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Friday, 29 March, 2024
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बिहार: एक समय के उभरते सितारे नीतीश कुमार, अपनी ही छवि से जमीन पर समर्थन खो रहे हैं

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक समय में संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था. लेकिन इस चुनाव में वो जमीन पर अपनी राजनीतिक पकड़ खो रहे हैं.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) के नेता नीतीश कुमार जिन्हे संभावित मज़बूत प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखा जाता था इस चुनाव में वह उतना समर्थन हासिल नहीं कर पा रहे हैं.

उनकी जनसभाओं में आम लोगों की उपस्थिति प्रभावशाली नहीं है और जमीन पर राजनीतिक पृष्ठभूमि से गायब हो रहे हैं. सुशासन बाबू के बारे में सवाल पूछने पर लोगों की उदासीन प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. सुशासन बाबू की छवि उन्होंने बहुत मेहनत से बनायी थी. स्थानीय लोग बिगड़ती कानून व्यवस्था और राज्य की नौकरशाही और पुलिस के बारे में मुखर होकर बोल रहे हैं.

नाम न बताने की शर्त पर पटना में शिक्षा से जुड़े एक व्यक्ति ने दिप्रिंट को बताया ‘नीतीश की ताकत लालू यादव का डर था. यह धीरे-धीरे काफी कम हो गया है, इसलिए नीतीश की राजनीतिक पूंजी सिकुड़ गई. भाजपा अब नीतीश की खोयी हुई जमीन हासिल कर रही है.’

शराबबंदी जुआ

नीतीश को उम्मीद थी कि 2016 में शराबबंदी लागू करने के बाद लोगों की खासकर महिलाओं की सद्भावना कमाई होगी. लेकिन इसने केवल एक अवैध शराब उद्योग और माफिया को जन्म दिया है.

‘अगर आप सिवान (बिहार) में एक ‘फ्रूटी’ (जूस) के लिए पूछें तो यह आपके मुंह में एक कड़वा स्वाद देगा.’

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उत्तर प्रदेश से तस्करी किए गए शराब से भरे पैकेट को दिया जाने वाला लोकप्रिय नाम से शराब की क्वार्टर बोतल (175 मिलीलीटर शराब की बोतल) को आसानी से उपलब्ध ‘फ्रूटी’ द्वारा बदल दिया जा सकता है. पटना में अपने होटल का नाम बताओ और कोई भी टैक्सी चालक आपको पान की दुकानों और वेंडरों के जरिये आपूर्ति करने वाले विक्रेताओं का स्थान बताएगा. डोर-टू-डोर शराब वितरण सेवा भी आश्चर्यजनक रूप से बिहार में चल रहा है.

ऐसा नहीं है कि लालू-राबड़ी शासन की तरह बिहार अंधेरे युग में वापस चला गया हो.


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राज्य की अर्थव्यवस्था और प्रशासन में बदलाव लाने के लिए नीतीश को सुशासन बाबू कहा गया था. अर्थव्यवस्था अभी भी अच्छा कर रही है और 2017-18 में विकास दर 11.3 प्रतिशत रही. जो देश में सबसे अधिक है. पिछले वर्ष यह 9.9 प्रतिशत थी.

2017-18 में राजस्व का अधिशेष बढ़कर 14,823 करोड़ रुपये हो गया, जो 2013-14 में 6,441 करोड़ रुपये था.

बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार 2017-18 में 28,907 करोड़ रुपये के कुल पूंजी परिव्यय में 19 प्रतिशत सड़कों और पुलों पर  और 24 प्रतिशत बिजली परियोजनाओं पर और 9 प्रतिशत सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण पर खर्च किया गया.

पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक पी.पी. घोष ने दिप्रिंट को बताया कि नीतीश कुमार सरकार ने सड़क और बिजली क्षेत्रों में ‘असाधारण रूप से अच्छा’ काम किया है.

