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Friday, 22 November, 2024
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कोटा के अस्पताल में 100 बच्चों की मौत नई बात नहीं है, 2014 से हर साल 1100 बच्चे मर रहे हैं

मरीजों के परिजन डॉक्टरों की लापरवाही को दोष देते हैं, पर कोटा के जेके लोन अस्पताल के अनुसार असल वजह बड़ी संख्या में रेफरल मामलों का आना है – ‘सारे मरीज हमारे पास बेहद नाजुक हालत में लाए गए थे.’

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कोटा: दिसंबर में 100 बच्चों की मौत के लिए सुर्खियों में रहने वाले कोटा के सरकारी अस्पताल में पिछले छह वर्षों के दौरान प्रति वर्ष औसत 1,100 शिशुओं की मौत हुई है.

भाजपा ने कोटा के जेके लोन मातृ एवं शिशु चिकित्सालय में बड़ी संख्या में शिशुओं की मौत होने पर राजस्थान की अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है, पर अस्पताल के रिकॉर्डों से पता चलता है कि 2014 से ही यहां हर महीने औसत इतने शिशुओं की मौत होती रही है.

2019 में अस्पताल में 963 बच्चों (ज़्यादातर शिशु) की मौत हुई – जोकि 2015 में हुई 1,260 मौतों के मुकाबले 24 प्रतिशत कम थी. दिप्रिंट को प्राप्त सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जेके लोन अस्पताल में गत छह वर्षों के दौरान हर साल औसत 1,108 बच्चों की मौत हुई है.

Graphic: Arindam Mukherjee/ThePrint
चित्रण : अरिंदम मुखर्जी/दिप्रिंट

राजस्थान में 2013 से 2018 के बीच भाजपा की सरकार थी, और कांग्रेस साल भर पहले वहां सत्ता में आई है.

मृतक बच्चों के परिजन उच्च मृत्यु दर का दोष डॉक्टरों की लापरवाही और पुराने उपकरणों को देते हैं, पर अस्पताल के अधिकारियों के अनुसार इसकी वजह है जेके लोन में बड़ी संख्या में आने वाले रेफरल मामले. उल्लेखनीय है कि यह अस्पताल कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, सवाई माधोपुर और भरतपुर के निकटवर्ती इलाकों के साथ-साथ मध्यप्रदेश के कुछ जिलों के लिए भी तृतीयक या स्पेशलिस्ट अस्पताल की भूमिका निभाता है.

जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ. एएल बैरवा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे पास बहुत सारे इलाकों से मरीज आते हैं. मरीजों की संख्या बढ़ते जाने के बावजूद हमारे यहां मृत्यु दर में कमी आई है. इससे जाहिर होता है कि हमारी सेवाएं बहुत अच्छी हैं, तभी तो लोग हमारे अस्पताल में आते हैं.’

प्रतिशत आंकड़ों में देखा जाए तो 2014 में इस अस्पताल में दाखिल मरीजों में से 7.62 प्रतिशत की मौत हो गई थी. यह आंकड़ा 2015 में गिर कर 5.61 प्रतिशत पर आ गया.

‘ड्रिप में खून’

हालांकि मरीजों के परिजनों की आपबीती और अस्पताल के उपकरणों की स्थिति कुछ और ही कहानी बयां करती है.
दिसंबर की 23 और 24 तारीख के बीच अस्पताल में 10 बच्चों की मौत हुई. इनमें पद्मा रावल के पांच महीने का पुत्र तेजस शामिल था. रावल के अनुसार उनके बेटे को निमोनिया था और डॉक्टरों की लापरवाही के चलते उसकी जान गई.
उन्होंने कहा, ‘अस्पताल में इलाज के दौरान उसे मुंह में अल्सर हो गया और उसने खाना-पीना बंद कर दिया, और उसकी आंखों से लगातार पानी आ रहा था. जब भी मैं डॉक्टरों के पास जाती, वे मेरी बातों को अनसुनी करते हुए कहते कि डॉक्टर वो हैं कि मैं…’

रावल ने आगे कहा, ‘वे आकर ड्रिप लगा जाते, और उसे हटाना भूल जाते थे, और लगातार गुजारिश किए बगैर दोबारा देखने नहीं आते थे. एक बार तो ड्रिप में भी खून था. वे तभी मेरे बेटे को देखने आए जब उसका पेट फूल गया, और उसके बाद उसे आईसीयू में ले गए. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.’

भीलवाड़ा से अपने बेटे को जेके लोन लेकर आए मोहम्मद रफ़ीक़ की भी यही कहानी थी. उनके नवजात बेटे अब्दुल क़ादिर को 27 दिसंबर को पीलिया होने की बात पता चली. चार दिन बाद, पीलिया से उबरने के बाद, उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी.

A view of the JK Lon Hospital in Rajasthan's Kota. | Photo: Praveen Jain/ThePrint
राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल के बाहर का दृश्य | फोटो : प्रवीण जैन/दिप्रिंट

‘उसके बाद, डॉक्टरों ने कहा कि मामला गंभीर है और बच्चे को ताउम्र मूर्च्छा का सामना करना पड़ सकता है. मुझे लगता है संक्रमण के कारण उसकी हालत गंभीर हुई क्योंकि अस्पताल के आसपास बहुत गंदगी है.’

