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Thursday, 19 December, 2024
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अचानक नहीं छिना गांधी परिवार का गढ़ अमेठी, संकेत पहले से ही थे

स्मृति ईरानी की सालों की मेहनत आखिर अमेठी में रंग लाई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उन्होंने लगभग 56 हजार वोटों से हरा दिया.

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लखनऊ/अमेठी: गांधी परिवार का गढ़ अमेठी भी हाथ से निकल गया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने लगभग 56 हजार वोटों से हरा दिया. स्मृति ईरानी की सालों की मेहनत आखिर अमेठी में रंग लाई. इस बार उन्होंने वो कर दिखाया जिसके बारे में सिर्फ सोचा ही जा सकता था. इसे जमीन पर उतारना आसान कतई नहीं था. ये इस चुनाव का सबसे बड़ा उलटफेर माना जा रहा है. लेकिन अमेठी के लोगों की मानें तो ये संकेत काफी समय से मिल रहे थे जो कि गांधी परिवार व उसके आसपास के लोग कभी समझ नहीं पाए.

2014 के चुनाव में स्मृति ईरानी राहुल गांधी से लगभग 1 लाख 7 हजार वोट से चुनाव हार गई थीं लेकिन 2004 व 2009 की तुलना में ये जीत फीकी मानी जा रही थी. असल में कहें तो स्मृति को जीत की संभावनाएं 2014 के बाद ही नजर आ गईं थी. केंद्र में मंत्री रहने के दौरान वह लगातार अमेठी आती रहीं. केंद्र सरकार में वह विवादों में भी आईं. उनका कद भी कम किया गया लेकिन ये उनका जज्बा ही था कि हार नहीं मानीं और अमेठी फतह कर इस चुनाव का सबसे बड़ा उलटफेर कर दिया.


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लगातार रखा अमेठी से जुड़ाव

अमेठी से लगातार पिछड़ रहे राहुल ने प्रेस कांफ्रेंस में भी अपनी हार मानते हुए कहा कि अब अमेठी की देखभाल स्मृति ईरानी करें. अमेठी ने अगर स्मृति को अपनाया है तो उसकी वजह भी है. 2014 में भी स्मृति ने पूरा जोर लगाया था लेकिन राहुल भारी पड़े लेकिन इस हार में स्मृति के लिए जीत का सूत्र छिपा था. उन्होंने राहुल की जीत का मार्जिन बहुत कम कर दिया था.

गौरीगंज के रहने वाले व्यापारी देवेंद्र की मानें पिछली बार स्मृति ने राहुल की जीत का अंतर घटकर करीब एक लाख वोटों का रह गया था. यहीं से भाजपा और स्मृति को महसूस होने लगा कि अमेठी की बाजी जीती जा सकती है. उनके इसी भरोसे ने आज उन्हें अमेठी में जीत दिला दी. स्मृति को मतगणना में लगातार बढ़त मिल रही था. शाम को उन्होंने ट्वीट भी किया- कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता …

पिछले पांच साल में स्मृति ने लगातार अमेठी से नाता बनाए रखा. स्मृति ने यहां के बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा की व्यवस्था की. कई छात्रों की शिक्षा का इंतजाम किया. इसी तरह उन्होंने अमेठी वासियों से कनेक्ट बनाया.

इलाके में प्रचार के लिए आईं स्मृति को मुंशीगंज के पश्चिम दुआरा गांव के खेतों में आग लगने की सूचना मिली. मामले की जानकारी मिलते ही वह आग बुझाने के लिए दौड़ पड़ीं और ग्रामीणों की मदद की. फायर ब्रिगेड की गाड़ी पहुंचने तक उन्होंने हैंडपंप से पानी भरा और बाल्टी लेकर ग्रामीणों के साथ आग बुझाने में डटी रहीं. स्मृति के इस अंदाज ने बता दिया था कि वह अमेठी के लोगों का दिल जीतने आई हैं.


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कोट टीम ने कटवा दी नाक

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी के लिए जो कोर टीम तैयार की थी उसी ने उनकी नाक कटवा दी. राहुल को वोटिंग वाले दिन ये टीम कहती रही कि अमेठी आसानी से जीत लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो राहुल के कार्यक्रम अमेठी के उन इलाकों में नहीं लगवाए जाते थे जहां सांसद निधि से विकास कार्य नहीं हुए हैं. यहां तक की राहुल से कौन मिल सकता है और कौन नहीं वो भी यही टीम निर्धारित करती थी. 2017 विधानसभा चुनाव में 5 से 4 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी तभी से संकेत मिल रहे थे कि कांग्रेस का ये गढ़ खतरे में है.

वहीं स्मृति ने लगातार संवाद कर कई पुराने कांग्रेसियों को भी अपनी ओर कर लिया. कांग्रेस की जमीन इस कारण से भी खिसकी. अमेठी की हार राहुल के लिए कभी न भुलाने वाला सपना साबित हो सकता है. इस सीट से उनके पिता राजीव गांधी, संजय गांधी चुने जाते रहे हैं. अंत में पिता की विरासत को राहुल गांधी संभाल नहीं सके. वहीं दूसरी ओर
इस जीत के साथ ही स्मृति का नए कैबिनेट में उनका कद बढ़ना तय हो गया है. स्मृति की इस जीत के चर्चे हर ओर हैं.

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