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Wednesday, 24 April, 2024
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बंगाल में दुर्गा पूजा के पंडाल भाजपा और तृणमूल के लिए राजनीतिक रणभूमि बन गए हैं

दुर्गा पूजा पर तृणमूल के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए कोलकाता में अमित शाह, जे.पी. नड्डा और अन्य भाजपा नेताओं का जमावड़ा लगा.

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कोलकाता : पश्चिम बंगाल पर चार दशकों से अधिक समय तक आधिपत्य रखने वाली वाम मोर्चा सरकारों ने राज्य के सबसे बड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक त्यौहार दुर्गा पूजा से हमेशा खुद को दूर रखा था.

वाम नेताओं ने पूजा पंडालों को संरक्षण देने से न सिर्फ इंकार किया था बल्कि पूजा की बेहद हिंदू प्रकृति को जान-बूझकर अधिक महत्व नहीं देने की भी कोशिश की थी. वामपंथी सरकारों के परिपत्रों और दस्तावेज़ों में हमेशा इस त्यौहार को दुर्गा पूजा की बजाय शरदोत्सव कहा जाता था.

पूजा का खुला राजनीतीकरण 2011 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्य की सत्ता पर पहली बार काबिज़ होने के बाद शुरू हुआ. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पंडाल लगाने वाली पूजा कमेटियों को अनुदान देना शुरू कर दिया और कई पंडालों में सरकार की उपलब्धियों पर प्रदर्शनियां भी लगवाई गईं. साथ ही, टीएमसी के नेताओं ने राज्य में दुर्गा पूजा के सबसे बड़े आयोजकों से जुड़ना शुरू कर दिया.

करीब आठ वर्षों के बाद अब पूजा पर टीएमसी के एकाधिकार को भारतीय जनता पार्टी से चुनौती मिलनी शुरू हो गई है. पिछले लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में बड़ी सफलता हासिल करने वाली भाजपा अपने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए राज्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्यौहार के भलीभांति इस्तेमाल के महत्व को समझती है.

28 सितंबर को महालया के दिन, जब दुर्गा पूजा के कई दिनों तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत होती है, भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, राज्य प्रमुख दिलीप घोष और वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय समेत कई बड़े नेताओं ने बंगाल में राजनीतिक हिंसा का कथित तौर पर शिकार बने पार्टी के ’80 सदस्यों’ के नाम पूर्वजों के लिए की जाने वाली तर्पण की रस्म निभाई.

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मंगलवार को, गृहमंत्री अमित शाह ने कोलकाता से सटे साल्ट लेक इलाके में दुर्गा पूजा पंडाल का उद्घाटन किया, और घोषणा की कि उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) शुरू करेगी. टीएमसी सरकार पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि नागरिक (संशोधन) विधेयक में मुसलमानों को छोड़ कर बाकी सभी समुदायों के शरणार्थियों की मदद का प्रावधान होगा.

घोष के अनुसार, पार्टी को शाह से पंडालों का उद्घाटन कराने के कई अनुरोध प्राप्त हुए थे पर गृहमंत्री सिर्फ एक ‘प्रतीकात्मक’ उद्घाटन के लिए ही राज़ी हुए. घोष ने कहा, ‘अमित शाह जी से पूजा उद्घाटन कराने के कई अनुरोध आए थे. वह प्रतीकात्मक कदम के तौर पर साल्ट लेक में शुभारंभ के सिर्फ एक कार्यक्रम के लिए सहमत हुए.’

महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी उत्सव में बढ़-चढ़ कर भागीदारी करने जैसे अपने जांचे-परखे तरीके को भाजपा बंगाल में भी लागू कर रही है. पार्टी और आरएसएस जैसे इससे संबद्ध संगठनों ने बंगाल में जनता से संपर्क के अपने विशेष प्रयासों के तहत ना सिर्फ किताबों और चाय के स्टॉल लगाने जैसी पहल की है, बल्कि वे नौकायान जैसे कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं.

