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Sunday, 19 May, 2024
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जया प्रदा की 25 साल की राजनीति, 5 पार्टियां और रिटर्न गिफ्ट में मिला ‘चरित्र हनन’

दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने अपने नाम का मतलब बताया- ‘जया का मतलब विजय. प्रदा का मतलब है प्रदान करने वाली. असली नाम तो ललिता रानी था.

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अब जया प्रदा को एक्टर टर्न्ड पॉलिटिशयन लिखना बंद कर देना चाहिए क्योंकि उन्हें राजनीति में आए 25 साल से ज्यादा हो गया है. 1994 में महज 32 साल की उम्र में सिनेमा छोड़ वो राजनीति में कदम रख चुकी थीं. जया पैदा आंध्र प्रदेश में हुईं, बॉलीवुड में पहचान बनाने मुंबई गईं और राजनीति के लिए उत्तर प्रदेश आईं. लगभग तीन दशक के राजनीतिक करिअर में 5 पार्टियां बदलीं. लेकिन 25 साल के राजनीतिक करिअर के बाद भी उन्हें पॉलिटिशियन के तौर पर नहीं देखा जा रहा. यहां तक कि आरोप लगाने के लिए उनके कामों को आधार बना उनका चरित्रहनन किया गया. दिप्रिंट के साथ बातचीत में जया खुद कहती हैं कि राजनीति में पुरुषों के वर्चस्व के बीच एक औरत का डटे रहना बहुत ही मुश्किल काम है. राजनीति में रहना युद्ध करने के समान है.

तेलुगु फिल्मों से बॉलीवुड और फिर राजनीति में पहुंचीं

13 साल की उम्र में तेलुगु फिल्मों से फिल्मी दुनिया में आने वाली जया कम उम्र में ही साउथ इंडिया की मशहूर अभिनेत्री बन गईं थीं. 1980 के दशक में हिंदी फिल्मों में गईं और कई हिट फिल्में दीं. आम तौर पर टिप्पणी करने वाले मशहूर फिल्म निर्देशक सत्यजित रे ने ‘जया को दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत कहा था.’

दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने अपने नाम का मतलब बताया– ‘जया का मतलब ‘विजय’. प्रदा का मतलब है ‘प्रदान’ करने वाली. असली नाम तो ललिता रानी था. मां ने यह नाम रखा था. लेकिन बाद में प्रोड्यूसर प्रभात रेड्डी ने नाम जया प्रदा रखा.’

जया बताती हैं कि फिल्मी दुनिया से जुड़े होने के कारण आंध्र प्रदेश के तत्कालीन फिल्म स्टार एनटी रामा राव के घर बचपन से ही आना-जाना होता था. बाद में उनके साथ फिल्में भी करने को मिलीं. 1994 में रामाराव ने एक सुबह फोन कर अपनी तेलुगु देशम पार्टी में शामिल होने का न्यौता दिया. जया ने पार्टी ज्वॉइन कर ली. बाद में रामाराव बीमार पड़ गए. पार्टी में कलह हो गई. उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी में तोड़फोड़ कर 1995 में मुख्यमंत्री पद हासिल कर लिया. इस बार जया ने चंद्रबाबू नायडू का साथ दिया. जया इस बारे में कहती हैं कि बहुत बार आपको निर्णय लेना होता है. चाहे दुखी मन से लें या मजबूत मन से. चंद्रबाबू ने उन्हें 1996 में राज्य सभा का सदस्य बनाया और पार्टी की महिला इकाई की लीडर भी.

कहा जाता है कि बाद में जब चंद्रबाबू ने एक एक्ट्रेस रोजा को तवज्जो देनी शुरू कर दी तब दोनों के बीच मतभेद होने शुरू हो गए. बाद में रोजा को पार्टी की महिला इकाई का लीडर बना दिया गया. जया बताती हैं, ‘चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बनने के बाद अपनी पार्टी के फाउंडर मेम्बर्स को भूल गये.’

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अमर सिंह ने यूपी, तो आज़म खान ने रामपुर की राजनीति से कराया परिचय

इस एपिसोड के बाद जया की अमर सिंह से दोस्ती हुई और वो समाजवादी पार्टी से जुड़ गईं. पर घर वालों ने जया को यूपी जाने से मना किया और कहा कि बेटी पागल हो गई है.


