scorecardresearch
Wednesday, 6 November, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावशरद पवार के निशाने पर कौन? केसरिया गठबंधन या कांग्रेस

शरद पवार के निशाने पर कौन? केसरिया गठबंधन या कांग्रेस

पवार महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं. जब केंद्र की राजनीति में थे तब उन्होंने चंद्रगुप्त बनने की कोशिश की मगर दूसरे चाणक्य नरसिंहा राव ने उनकी दाल नहीं गलने दी.

Text Size:

तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद चर्चा है कि राहुल गांधी ‘पप्पू’ नहीं रहे वे राजनीतिक तौर पर परिपक्व हो गए हैं. मोदी और अमित शाह जैसे दिग्गजों को धूल चटा सकते हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस भी इसी भुलावे में रही मगर नेता वह नहीं होता जो विरोधियों से आपको बचाए बल्कि वो होता है जो अपनों से भी रक्षा करे.पहली बार चुनाव के दौरान कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं को अहसास हो रहा है कि वो देखते रहे और पवार की पावर कांग्रेस को चर गई. राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि कांग्रेस का राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन की चाबी पवार के पास है. वे अकसर इन चाबियों का इस्तेमान करते रहते हैं. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को महाराष्ट्र की ज़मीनी राजनीति का पता ही नहीं है. वह पवार के हाथों में खेलती रहती है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने महाराष्ट्र दौरे में सबसे पहले पवार को अपना निशाना बनाया क्योंकि उनका मानना है कि पवार ने राज्य में कांग्रेस-राष्ट्रवादी गठबंधन बनाने में बहुत दिलचस्पी ली है और इस समय गठबंधन की चाबियां वही घुमा रहे होंगे. उनका अंदाज़ काफी हद तक सही भी है.


यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र की राजनीति में नफरत में बदलता रहा है चाचा-भतीजे का रिश्ता


महाराष्ट्र में कांग्रेस की हालत कितनी खस्ता है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुंबई कांग्रेस में आपसी गुटबाज़ी इतनी बढ़ गई थी कि चुनाव से एक महीने पहले नेतृत्व को मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष को बदलने का फैसला करना पड़ा. संजय निरुपम की जगह मिलिंद देवड़ा को मुंबई प्रदेश का अध्यक्ष बनाना पड़ा. कांग्रेस बिना नेताओं की पार्टी बन गई है या फिर जो नेता हैं वो असहाय है. कई नेताओं जिनमें कांग्रेस विधायक दल के नेता राधाकृष्ण विखे पाटील भी हैं,  को लगता है कि राष्ट्रवादी के साथ गठबंधन करने में जल्दबाज़ी की गई. सही सीटों का चुनाव नहीं किया गया.

अहमदनगर की सीट महागठबंधन बनने के बाद कांग्रेस के पास चली गई. कांग्रेस के नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटील का पुत्र इस सीट पर लड़ना चाहता था, मगर यह सीट कांग्रेस के पास नहीं थी. इसलिए वह भाजपा में शामिल हो गये और इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के पोते प्रतीक पाटिल सांगली से लड़ना चाहते थे पर उन्हें भी टिकट नहीं मिला.  इसलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी मगर कोई उन्हें मनाने तक नहीं गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण हैं मगर वे इतना असहाय महसूस करते हैं कि उन्होंने एक बार बयान दिया कि उन्हें तो कोई पूछता ही नहीं.वे इस्तीफा देने की सोच रहे हैं.

उधर औरंगाबाद में पार्टी के विधायक और ज़िला कांग्रेस के अध्यक्ष अब्दुल सत्तार ने पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ बगावत का झंडा खड़ा कर दिया है और पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. कांग्रेस की नीति देशभर में महागठबंधन बनाने की थी और उसके लिए ज़्यादा से ज़्यादा दलों से समझौता करने की थी. मगर महाराष्ट्र में मुख्यरूप से कांग्रेस और राष्ट्रवादी  कांग्रेस का ही गठबंधन हो पाया. प्रकाश आंबेडकर और एमआईएम की वंचित बहुजन अघाडी के साथ गठबंधन की बात बनी नहीं. इससे सेकुलर वोटों का विभाजन होना लाजिमी है.


यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र में क्यों हाशिए पर हैं दलित पार्टियां


कांग्रेस की यह हालत बनाने में पवार की कूटनीति की भी भूमिका रही है. पवार महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं. जब केंद्र की राजनीति में थे तब उन्होंने चंद्रगुप्त बनने की कोशिश की मगर दूसरे चाणक्य नरसिंहा राव ने उनकी दाल नहीं गलने दी. पवार जब तक कांग्रेस और महाराष्ट्र की राजनीति में रहे तब तक चाणक्य भी रहे और चंद्रगुप्त भी. मगर जबसे उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत करके राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई है तब से लोग कई तरह की बातें कहने लगे हैं, मसलन उनकी पार्टी का नाम राष्ट्रवादी है मगर उसका प्रभाव महाराष्ट्र के बाहर कहीं नहीं है. महाराष्ट्र में भी पश्चिमी महाराष्ट्र ,उसमें भी मराठा जाति में.

इस बार उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है पर उन्होंने राजनीति नहीं छोड़ी है. अब वे अपने परिवार के लिए राजनीति कर रहे हैं. सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत करने के बाद सत्ता के लिए पवार ने भले ही कांग्रेस से हाथ मिला लिया हो मगर उनकी लगातार एक ही नीति रही है कि कांग्रेस को कमज़ोर और नेता विहीन बनाया जाए ताकि ऐसे माहौल में अपने भतीजे अजीत पवार को मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल कराया जा सकता है. इसके लिए पवार की नीति रही है कांग्रेस के सभी बड़े राजनीतिक परिवारों को निष्प्रभावी किया जाए.

