बसपा सुप्रीमो मायावती के अप्रैल के आखिरी में हरियाणा के रोहतक में की आने की संभावना जताई जा रही है. कहा जा रहा है कि मायावती कई सालों बाद रोहतक आएंगी. मायावती का कई साल बाद जाटों के गढ़ रोहतक मे रैली करने के पीछे का उद्देश्य साफ नहीं हो रहा है क्योंकि ना तो ये दलित बहुल एरिया है और ना ही इस सीट से गैर जाट कोई सांसद रहा है.
हरियाणा बसपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रकाश भारती ने दिप्रिंट को बताया, ‘मायावती हर चुनाव में हरियाणा आती रही हैं. हालांकि वो रोहतक में एक लंबे समय से नहीं गई हैं. लेकिन अप्रैल के आखिर तक वो हरियाणा में चुनाव प्रचार करने आएंगी.’
मुद्दों की बात करते हुए उन्होंने कहा,’ मोदी जी ने बेरोजगारी खत्म करने से लेकर, भ्रष्टाचार, काले धन को खात्मा करने तक ना जाने कितने वादे किए थे लेकिन उनमें से एक भी पूरा नहीं हुआ है. हम इन्हीं मुद्दों पर सरकार को घेरेंगे. उम्मीदवार की लिस्ट मायावती जी को भेज दी गई है. जैसे ही वहां से मुहर लगेगी हम अपने कैंडिडेट्स मैदान में उतार देंगे. दस की दस सीटों पर हमारी स्थिति मजबूत है.’
प्रकाश भारती के मुताबिक सोनीपत और भिवानी सीटें पूर्व भाजपा सांसद राजकुमार सैनी की नई पार्टी लसपा को दे दी गई हैं और बाकी 8 सीटें बसपा के खाते में हैं.
हरियाणा में फतेहाबाद और सिरसा में दलितों की संख्या सबसे ज्यादा है. सिरसा में 2014 लोकसभा में इनेलो के विधायक चरणजीत सिंह रोड़ी हैं. हरियाणा में करीब 19% प्रतिशत दलित हैं तो यूपी में करीब 22%. लेकिन बसपा हरियाणा में कभी भी मजबूत जनाधार नहीं बना पाई है. जबकि यूपी में बसपा बड़ी पार्टी है.
रोहतक- जाटों का गढ़
रोहतक लोकसभा सीट के विजेता और उपविजेता ज्यादातर जाट समुदाय के ही रहते हैं. 2014 में भी यही समीकरण दोहराई गई थी. जाट समुदाय यहां राजनीतिक और सामाजिक फ्रंट पर आगे रहता है. भूपिंद्र सिंह हुड्डा के बेटे यहां से लगातार तीन बार सांसद हैं.
रोहतक की सीट भी कांग्रेस का ही गढ़ रही है. यहां 1991 से भूपिंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा है. कांग्रेस ने यहां सिर्फ 1999 में चुनाव हारा है. यही वजह है कि सारी पार्टियां कांग्रेस के इस गढ़ में फतेह करने की दावेदारी कर रही हैं. भाजपा का इस सीट पर खास ध्यान है. यहीं से बसपा सुप्रीमो मायावती का अपनी रैली करने वाला रुचि पैदा कर रहा है.
बसपा का 2014 लोकसभा में प्रदर्शन
2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन 2009 से भी खराब रहा. पार्टी को केवल 4.6 प्रतिशत वोट हासिल हुए. जबकि 2009 में बसपा को 4.8% वोट मिले थे. लोकसभा की आरक्षित सीटों अंबाला और सिरसा पर भी बसपा के उम्मीदवार नहीं जीत सके. अंबाला सीट पर भाजपा के कैंडिडेट रतनलाल कटारिया ने करीब 50% वोटों से जीत हासिल की तो सिरसा में इनेलो के चंद्रजीत सिंह रोड़ी ने करीब 40% वोटों से सीट पर कब्जा जमाया. अंबाला की सीट पर बसपा के उम्मीदवार डॉक्टर कपूर सिंह को महज 8.4% वोट ही मिले. वहीं, सिरसा की सीट पर मांगेराम को 1.6% वोट मिले. अंबाला सीट पर सभी सांसद दलित समुदाय के रहे हैं तो रोहतक सीट पर सभी सांसद जाट समुदाय के.
