(स्टीफन नैगी, इंटरनेशनल क्रिश्चन यूनिवर्सिटी)
तोक्यो, 23 मई (360इन्फो) दुनियाभर में विचारों का टकराव बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते विभिन्न देशों के बीच नयी-नयी साझेदारियां कायम होती देखी जा रही हैं। इन साझेदारियों के बनने से एक नयी वैश्विक व्यवस्था के आकार लेने की संभावना बढ़ती जा रही है।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी इस सप्ताह होने वाले ‘क्वॉड’ सम्मेलन से पहले इसी तरह के टकराव भरे मूड में दिख रहे हैं। उन्होंने सम्मेलन के मेजबान जापान से कहा है कि वह ”दूसरों के मामलों में टांग न अड़ाए।”
वांग यी की इस टिप्पणी के जरिये उन देशों की बीच कायम होते गठबंधनों और सुरक्षा साझेदारियों से चीन के सामने पेश खतरों के भांपा जा सकता है, जिन्हें वह प्रभावित करना चाहता है।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से न केवल अमेरिका-ईयू सुरक्षा सहयोग को मजबूती मिली है बल्कि इससे जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया ने भी सहयोग के लिये हाथ बढ़ाया है। ऐसा ही एक गठबंधन है ‘क्वॉड’, जिसको लेकर चीन चिंतित है। ‘क्वॉड’ में अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इस गठबंधन का मुख्य मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने हितों की सुरक्षा बताया जाता है।
हालांकि चीन का मानना है कि इस गठबंधन का मकसद उसे घेरना है। ठीक ऐसा ही एक गठबंधन ‘ऑकस’ है। इस गठबंधन में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं। इस गठबंधन को लेकर भी चीन का यही मानना है। ‘क्वॉड’ और ‘ऑकस’ किसी न किसी तरह एक दूसरे के जुड़े हुए हैं।
चीन और अमेरिका व उसके भागीदारों के बीच चल रही इस प्रतिस्पर्धा का विजेता डिजिटल अर्थव्यवस्था के नियमों व अर्थव्यवस्थाओं और हमारे जीवन में सरकार की भूमिका को परिभाषित करेगा।
साल 2017 और 2016 में, चीन ने क्रमश: नए राष्ट्रीय खुफिया और साइबर सुरक्षा कानूनों को अपनाया। कानूनों के अनुसार ”नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग करें।”
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का मानना है कि इंटरनेट, मीडिया और व्यापार को सीसीपी के हितों की सेवा करनी चाहिए। अगर चीन मानकों की यह प्रतिस्पर्धा जीत जाता है तो हिंद-प्रशांत हितधारकों के लिए इसके परिणाम वास्तविक होंगे।
‘ऑकस’ यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि चीन क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर मानक स्थापित करने की हैसियत हासिल न करे।
चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) अपने प्रौद्योगिकी कार्य समूहों, नियम-आधारित व्यापार के प्रति प्रतिबद्धता, आपूर्ति श्रृंखलाओं व बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी को समर्थन देकर ‘ऑकस’ को और मजबूत करता है। ‘क्वॉड’ और ‘ऑकस’ के अलावा के अलावा भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई छोटी-छोटी साझेदारियां कायम हुई हैं, जिनका मकसद इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करना है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में युद्ध की स्पष्ट संभावना बनी हुई है। चिंता की मुख्य वजह चीन द्वारा ताइवान को जबरन अपने क्षेत्र में मिलाने या ताइवान द्वारा स्वतंत्रता की एकतरफा घोषणा करना है। दक्षिण चीन सागर में आकस्मिक संघर्ष और पूर्वी व दक्षिणी चीन सागर दोनों में ‘ग्रे जोन’ का संचालन और कानून का उपयोग भी इस क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करता है।
इस जोखिम से निपटने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, ताइवान और दक्षिण पूर्व एशियाई देश अमेरिका के साथ और उसके बिना बहुस्तरीय और बहुराष्ट्रीय साझेदारी में खुद को जोड़ने की कोशिशें जारी रखे हुए हैं। इन भागीदारियों में न केवल सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता जतायी गई है बल्कि इसमें व्यापार, प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचा और कनेक्टिविटी को लेकर भी अच्छे प्रावधान हैं।
इनका उद्देश्य एक पारदर्शी, नियम-आधारित क्षेत्र का निर्माण करना है जो शासन, प्रौद्योगिकी और सरकार की उचित भूमिका को समझने वाले स्वतंत्र व खुले समाज को दर्शाता है।
(360इन्फो)
जोहेब मनीषा
मनीषा
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