ता में आने पर स्वास्थ्य मंत्री बने. जब मोदी हिमाचल के जनरल सेक्रेटरी और हिमाचल के प्रभारी थे तो उनकी केमेस्ट्री बनी थी, नड्डा उस समय उभरते हुए राजनीतिज्ञ थे.
1998 में नड्डा ने फिर से बिलासपुर सीट जीती और तत्कालीन प्रेम कुमार धूमल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए. वह 2003 में हार गए लेकिन 2007 के चुनावों में वापसी की और धूमल सरकार में वन मंत्री बनाए गए. इसके बाद 2010 में दिल्ली पहुंचे जहां भाजपा महासचिव बनाए गए.
पहले का सफर
नड्डा पटना में हिमाचल के ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए. उनके पिता एनएल नड्डा रांची विश्वविद्यालय के कुलपति थे. उनकी पत्नी मल्लिका नड्डा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) की प्रोफेसर हैं.
नड्डा 1977 में पटना विश्वविद्यालय के छात्रनेता के रूप सेक्रेटरी चुने गए. वह जय प्रकाश आंदोलन के उपज थे लेकिन उच्च शिक्षा के लिए वापस अपने गृह राज्य एचपीयू लॉ की पढ़ाई के लिए आ गए.
उन्होंने यहां आरएसएस की छात्र ईकाई एबीवीपी को ज्वाइन किया.
नड्डा 1986-1989 तक एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे और उन्होंने राजीव गांधी सरकार में हुए बोफोर्स मामले में आंदोलन खड़ा करने में मदद की. वह 1991 में बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने.
सुरेश भारद्वाज ने कहा, ‘एबीवीपी के महासचिव और भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में नड्डा के शुरुआती कार्यकाल ने उनकी बहुत मदद की’ उन्होंने कहा, ‘वह आरएसएस विचारक केएन गोविंदाचार्य के संपर्क में आए, जो वाजपेयी और एलके आडवाणी के बाद तीसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे.’
यही समय था जब भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने उन्हें अपने साथ लिया और अपना चुनाव एजेंट नियुक्त किया था. 1993 में नड्डा को बिलासपुर से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया था.
एबीवीपी के पूर्व सहयोगी और तीन बार के भाजपा सांसद रहे सुरेश चंदेल जो अब कांग्रेस में है ने कहा, ‘बिलासपुर में एक कॉलेज के लिए उनके आंदोलन ने उन्हें उस चुनाव में लोकप्रिय बना दिया.’
1993 के चुनाव में नड्डा ने जीत हासिल की और शांता कुमार सहित पार्टी के सभी महत्वपूर्ण नेताओं के चुनाव हारने के बाद भाजपा विधायक दल का नेता बनाया गया.
यह 1990 के दशक था जब नड्डा ने एक कनेक्शन बनाया जो अब उनकी बहुत काम आ रहा है- प्रधान मंत्री मोदी के साथ एक तालमेल जो उस समय हिमाचल भाजपा के प्रभारी थे.
सबको साथ लेकर चलने वाले नेता
भाजपा में नड्डा का उदय लोगों को समायोजित करने वाले नेता के रूप में देखा जाता है. भाजपा के एक वरिष्ठ महासचिव ने कहा, ‘उनकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि वह कभी किसी पर गुस्सा नहीं करते हैं. वह सभी कa सुनते हैं, वह कभी खुलकर और ज्यादा नहीं बोलते हैं.
एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि नड्डा अपने सौहार्दपूर्ण व्यवहार के लिए जाने जाते हैं. ‘वह संगठनात्मक मामलों में अच्छे हैं, सभी के लिए अच्छे हैं और कभी महत्वाकांक्षी नहीं रहते हैं. वह चालाक राजनेता राजनाथ सिंह के विपरीत हैं और वह गडकरी और वेंकैया नायडू की तरह मुखर नहीं हैं.
हालांकि, आलोचकों का कहना है कि नड्डा एक भाग्यवादी राजनीतिज्ञ हैं और निष्ठा के उत्पाद हैं. हिमाचल भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘वह न तो अपने गृह राज्य में एक बड़े नेता हैं और न ही एक प्रभावशाली नेता हैं.’ ‘वह बहुत गणनात्मक है.’
आलोचक उनके पारिवारिक संबंधों का भी हवाला देते हैं. उनकी सास जयश्री बनर्जी 1977 से 1980 तक मध्य प्रदेश सरकार में एक अनुभवी भाजपा राजनेता और मंत्री बनी थीं. बनर्जी, जो 2000 में जबलपुर के सांसद चुनी गयी थीं, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे के पारिवारिक मित्र भी थीं.
नड्डा के सामने चुनौती
नड्डा के सामने सबसे पहली चुनौती दिल्ली विधानसभा चुनाव है. अमित शाह ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से तीन सप्ताह पहले ही अध्यक्ष का पद नड्डा को सौंपा है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि नड्डा की सबसे बड़ी ताकत मोदी और शाह का समर्थन है और इसलिए उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव में असहजता नहीं हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा, ‘भले ही पार्टी विफल हो जाए, लेकिन नड्डा को तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि मोदी-शाह की जोड़ी नहीं सोचती.’
उनका अगला कार्य बिहार में होने वाला हाई-प्रोफाइल विधानसभा चुनाव होगा, लेकिन राज्य को जीतने के लिए नीतीश कुमार-सुशील मोदी की जोड़ी पर सारा दारोमदार होगा. नड्डा अपने बिहार कनेक्शन का इस्तेमाल कर नीतीश को अच्छी तरह से खुश रख सकते हैं.
भाजपा की बड़ी परीक्षा पश्चिम बंगाल में होगी, जो कि 2021 में चुनावों में होगी. लेकिन शाह ने खुद को बंगाल जीतने में झोंक दिया है, अब नड्डा को बहुत कम मेहनत करनी पड़ेगी.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘नड्डा का परीक्षण पश्चिम बंगाल के बाद शुरू होगा जब अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे. तब तक वह अपने अधिकार का आनंद ले सकते हैं.
हालांकि, नए अध्यक्ष को अपनी चुनौतियों के बारे में पता है. पिछले छह महीनों में, वह अमित शाह की प्लेबुक के अनुसार काम कर रहे हैं, जो लगभग सभी राज्यों का दौरा कर चुके हैं.