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दिप्रिंट
के साथ बातचीत में जया बताती हैं– ‘मैं फिल्म ‘सत्ता’ बनाना चाहती थी. मैंने इसबारे में अमर सिंह से कहा कि मुझे चंद्रबाबू नायडू को दिखाना है कि मैं अपना काम कर सकती हूं.’ अमर सिंह हंस पड़े और बोले कि फिल्म बनाने से चंद्रबाबू नायडू डरेंगे नहीं. इससे कोई फायदा नहीं होगा. ये सब क्या सोच रही हैं.’ फिर एक दिन उन्हें सिंह ने मुलायम सिंह यादव से मिलवाया. पर मुलायम जया को पहचान नहीं पाये क्योंकि वो अपने जमाने की अभिनेत्रियों को ही पहचानते थे. हमेशा प्रशंसकों से घिरी रहने वाली जया निराश हुईं पर मुलायम ने इसके बाद कभी फिर से ये अहसास नहीं होने दिया. इसी दौरान आज़म खान से भी मिलीं. अमर सिंह को जया अपना गॉड फादर कहतीं तो आज़म खान को बड़ा भाई.

दक्षिण भारत से यूपी की राजनीति में कदम रखने वाली जया अपने शुरुआती सफर के बारे में कहती हैं – ‘जब मैंने पहली बार हिंदी सीखकर भाषण दिया था तो वह टीवी पर चल रहा था. मैंने अपने मम्मीपापा को फोन कर टीवी देखने को कहा था. ये मेरा पहला राजनीतिक भाषण था जो मैंने हिंदी में दिया. मैंने माइक को इतनी जोर और जोश से पकड़ा हुआ था कि अगर माइक में जान होती तो वो मर जाता.’

इस भाषण के चार दिन बाद ही मुलायम सिंह यादव का जया प्रदा के पास फोन आया. उन्होंने उन्हें रामपुर से लड़ने के लिए कह दिया. जया को रामपुर के बारे में कुछ नहीं पता था. उन्होंने नक्शा मंगवाया और देखा कि किस जगह उन्हें भेजे जाने की बात चल रही है.

2004 के लोकसभा चुनावों में अमर सिंह और आज़म खान ने जया को जितवाने के लिए काफी मेहनत की. जया ने कांग्रेस की बेगम नूर बानो के खिलाफ चुनाव लड़ा था. बानो रामपुर के नवाबी खानदान की थीं और इस सीट से उनका परिवार कई बार जीत चुका था. इस चुनाव के दौरान जया ने अपने भाषणों की बढ़िया तैयारी की. आज़म खान ने इसमें भी पूरी मदद की. वो रैलियों में कहती थीं कि रामपुर को देखभाल की जरूरत है. वो रामपुर में ही घर भी ले लेंगी. चुनावी मीटिंग में चूड़ीदार कपड़े पहने, आंखों में काजल लगाए और सिर पर दुपट्टा लिए जाने लगीं. एक बेगम की तरह आदाब करना भी सीखा..

लड़कियों के कंधे पर हाथ फेर लेतीं, बच्चों को गोदी में उठा लेतीं और बूढ़ी औरतों का खयाल करतीं. अगर कोई सपा का मेंबर कविता पढ़ देता तो मुस्कुरा देतीं. धीरेधीरे लोकल अखबारों ने लिखना शुरू कियाजया का जादू.


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2004 में जया 85,000 हजार वोटों से जीतीं. इसके बाद जया ने रामपुर में काफी नाम कमाया. ग्रामीण क्षेत्र के लोग खुश दिखाई दिए. जया दूसरे नेताओं से अलग अपनी पहचान बना रही थीं. आम लोग उन्हें अप्रोच कर सकते थे. जया बताती हैं कि उन्होंने लोगों के लिए पुल बनवाए, ब्लड बैंक, एम्बुलेंस का इंतजाम किया, सड़कें बनवाई और स्कूल खुलवाए. नर्सिंग कॉलेज, लॉ कॉलेज इत्यादि खोला. फार्मेसी कॉलेज खोलने जा रही हैं. ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी रही हैं. एमपी लैंड्स फंड की बात करते हुए जया ने कहा कि ‘मैं अपने क्षेत्र के लोगों की जरूरतों का खयाल रखती थी.’

उधर, अमर सिंह की कल्याण सिंह से दोस्ती हो रही थी. कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद गिराने के समय यूपी के मुख्यमंत्री थे और इस घटना को होने से रोक नहीं पाए थे.