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि उनके स्टॉलों पर रखी जाने वाली किताबों में राज्य में आरएसएस की बुनियाद, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों और एनआरसी की आवश्यकता के बारे में जानकारी होती है. संघ के पदाधिकारी ने कहा, ‘टीएमसी ने संघ और भाजपा को बाहरी संगठनों के रूप में चित्रित करने की कोशिश की. जबकि जनसंघ यहीं पैदा हुआ था. हमें लोगों को संघ के इतिहास के बारे में बताने की ज़रूरत है, और जनता से संबंधों को मज़बूत करने के लिए पूजा का अवसर सबसे बढ़िया होता है.’

भाजपा दुर्गा पूजा पर जुलूस निकालती है और त्यौहार के अंतिम दिन सिंदूर खेला का आयोजन करती है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार पार्टी ने पूजा से जुड़ी गतिविधियों और एक व्यवस्थित आउटरीच कार्यक्रम के लिए अलग से एक कोष स्थापित किया है.

भाजपा नेता ने कहा, ‘कोष में करोड़ों रुपये आएंगे. हमें बताया गया है कि पैसे की कोई कमी नहीं है, पर हमें त्यौहारों के दौरान अधिकतम लोगों से जुड़ना है. हमने राज्य में तब जड़ें जमानी शुरू की थी जब 2017 में दो दिनों के लिए प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगाने के ममता बनर्जी के फैसले के खिलाफ पार्टी ने आंदोलन किया था.’

खुलकर राजनीतीकरण

पर ऐसा नहीं है कि भाजपा के इन प्रयासों को लेकर टीएमसी कुछ नहीं कर रही हो. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूजा समारोहों के उद्घाटन में व्यस्त हैं – वह 27 सितंबर तक 61 पूजा आयोजनों का शुभारंभ कर चुकी थीं.

इस होड़ में टीएमसी अब भी आगे है. बीते वर्षों के दौरान ये अघोषित नियम बन चुका है कि कोलकाता के तमाम बड़े पूजा आयोजनों का उद्घाटन मुख्यमंत्री करेंगी. शहर के कई बड़े पंडाल दुर्गा पूजा से 7-10 दिन पहले ही जनता के लिए खोल दिए गए हैं और वहां बनर्जी के कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदर्शित की गई है.

मुख्यमंत्री ऐसे अवसरों पर उपस्थित लोगों को संबोधित भी करती हैं और अपनी उपलब्धियों की चर्चा करती हैं.

इन पूजा आयोजनों में से अधिकतर का जिम्मा टीएमसी नेताओं की अध्यक्षता वाली कमेटियों के हाथों में है. उदाहरण के लिए दक्षिणी कोलकाता के न्यू अलीपुर स्थित क्लब सुरुचि संघ द्वारा आयोजित पूजा को अब कमेटी की अध्यक्षता करने वाले टीएमसी मंत्री के नाम पर ‘अरूप विश्वास पूजा’ के नाम से जाना जाता है.

कोलकाता के चेतला अग्रणी क्लब द्वारा आयोजित पूजा को ‘बॉबी दा र पूजो’ कहा जाता है क्योंकि इस पूजा को नगर विकास मंत्री फिरहद (बॉबी) हकीम का संरक्षण प्राप्त है. इसी तरह एकडलिया पार्क पूजा को इसके मुख्य संरक्षक पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कोलकाता मेयर और वर्तमान सरकार में पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी के नाम से जाना जाता है. उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल के मुस्लिम मंत्री भी पूजा समितियों की अध्यक्षता करते हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध हैं हकीम और जावेद ख़ान से जुड़ी समितियां.

मानो इतना ही काफी नहीं था, तभी तो ममता बनर्जी ने पिछले साल कोलकाता और ज़िलों की पूजा समितियों की मदद के लिए कई योजनाएं शुरू कर दी. इनमें पूजा आयोजकों के लिए लाइसेंस शुल्क को खत्म करने और राज्य भर में कम से कम 28,000 पूजा समितियों को 10,000 रुपये के अनुदान जैसी पहलकदमियां शामिल थीं. सरकारी खजाने पर पिछले साल इस मद में करीब 28 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा था.

इस साल पूजा समितियों के लिए अनुदान राशि बढ़ा कर 25,000 रुपये कर दी गई है, जबकि महिलाओं द्वारा संचालित समितियों को सरकार 30,000 रुपये दे रही है.