रफ़ीक़ ने कहा, ‘फिर उसे (बेटे को) आपातकालीन वार्ड में ले जाया गया, जहां आधे उपकरण काम नहीं करते हैं. उसे एक और नवजात के साथ वेंटिलेटर साझा करना पड़ा, और वेंटिलेटर की रेंज मशीन काम भी नहीं कर रही थी! जब मैं डॉक्टरों को बताने गया, तो उन्होंने मेरी बात को सीधे खारिज कर दिया.’

अस्पताल के उपकरणों के रिकॉर्ड के अनुसार 530 अलग-अलग उपकरणों – वेंटिलेटर, वार्मर, ईसीजी मशीन, डिफिब्रिलेटर, नेबुलाइज़र आदि – में से 213 ही काम करने लायक स्थिति में हैं.

Mohammad Rafiq's newborn son, sharing a ventilator with another infant. | Photo: Praveen Jain/ThePrint
मोहम्मद रफीक का नवजात बेटा जो किसी और के साथ वेंटिलेटर साझा कर रहा है| फोटो : प्रवीण जैन/दिप्रिंट

रफ़ीक़ ने ये भी दावा किया कि आपातकालीन कक्ष में, जहां चार बिस्तरों पर 11 बच्चों को रखा गया, चूहे घूम रहे थे.
तीन सप्ताह पहले पठान से आया नवजात अस्मा का परिवार यहां के इलाज से ‘असंतुष्ट’ होकर गुरुवार शाम अपनी बच्ची को यहां से हटाकर जयपुर के अस्पताल में भर्ती करा दिया.

A relative of newborn Asma, praying as an ambulance carrying the baby leaves for Jaipur. | Photo: Praveen Jain/ThePrint
नवजात असमा के रिश्तेदार बच्चे के लिए प्रार्थना करते हुए जिसे जयपुर भेजा जा रहा है| फोटो : प्रवीण जैन/दिप्रिंट

पठान की ही कलावती ने 15 दिसंबर को बच्चे को जन्म दिया. वह शिकायत करती हैं कि उन्हें ऐसे वार्ड में रखा गया जहां खिड़की भी सही नहीं है, सिर्फ एक जाली और पर्दा लगा है. उन्होंने कहा, ‘रात में सर्दी काफी बढ़ जाती है, जबकि मेरे पास अपने और बच्चे के लिए मात्र एक ही कंबल है.’

Kalawati at her ward in the JK Lon Hospital. | Photo: Praveen Jain/ThePrint
कलावती जिसने हाल ही में एक बच्चे को जन्म दिया है | फोटो : प्रवीण जैन/दिप्रिंट

Family members of children admitted in the JK Lon Hospital, waiting in a queue for food. | Photo: Praveen Jain/ThePrint

खाने के इंतजार में जेके लोन अस्पताल के बाहर खड़े लोग | फोटो : प्रवीण जैन/दिप्रिंट

‘आरोपों में सच्चाई नहीं’

डॉ. एएल बैरवा ने डॉक्टरों की लापरवाही के आरोपों को गलत बताया.

उन्होंने कहा, ‘डॉक्टरों की लापरवाही से मौत होने के आरोप में एक प्रतिशत भी सच्चाई नहीं है. ये सारे मामले हमारे पास बहुत नाजुक हालत में आए थे, जिनका इलाज कठिन था.’

बैरवा की बातों से सहमति जताते हुए अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. गोपीकिशन ने कहा, ‘इन बच्चों के इलाज में डॉक्टरों की तरफ से कोई लापरवाही नहीं हुई है. मामले की पड़ताल के बाद राज्य और केंद्र सरकार दोनों की ही रिपोर्टों में कहा गया है कि भर्ती किए गए बच्चों की स्थिति बेहद नाजुक थी.’

हालांकि जेके लोन अस्पताल के एक पूर्व अधीक्षक ने अपना नाम प्रकाशित नहीं किए जाने की शर्त पर कहा कि इन समस्याओं में से कइयों की वजह विभागाध्यक्ष (बैरवा) और पूर्व अधीक्षक एचएल मीणा के बीच समन्वय की कमी रही है. शिशुओं की मौत के मामलों के बाद दिसंबर में मीणा को पद से हटा दिया गया.

पूर्व अधीक्षक ने कहा, ‘दोनों में बिल्कुल नहीं बनती थी. उपकरणों की लागत के प्राक्कलन और खरीद जैसे नियमित कार्य भी नहीं हो पाते थे, क्योंकि दोनों के बीच शायद ही किसी तरह का संवाद होता था.’

पूर्व अधीक्षक के अनुसार उपकरणों के लिए आपूर्तिकर्ता से संपर्क करना, मूल्य निर्धारण और इस बारे में अधीक्षक को ईमेल करना विभागाध्यक्ष का काम है, लेकिन पिछले दो वर्षों में ये सब नहीं हुआ.

रिपोर्टों के अनुसार स्थिति के आकलन और ज़रूरी कार्रवाई के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को विशेषज्ञों की एक टीम रवाना की है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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