आज़म खान का मानना था कि कल्याण सिंह को माफ नहीं किया जा सकता. लेकिन अमर सिंह कल्याण सिंह को सपा में लाने की पूरी कोशिश कर रहे थे. कल्याण सिंह को भाजपा से निकाल दिया गया था. जया अमर सिंह के साथ खड़ी रहीं. आज़म खान इस वजह से नाराज़ हो गए. उसके बाद 2009 के चुनाव गए. सपा ने फिर जया प्रदा को टिकट दे दिया. खान की चिढ़ और बढ़ती गई. इस बाबत खान ने अफवाह उड़ानी शुरू कर दी कि जया की वजह से समाजवादी पार्टी टूटेगी. हालांकि जया दिप्रिंट को बताती हैं कि उन्हें नहीं पता कि आज़म खान किस बात से चिढ़े हुए हैं.

फिर वो हुआ, जिससे जया आत्महत्या के बारे में सोचने लगी थीं

आज़म खान ने शहरी क्षेत्र में माहौल बनाना शुरू कर दिया. इतनी अफवाहें, झूठे वीडियो और मॉर्फ तस्वीरें फैला दी गईं कि जया का रामपुर आना तक मुश्किल हो गया. आरोप लगे थे कि 2009 के चुनाव में आज़म खान ने खुले तौर पर रामपुर के लोगों को कांग्रेस को वोट देकर जया को हराने के लिए कहा था. खान के समर्थकों ने कथित तौर पर नारे लगाए थे ‘आजम खान की बात पे, मुहर लगेगी हाथ पे.’ आजम खान पर पार्टी के खिलाफ काम करने को लेकर सवाल उठने लगे. जया प्रदा ने ये भी आरोप लगाया कि आजम खान ने उन पर एसिड अटैक कराने की भी कोशिश की. अमर सिंह ने तो चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज कराई और आज़म खान को अरेस्ट करने की मांग भी की.

रामपुर के शहरी क्षेत्र में आज़म खान की अच्छी पैठ थी. जनता उनके कहने से सपा को हरवा भी सकती थी. लोगों को लग रहा था कि मुलायम सिंह ने अमर सिंह के लिए आज़म खान को छोड़कर अच्छा नहीं किया.


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लेकिन इस माहौल को जया आज भी नहीं भूलीं हैं. उनका कहना है कि आज़म खान ने उन्हें इतना मानसिक रूप से परेशान कर दिया कि अब जब पद्मावत फिल्म देखी तो मुझे खिलजी में आज़म खान ही दिखाई दे रहे थे. जिस तरह का बदला आजम खान मुझसे ले रहे हैं उससे खिलजी देखते ही मुझे उनका नाम ही ध्यान आता है. इस बयान पर आज़म ने जया को नाचने वाली तक कह दिया. वैसे आज़म खान वही व्यक्ति हैं जो स्मृति ईरानी के घर और पीएम नरेंद्र मोदी के घर के बीचसुरंग का खुलासाकिया था.

दिप्रिंट से हुई खास बातचीत में जया ने बताया, ‘आज़म खान ने मुझे रामपुर से भगाने के लिए फर्जी तस्वीरें फैलाई. मैं घर पर रोती थी. मुझसे सहन नहीं होता था. मैं अपना जिंदगी ही खत्म कर देना चाहती थी. लेकिन उस वक्त रोने वाली जया का बाद में नया जन्म हुआ और एक नई जया पैदा हुईं. उस किस्से ने मुझे इतना निडर बना दिया है कि अब मैं किसी से नहीं डरती. मुझे लगता है कि अब मेरा जया प्रदा का नाम सार्थक हुआ है.’

पार्टी से निकाली गईं, तमाम लांछन लगाये गये

अमर सिंह के साथ अपने रिश्ते को लेकर वो हमेशा कहती आई हैं कि सिंह उनके ‘गॉड फादर’ हैं और वो उन्हें राखी बांधती हैं. इसके बावजूद दोनों के रिश्ते को लेकर अफवाहें उड़ती रही हैं. जया बताती हैं कि ‘राजनीतिक लड़ाई कब एक औरत के चरित्र हनन में बदल गई, पता नहीं चला.’