दिलीप घोष ने कहा, ‘राज्य में दुर्गा पूजा का हमेशा से ही एक सामाजिक आधार रहा था. पर ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद से दुर्गा पूजा राजनीतिक बयानबाज़ी का अवसर बन गई है.’

उन्होंने कहा, ‘पूजा से जुड़ा धार्मिक और सामाजिक उत्साह बहुत पहले खत्म हो चुका है. बनर्जी की सरकार 25,000 रुपये की अनुदान भी देती है, मैं फिर कहता हूं ये रिश्वत है, न कि पूजा कमेटियों को दिया गया दान. सरकार से रिश्वत लेने वाली समितियां सत्तारूढ़ पार्टी के लिए काम करने को बाध्य हैं.’


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दूसरी तरफ टीएमसी पूजा कमेटियों पर कब्जा जमाने और लोगों को ‘बांटने’ की होड़ के लिए भाजपा को जिम्मेदार बताती है. तृणमूल सांसद सौगत राय ने कहा, ‘बीते चार दशकों में हमने कभी भी केंद्रीय मंत्रियों को पूजा समितियों पर नियंत्रण के लिए दिल्ली से कोलकाता आते नहीं देखा था. ये परिस्थितियों पर नियंत्रण की भाजपा की हताश कोशिश लगती है. देश के सर्वाधिक धर्मनिरपेक्ष त्यौहार के राजनीतीकरण का ये खुला प्रयास उनके प्रति असंतोष को ही बढ़ाएगा. मुझे यकीन है कि दुर्गा माई की जय की जगह जयश्री राम लाने के भाजपा के प्रयास को राज्य में सफलता नहीं मिलेगी.’

सांप्रदायिक प्रतिस्पर्द्धा

दुर्गा पूजा को लेकर ममता बनाम भाजपा की लड़ाई दो वर्ष पूर्व शुरू हुई थी. टीएमसी सरकार ने 2017 में एक आदेश जारी कर पूजा आयोजकों से प्रतिमा विसर्जन की प्रक्रिया 30 सितंबर की शाम 6 बजे से पहले पूरी करने को कहा था. कमेटियों द्वारा 30 सितंबर के बाद दो दिनों तक विसर्जन जुलूसों के आयोजन पर भी रोक लगा दी गई थी. इसका कारण था: 1 अक्टूबर को मुहर्रम मनाया जाना और सरकार को एक ही दिन दो समुदायों के जुलूसों के कारण कानून व्यवस्था की समस्या बन जाने का भय था.

सरकार के आदेश का पूजा आयोजकों ने विरोध किया था और फिर विसर्जन की अवधि 30 सितंबर की रात 10 बजे तक बढ़ा दी गई थी. पर भाजपा ने इस स्थिति को भुनाने का फैसला किया और वह टीएमसी सरकार पर मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप लगाने लगी.

पाबंदी के खिलाफ कुछ आयोजकों ने अदालत का भी रुख किया था. और कलकत्ता हाई कोर्ट की एक दो-सदस्यीय खंडपीठ ने 1 अक्टूबर को प्रतिमा विसर्जन पर लगाई गई पाबंदी के खिलाफ एक अंतरिम स्थगन आदेश दे कर आयोजकों को अपने धार्मिक कैलेंडर के मुताबिक प्रतिमा विसर्जन की छूट दे दी थी.

उसके बाद से शाह और अन्य भाजपा नेता अपनी लगभग हर राजनीतिक रैली में इस बात का ज़िक्र करना नहीं भूलते कि राज्य में उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर बंगालियों को पूजा और अन्य रीति-रिवाजों को ‘बिना रोक-टोक के’ मनाने की छूट होगी. वे बंगाली भावनाओं को चोट पहुंचाने वाले ऐसे फैसलों के लिए बनर्जी की ‘अल्पसंख्यक तुष्टीकरण’ नीति को दोष देते हैं.

इस परिदृश्य को ‘सांप्रदायिक प्रतिस्पर्द्धा’ का सबसे सटीक उदाहरण बताते हुए वाम मोर्चे के अध्यक्ष विमान बोस ने कहा, ‘दोनों ही दल राज्य में धार्मिक कट्टरतावाद फैलाने और लोगों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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