इस मामले में सबसे ताज़ा उदाहरण है राधाकृष्ण विखे पाटिल का.अहमदनगर का विखे पाटिल घराने की चार पीढ़ियां अस्सी साल से महाराष्ट्र के राजनीति, सहकारिता और विकास के लिए काम करती रही हैं. कांग्रेस के विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल का बेटा सुजय पिछले दो साल से लोकसभा चुनाव जीतने के ले काम कर रहा था. मगर अहमदनगर की सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस के हिस्से गई. पवार ने जानबूझकर राष्ट्रवादी कांग्रेस के लिए यह सीट सुरक्षित की.अब सुजय के लिए कांग्रेस से लड़ पाना ही संभव नहीं रहा तो उसे आखिरकार भाजपा में जाना पड़ा. उसके पिता राधाकृष्ण विखे पाटिल कांग्रेस में संदेह के घेरे में आ गए है. वे भी जल्दी ही कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल होने वाले हैं. वे नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करेंगे.


यह भी पढ़ें : लोकलुभावन नीतियां नहीं कृषि को चाहिए सुधार और बाज़ार


इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस नें महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण को पत्र लिखकर कहा है कि अहमदनगर में राष्ट्रवादी  कांग्रेस की उम्मीदवार संग्राम जगताप मैदान में है मगर राधाकृष्ण विखे पाटिल अपने बेटे और भाजपा के उम्मीदवार सुजय पाटिल का प्रचार कर रहे हैं. चैनलों पर कह रहे है कि इस सीट पर भाजपा शिवसेना गठबंधन ही जीतेगा. इस तरह पवार ने कांग्रेस के एक ताकतवर राजनीतिक घराने को कमज़ोर किया. उसे अपना अस्तित्व बचाने के लिए कांग्रस छोड़कर भाजपा की शरण में जाने को मजबूर कर दिया. इसी तरह वसंतदादा पाटिल के परिवार, मोहीते पाटिल परिवार और विखे पाटिल परिवार को कमज़ोर कर शरद पवार ने  कांग्रेस को कमज़ोर कर दिया, यह निष्कर्ष निकालना गलत नहीं होगा.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यंमंत्री शंकरराव चव्हाण के बेटे अशोक चव्हाण कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के क संभावित उम्मीदवार हैं.वे नांदेड़ की लोकसभा सीट से अपनी पत्नी को खड़ा करके खुद विधानसभा लड़ना चाहते थे.अशोक चव्हाण के प्रभाव और लोकप्रियता के कारण उनकी पत्नी जीत भी जाती मगर कांग्रेस आलाकमान के किसी ने कान भरे और अशोक चव्हाण को निर्देश दिया गया कि उन्हें ही लोकसभा का चुनाव लड़ना है. कहा जा रहा है कि यह सब पवार के इशारे पर हुआ है.

कांग्रेसी मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल की सरकार गिराने के बाद पूरगामी लकशाही अघाडी (पुलोद) की सरकार बनने के बाद के कालखंड में वसंत दादा पाटिल और उनका गुट पवार के निशाने पर था. 1999 में वसंत दादा का बेटा प्रकाश बापू पाटिल कांग्रेस की तरफ से चुनाव में खड़ा हुआ तब पवार ने वसंतदादा के भतीजे के बेटे मदन पाटिल को राष्ट्रवादी  कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतारा इससे वसंतदादा के घर की फूट और गंभीर हो गई.


यह भी पढ़ें: उर्मिला मातोंडकर को बलि का बकरा बना रही है कांग्रेस पार्टी ?


कांग्रेस में फूट है, गुटबाज़ी है फिर भी कांग्रेस इससे उबरती रही है. मगर पिछले 20सालों से पार्टी को पवार के दावपेचों का ग्रहण लग गया है जबतक यह ग्रहण नहीं छूटता तबतक कांग्रेस का उबर पाना मुस्किल है.एक ज़माने में वसंतदादा पाटिल के खिलाफ बगावत करके शरद पवार ने अपनी पुलोद की सरकार बनाई थी . वे फिर कांग्रेस में लौटे फिर 1999 में सोनिया के खिलाफ बगावत करके राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना की. इसके बाद पवार ने 1999 में छह, 2004 में नौ, 2009 में आठ और 2014 में चार सीटें हासिल कीं. कांग्रेस नें 1999 में 10, 2004 में 13, 2009 में 17 और 2004 में दो सीटें हासिल की. मगर पवार ने कांग्रेस में फूट डालने के बाद अपने दांवपेचों से दिग्गजो को चारों खाने चित्त किया.

राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि कांग्रेस की इस स्थिति के लिए पवार की धूर्त राजनीति ही ज़िम्मेदार है.उन्होंने एक एक कर कांग्रेस के कई राजनीतिक घरानों को चित्त कर दिया. इस कारण कई बार कांग्रेसियों को यही समझ में नहीं आता कि पवार शिवसेना भाजपा से लड़ रहे हैं या कांग्रेस से.वैसे कुछ जानकार कहते है पवार यह साबित करना चाहते हैं घरानों में घराना पवार घराना.

(लेखक दैनिक जनसत्ता मुंबई में समाचार संपादक और दिल्ली जनसत्ता में डिप्टी ब्यूरो चीफ रह चुके हैं। पुस्तक आईएसआईएस और इस्लाम में सिविल वॉर के लेखक भी हैं )

 

share & View comments

1 टिप्पणी

Comments are closed.