जब उनकी मॉर्फ तस्वीरें और अमर सिंह के साथ उनके रिश्ते को लेकर झूठी खबरें फैलाई जा रही थीं तब वो आत्महत्या करने की सोच रही थीं. अमर सिंह उन दिनों बीमार थे और डायलिसिस पर थे. ऐसे समय में किसी भी नेता ने उनकी मदद नहीं की. एक इंटरव्यू में उस दौर का जिक्र करते हुए वो कहती हैं कि मुलायम सिंह जी ने एक बार फोन तक नहीं किया. मुझे मरने तक के खयाल रहे थे. जया बताती हैं कि जब आप फंस जाते हैं तो कोई मदद नहीं करता. मेरी तस्वीरें जब फैलाई जा रही थीं तो पार्टी के लोगों ने भी मदद नहीं की थी.

2010 में जया प्रदा और अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से निकाल दिया गया. इसके बाद अमर सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच ज्वॉइन कर लिया. यूपी में इस पार्टी का खास प्रभाव नहीं पड़ा और ये पार्टी भंग कर दी गई. 2012 में बाद जया ने मुलायम सिंह यादव पर गुंडों को पनाह देने का आरोप भी लगाया और साथ ही आजम खान के गुरूर को तोड़ने की बात भी कही.

2013 में उस जगह से राजनीति करना चाहती थीं जहां पैदा हुईं

साल 2013 में खबर आई थी कि जया प्रदा आंध्रप्रदेश की राजनीति में कमबैक करना चाहती थीं. क्योंकि वो आगामी 2014 लोकसभा चुनाव एस विवेकानंद की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस में शामिल होकर अपने राज्य की सीट राजामुंदरी से लड़ना चाहती थीं. राजामुंदरी वही जगह है जहां से उन्होंने अपने एक्टिंग का करियर कम उम्र में शुरू किया था. लेकिन बात बनी नहीं और 2014 को लोकसभा चुनाव उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल से बिजनौर की सीट से लड़ा. मोदी लहर के चलते वो भाजपा के कैंडिडेट से वो हार गई.


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हालांकि इसके बाद 2015 में जया ने भाजपा में जाने की इच्छा जाहिर करनी शुरू कर दी थी. उनका कहना था कि वो नरेंद्र मोदी की लीडरशिप से प्रभावित हैं. गौरतलब है कि अमर सिंह ने भाजपा में शामिल होना चाहते थे और कुछ नेताओं से इस बात को लेकर संपर्क में भी थे.

 रामपुर की जनता कितना स्वीकार करेगी जया प्रदा को?

रामपुर के रंजन कुमार का मत है कि आजम खान शहरी क्षेत्र में पॉपुलर हैं और जया प्रदा ग्रामीण क्षेत्र में. रंजन कहते हैं कि लोग जया के मिलनसार व्यवहार से काफी प्रभावित हैं. वो अन्य नेताओं की तरह पहुंच से बाहर नहीं हैं. दक्षिण भारत से होने के बावजूद वो यूपी के चालढाल से वाकिफ हैं. उन्होंने कहा भी कि जब रामपुर में होती हैं तो सिर्फ साड़ियां ही पहनती हैं. मुंबई जाने पर ही जींस पहन पाती हैं. लेकिन इस बात से उन्हें कोई शिकायत नहीं है.

जया प्रदा इस बाबत दिप्रिंट को बताती हैं– ‘रामपुर मैं पिछले पांच साल से नहीं गई क्योंकि मैं सांसद नहीं थी और सपा से मेरा जुड़ाव भी खत्म हो गया था. पर उसके पहले के दस साल मैंने काम किया है और 2014 के चुनाव में मोदी लहर में भी मुझे अच्छे खासे वोट मिले थे. अब तो मेरे साथ नेशनल लेवल की पार्टी है, कार्यकर्ता हैं और रामपुर की जनता है. मेरा काम लोगों को पता है तभी तो भारतीय जनता पार्टी ने मुझ पर भरोसा दिखाया. फिल्म स्टार होने के नाते आप कितनी बार जीत सकते हैं? असली पहुंच तो जनता के दिल में होती है.’

जया बताती हैं कि सिनेमा और टीवी में काम करना, बिजनेस चलाना, स्कूलकॉलेज चलानाइन सबके बीच खुद के लिए वक्त नहीं मिलता. मेरा सारा समय जनता के लिए ही है और मैं जनता के लिए हूं.

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