कोलकाता: पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रमुख दिलीप घोष एंटी सीएए-एनआरसी प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार का समर्थन करने के कारण खबरों में हैं.
पूर्व आरएसएस प्रचारक ने नोबेल पुरस्कृत अमर्त्य सेन के बंगाल और भारत के लिए योगदान पर सवाल उठाए और कहा कि भारतीय गायों के दूध में सोना मिलता है.
उनके इस बयान के बाद पार्टी के भीतर ही उनकी आलोचना हो रही है. केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रीयो ने कहा कि उनका बयान भाजपा का रुख नहीं है. लेकिन घोष अपने इन तरीकों के लिए कभी मांफी नहीं मांगते हैं.
2019 में दाखिल घोष द्वारा दाखिल किए गए चुनावी हलफनामे के अनुसार उनपर 14 आपराधिक मामले दर्ज़ हैं. उनका कहना है कि ये सारे राजनीति से प्रभावित हैं.
घोष को एक ईमानदार नेता की तरह देखा जाता है जो पार्टी के लिए आक्रमकता से काम करता है वो भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसे विरोधी के सामने.
दिप्रिंट से बातचीत में संघ के एक व्यक्ति ने माना कि घोष कभी-कभी परिप्रक्ष्य से बाहर होकर भी बोल जाते हैं लेकिन उसी समय वो अपनी महत्ता को भी बरकरार रखते हैं.
उनके खिलाफ हो रही लामबंदी के बावजूद, घोष को पश्चिम बंगाल भाजपा प्रमुख के रूप में फिर से चुनाव के लिए सेट किया गया है जब उनका कार्यकाल इस सप्ताह समाप्त हो रहा है.
एक आरएसएस सदस्य ने कहा कि कोई भी भाजपा नेता जो आलोचना करता है वो केवल उन्हें पार्टी से अलग-थलग करने का काम करता है.
पांच साल से ज्यादा समय से सक्रिय राजनीति में
घोष(54) झारग्राम के आदिवासी बेलियाबेरा गांव से आते हैं जो नक्सल प्रभावित पश्चिम मिदनापुर में आता है.
कक्षा 10वीं तक उन्होंने स्थानीय स्कूल से पढ़ाई की. उसके बाद कोलकाता के इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में घोष ने दाखिला लिया. हालांकि वो शाखाओं में बड़े हुए और बंगाली मार्शल आर्ट ‘लाठी खेला’ में महारत रखते हैं.
यह भी पढ़ें : सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर बयान देकर फंसे पश्चिम बंगाल भाजपा प्रमुख दिलीप घोष, दो एफआईआर दर्ज
संघ में बड़े होते हुए वो हिंदू जागरण मंच जो कि विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से जुड़ा एक हिंदूवादी संगठन है उसके लिए संगठन का काम करने लगे.
कुछ सालों बाद आधिकारिक तौर पर वो संघ से जुड़ गए और धीरे-धीरे प्रचारक बन गए. इस भूमिका में बंगाल से लेकर अंडमान तक उन्होंने काम किया. उन्होंने काफी साल अंडमान में बिताए जहां उन्होंने स्थानीय संघ के संगठन को मजबूत किया.
घोष 2014 में भाजपा में आ गए और दिसंबर 2015 में बंगाल भाजपा के प्रमुख बन गए.
2016 में बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों से उन्होंने चुनावी राजनीति की शुरुआत की. कांग्रेस की मजबूती वाली खड़कपुर सदर से वो चुनाव लड़े और जीते.
हालांकि इन चुनावों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को बहुमत मिला जिसने राज्य की 294 सीटों में से 212 पर जीत हासिल की. भाजपा केवल तीन सीट ही जात पाई.
घोष के नेतृत्व में अगले तीन सालों के भीतर भाजपा ने कई उपचुनाव जीते जिससे विधानसभा में उसकी संख्या 14 हो गई.
2019 के लोकसभा चुनाव में घोष ने खड़कपुर सीट से चुनाव जीता. विधानसभा में उनकी खाली सीट तृणमूल ने जीत ली जिससे विधानसभा में भाजपा की संख्या घटकर 13 हो गई.
घोष के नेतृत्व में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें एक साल का राज्य भाजपा प्रमुख का कार्यकाल बढ़ा दिया गया.
बंगाल में भाजपा के लिए टर्निंग प्वाइंट
2019 का लोकसभा चुनाव बंगाल में भाजपा के लिए टर्निंग प्वाइंट लेकर आया. इन चुनावों में भाजपा ने राज्य की 42 सीटों में से 18 पर जीत हासिल की जो कि 2014 में सिर्फ दो थी.