उन्होंने कहा ‘बिहार की अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, लेकिन इस वृद्धि का सामाजिक प्रभाव संतोषजनक नहीं है क्योंकि यह विकास शहर केंद्रित है.

दरभंगा में एक पंखा बेचने वाले ने कहा कि वह पांच साल पहले एक दिन में दो से तीन पंखे ही बेच पाता था. लेकिन अब वह 15-20 पंखे रोज बेचता है. रेफ्रिजरेटर और कूलर की बिक्री भी इसी तरह बढ़ी है. क्योंकि लोगों को हर दिन 18-20 घंटे बिजली मिलती है. राज्य में गड्ढे वाले राजमार्ग अतीत की बात हैं. गांव की सड़कें भी अब पक्की हैं. पेयजल उपलब्ध कराने की योजना भी जोरों पर है.

बीएसपी (बिजली-सड़क-पानी) कारक, जिसे अतीत में कई सरकारों को बंद कर दिया था. इसकी वजह से बिहार में सत्ता के पक्ष में लहर पैदा कर रहा है. लेकिन, नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) को मुख्य लाभार्थी के रूप में नहीं देखा जा रहा है. क्योंकि मोदी को बीएसपी की वापसी का श्रेय दिया जा रहा है.

पुनरुत्थानवादी भाजपा

बिहार में सत्ता में आने के लिए भाजपा ने नीतीश पर तीखा हमला किया. लेकिन अब इसके उलट होने के संकेत हैं. गैर-यादव ओबीसी, पिछड़ा वर्ग और महादलित जिन्होंने जद (यू) का मूल गठन किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के कारण भाजपा की ओर बढ़ रहे हैं. नीतीश अपने जाति समूह कुर्मियों के समर्थन को बरकरार रखते हैं, जो राज्य की आबादी का 4 प्रतिशत हैं. लेकिन अन्य जातियों और उप-जातियों के बीच उनकी अपील व्यर्थ है.

राजद नेता शिवानंद तिवारी ने हाल ही में मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए कहा कि नीतीश कुमार जिन्होंने एक बार मोदी की पंजाब रैली में हाथ उठाने के बाद गुस्से में प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. मानो उनकी धर्मनिरपेक्षता कलंकित हो गयी हो अब वो मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं.


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नाम न बताने की शर्त पर शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े अन्य व्यक्ति ने कहा, ‘नीतीश की यूएसपी एक राजनेता के रूप मे थी. लेकिन नीतीश का भाजपा को लालू यादव के साथ हाथ मिलाने के लिए छोड़ देना और फिर एनडीए में वापस लौटने के लिए उन्हें छोड़ देना सत्ता के लिए उनकी विश्वसनीयता को ख़राब किया है. उनकी मोदी के साथ घृणा और फिर बढ़े प्रेम ने उनकी मदद नहीं की.

नीतीश ने भाजपा के साथ सीटों के बंटवारे की बातचीत के दौरान एक कठिन सौदेबाजी की. भाजपा को पांच सीट देने के लिए मजबूर किया गया था जो भाजपा ने 2014 में जीता था. भाजपा और जद (यू) बिहार में 17- 17 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि दोनों दलों ने 2020 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन को जारी रखने का अपना इरादा घोषित किया है. साथ ही, दोनों दलों में कई संदेह हैं. जो सोचते हैं कि नीतीश की गिरती लोकप्रियता का ग्राफ आम चुनावों के बाद भाजपा को फिर से विचार करने पर मज़बूर कर सकता है.

बिहार के उप मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील मोदी ने 2020 में गठबंधन पर फिर से विचार करने की संभावना से इनकार किया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि नीतीश कुमार अभी भी बहुत लोकप्रिय हैं. बाद में फिर से विचार करने का सवाल ही कहां है?

लेकिन यह लोकसभा चुनाव है और बिहार विधानसभा चुनाव अभी 18 महीने दूर है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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