बाकी सीटों पर भी बसपा चौथे या पांचवे नंबर पर रही. सोनीपत से सुमन सिंह का वोट शेयर 2.4% रहा तो रोहतक मे मनोज कुमार का 1.7%. महेंद्रगढ़–भिवानी लोकसभा सीट पर वेदपाल तंवर को 2.7% वोट मिले जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने इस सीट से 7% वोट हासिल किए थे.
गुड़गांव लोकसभा सीट पर बसपा उम्मीदवार धर्मपाल को 4.9% वोट मिले तो फरीदाबाद की सीट पर राजेंद्र वर्मा को 5.8%. गौरतलब है कि हरियाणा में कुल वोटर टर्न आउट 71% प्रतिशत रहा था.
बसपा का पहला और आखिरी सांसद रहे अमन नागरा
1998 में बसपा और इनेलो के बीच गठबंधन हुआ था. इस गठबंधन के दौरान ही बसपा के अमन नागरा सांसद चुने गए थे. अमन हरियाणा में बसपा के पहले और आखिरी सांसद हैं. नागरा नब्बे के दशक में हरियाणा में राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहे हैं. कहा जाता है कि बसपा को हरियाणा में जमाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. लेकिन बाद में उन्हें दरकिनार किया जाने लगा. उनके बाद बसपा किसी भी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई है. 2014 में खबर तो ये भी थी कि वो भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन टिकट नहीं मिला था.
गौरतलब है कि इनेलो किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है तो बसपा दलितों का. हरियाणा में इन दोनों ही वर्गों की संख्यात्मक ताकत होने का दावा करने के बावजूद दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत गिरा है.
बसपा ने साल 2018 में इनेलो से गठबंधन कर लिया था. इसी साल मायावती ने इनेलो के अभय सिंह चौटाला को राखी भी बांधी थी. 2019 के लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों की सांठ–गांठ चल रही थी कि जींद उपचुनाव के परिणाम ने दोनों के समीकरण को खत्म कर दिया. बसपा ने इनेलो से गठबंधन तोड़ लिया. ऐसा करने के पीछे बसपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रकाश भारती ने दिप्रिंट को बताया कि इनेलो में हुई फूट और जेजेपी के गठन से भाजपा को फायदा पहुंचता. इसलिए पारिवारिक फूट के चलते उन्होंने हाथ पीछे कर लिए.
फरवरी 2019 में बसपा ने भाजपा से अलग होकर नई पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बनाने वाले राजकुमार सैनी से गठबंधन कर लिया. इस गठबंधन के तहत बसपा 8 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो लसपा 2 पर. वहीं, लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद हो रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव में बसपा 35 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी तो लसपा 55 सीटों पर.
क्या है बसपा की विधानसभा में स्थिति
हरियाणा की 90 सीटों में से 17 सीटें रिजर्व (आरक्षित) हैं. 1991 के बाद से बसपा का कोई ना कोई विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचता रहा है. लेकिन बसपा की स्थिति बाकी स्थानीय पार्टियों से ज्यादा अच्छी नहीं रही है. इस बार आम आदमी पार्टी भी विधानसभा चुनाव लड़ने की दावा कर रही है. ऐसे में आरक्षित सीटों को देखते हुए बसपा इस साल होने वाले हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी अपनी स्थिति मजबूत करना चाहेगी. 2014 विधानसभा चुनाव में तीन बार के सांसद और पूर्व कांग्रेसी नेता अरविंद शर्मा को बसपा ने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था. लेकिन अरविंद अपनी दोनों सीटें हार गये और बसपा को सिर्फ एक सीट मिली. 2019 में अरविंद भाजपा में शामिल हो गए हैं.
BSP makes government. In future necessary. I pray for all that you always give vote to BSP. Jay bhim jaye BSP.