जबकि भाजपा के काफी लोग महसूस करते हैं कि इस जीत में घोष का कुछ लेना-देना नहीं है. उनका कहना है कि एंटी तृणमूल वोट पार्टी को मिले. संघ के लोग हालांकि कुछ और सोचते हैं.
यह भी पढ़ें : गणतंत्र दिवस की परेड में बंगाल की झांकी ना शामिल करने पर तृणमूल कांग्रेस ने बताया- राज्य का अपमान
संघ के संगठन के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘घोष अभी यही रहने वाले हैं. इस समय कोई उनकी जगह नहीं ले सकता है. वो जो भी पार्टी के लिए कर रहे हैं उसपर संघ की अनुमति है.’
उनके खराब बयानों पर जब पूछा गया तो नेता ने कहा, ‘जो लोग हिंसा की राजनीति और भाषा की जुगलबंदी को देख रहे हैं वो समझ जाएंगे की घोष अपने काम में कितने कुशल हैं.’
आरएसएस सदस्य ने कहा, ‘ग्रामीण वोटरों में वो एक चेहरा हैं. कोई कैसे बंगाल में ममता बनर्जी की भूमिका को और उनके राजनीति के ब्रांड को भूला सकता है? क्या कोई सभ्यता है? इसलिए ममता ब्रांड की राजनीति को चुनौती देने के लिए हमें दिलीप घोष की जरूरत है.’
आरएसएस सदस्य ने कहा भाजपा के अंदर घोष को लेकर जो कथित तौर पर चल रहा है उसका कोई मतलब नहीं है. ‘जो लोग भी पार्टी प्रमुख के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं वो खुद को अलग-थलग कर रहे है.’
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के एक सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘उनके बयान तत्कालिक रूप से बिना सोचे हुए हैं लेकिन दिलीप दा के भाषण और उनकी आक्रमकता ने हमें ग्रामीण बंगाल में फायदा पहुंचाया है.’
नेता ने कहा, ‘उनके कुछ कमेंट्स हमें जरूर हंसाती हैं. लेकिन इस समय कोई दूसरा नहीं है जो पार्टी को सही ढंग से चला पाए.’
इस साल के अंत में घोष का अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हो रहा है लेकिन माना जा रहा है कि चुनावों को देखते हुए उन्हें फिर से ये जिम्मेदारी मिल सकती है. राज्य में अगले साल चुनाव होने वाले हैं.
नेता ने कहा, उनको फिर से अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिलना लगभग तय है. ‘पार्टी को घोष पर कोई निर्णय लेने से पहले संघ की इजाजत का इंतजार है.’
घोष आलोचनाओं से बेफिक्री रखते हैं
अपने रिकॉर्ड के अनुसार घोष का नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ दिए गए बयान आक्रामक हैं.
नादिया जिले में रविवार को हुई एक सार्वजनिक बैठक में घोष ने ममता के नागरिकता संशोध कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों में हुए पब्लिक प्रापर्टी की क्षति पर कोई एक्शन न लेने पर सवाल करते हैं.
यह भी पढ़ें : बंगाल में दुर्गा पूजा के पंडाल भाजपा और तृणमूल के लिए राजनीतिक रणभूमि बन गए हैं
सजा देने के बारे में बोलते हुए वो कहते हैं कि भाजपा शासित असम और उत्तर प्रदेश में वहां की सरकारों ने एक्शन लिया जहां एंटी सीएए प्रदर्शनकारियों को कुत्तों (भाजपा शासित असम और उत्तर प्रदेश) की तरह मारा गया.
आलोचना काफी जल्दी और तीव्र थी.
ममता ने सार्वजनिक बैठक में कहा कि ‘भाजपा नेता हमेशा लोगों को मारने की बात करते हैं. वे हमेशा ऐसी बात कह कर लोगों को डराते हैं. कैसे कोई नेता ये कह सकता है कि लोगों को मार देना चाहिए? ये भाजपा की संस्कृति है न कि हमारी.’
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के सचिव अमिताभ चक्रवर्ती ने कहा कि ‘घोष का बयान उनकी पार्टी के विचारों का ही प्रतिबिंब है.’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि ‘वो केवल गांधी की बात करते हैं लेकिन कभी उनपर विश्वास नहीं करते.’
हालांकि घोष को आलोचनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता.
उन्होंने कहा, ‘मैंने कहा कि जिन लोगों ने सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है जैसा कि बंगाल में भी हुआ उन्हें मार देना चाहिए. मैंने कहा कि असम और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकारों ने सही काम किया और अगर हम बंगाल में सत्ता में आते हैं तो हम भी सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को बचाने के लिए वैसा ही काम करेंगे. सार्वजनिक संपत्तियों की सुरक्षा न कर पाने पर सरकार जवाबदेह होती है.’
(इसे अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)