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Monday, 30 September, 2024
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अंतरिक्ष गुट धरती पर वर्चस्व की तर्ज पर अंतरिक्ष में प्रतिद्वंद्विता बढ़ाएंगे

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(स्वेतला बेन-इजाक, असिसटेंट प्रोफेसर ऑफ स्पेस एंड इंटरनेशनल रिलेशंस, एयर यूनिवर्सिटी)

मोंटगोमरी (अमेरिका), 23 अप्रैल (द कन्वरसेशन) धरती पर संघर्ष होने के दौरान भी ऐतिहासिक रूप से अंतरिक्ष राष्ट्रों के बीच सहयोग का एक क्षेत्र रहा है।

लेकिन पिछले दशक की प्रवृत्ति से यह पता चलता है कि अंतरिक्ष में सहयोग की प्रकृति बदल रही है और यूक्रेन पर रूस के हमले ने इन बदलावों की गति बढ़ा दी है।

मैं अंतरराष्ट्रीय संबंधों की एक शोधार्थी हूं, जो अंतरक्षि में शक्तियों के बंटवारे का अध्ययन कर रही है–अंतरिक्ष में मुख्य प्रतिभागी कौन हैं, उनकी क्या क्षमताएं हैं और वे किनके साथ सहयोग करने का फैसला करेंगे।

कुछ विद्वानों ने एक ऐसे भविष्य का पूर्वानुमान किया है ,जिसमें एक ही देश विभिन्न स्तर पर वर्चस्व रखता है, जबकि अन्य विद्वान एक ऐसे परिदृश्य के उभरने का अनुमान जता रहे हैं जिसमें वाणिज्यिक प्रतिष्ठान राष्ट्रों को एकजुट करेंगे।

हालांकि, मेरा मानना है कि भविष्य कुछ अलग हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में धरती पर समान रणनीतिक हित वाले राष्ट्रों के समूह अंतरिक्ष में अपने हितों को बढ़ाने के लिए एकजुट हुए हैं, जिसे मैं ‘स्पेस ब्लॉक्स’ (अंतरिक्ष गुट) नाम देना चाहूंगी।

राष्ट्र नीत अंतरिक्ष कोशिशों से लेकर सहयोग तक:

अमेरिका और सोवियत संघ का शीत युद्ध के दौरान अंतरिक्ष गतिविधियों में वर्चस्व था। जमीन पर तनाव रहने के बावजूद दोनों देशों ने अंतरिक्ष में संकट पैदा होने को टालने के लिए सावधानीपूर्वक काम किया और यहां तक कि अंतरिक्ष में कई परियायेजनाओं में सहयोग भी किया।

जब और भी देशों ने अपनी अंतरिक्ष एजेंसी विकसित कर ली, तब कई अंतरराष्ट्रीय सहयोगी समूह उभरे।

इनमें बाहरी अंतरिक्ष मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय, बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति और अंतरिक्ष डेटा प्रणालियों के लिए परामर्शदात्री समिति शामिल हैं।

वर्ष 1975 में 10 यूरोपीय राष्ट्रों ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का गठन किया। अमेरिका और रूस ने 1998 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए हाथ मिलाया, जिसमें अब 15 देश सहयोग कर रहे हैं।

इन बहुराष्ट्रीय उद्यमों का मुख्य जोर वैज्ञानिक सहयोग और डेटा के आदान-प्रदान पर रहा है।

अंतरिक्ष गुट का उभरना:

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जिसमें अब 22 राष्ट्र शामिल हैं, पहला अंतरिक्ष गुट माना जा सकता है।

शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इस तरह के शक्ति ढांचे की ओर कहीं अधिक घोषित रुख देखा जा सकता है। धरती पर हित साझा करने वाले देशेां ने अंतरिक्ष में विशेष अभियान के लिए हाथ मिलाना, अंतरिक्ष गुट बनाना शुरू कर दिया है।

पिछले पांच वर्षों में विभिन्न स्तर की अंतरिक्ष क्षमताओं के साथ कई नये अंतरिक्ष गुट उभरे हैं।

इनमें 55 सदस्य देशों के साथ अफ्रीकी अंतरिक्ष एजेंसी, सात सदस्यों वाली लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियाई अंतरिक्ष एजेंसी और पश्चिम एशिया के 12 सदस्य देशों वाली अरब अंतरिक्ष समन्वय समूह शामिल हैं।

ये समूह राष्ट्रों को अपने-अपने गुटों में न सिर्फ करीबी सहयोग करने की अनुमति देते हैं, बल्कि एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा भी करते हैं। दो हालिया गुट-आर्टेमिस संधि और चीन-रूस चंद्रमा समझौता-इस तरह की प्रतिस्पर्धा के उदाहरण हैं।

चंद्रमा के लिए दौड़:

आर्टेमिस संधि अक्टूबर 2020 में की गई थी। इसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा और वर्तमान में इसके 18 सदस्य देश हैं।

इस समूह का लक्ष्य 2025 तक चंद्रमा पर मानव को ले जाना और चंद्रमा, मंगल तथा अन्य ग्रहों पर अन्वेषण व खनन के लिए एक शासन ढांचा बनाना है।

इसी तरह, 2019 में रूस और चीन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 2026 तक लोगों को भेजने के अभियान में सहयोग करने पर राजी हुए हैं।

चीन-रूस संयुक्त मिश्न का लक्ष्य चंद्रमा की कक्षा में एक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का भी है।

इन गुटों का चंद्रमा पर समान अभियानों के लिए सहयोग नहीं करने से संकेत मिलता है कि धरती पर के रणनीतिक हित और प्रतिद्वंद्विता अंतरिक्ष तक पहुंच गये हैं।

रूस और चीन की योजना अपने भविष्य के चंद्रमा अनुसंधान स्टेशन को इसमें रूचि रखने वाले सभी पक्षों के लिए खोलने की है लेकिन आर्टेमिस देशों ने ऐसी कोई रूचि नहीं दिखाई है।

वहीं, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने रूस के साथ अपनी कई संयुक्त परियोजनाओं की योजना स्थगित कर दी है और इसके बजाय वह अमेरिका तथा जापान के साथ अपनी साझेदारी बढ़ा रही है।

अंतरिक्ष गुट का धरती पर प्रभाव:

अंतरिक्ष में शक्ति बढ़ाने के साथ विभिन्न देश अंतरिक्ष गुट का इस्तेमाल धरती पर अपने प्रभाव बढ़ाने में भी कर रहे हैं।

इसका एक उदाहरण एशिया-प्रशांत अंतरिक्ष सहयोग संगठन है, जिसका गठन 2005 में हुआ था। चीन नीत इस गुट में बांग्लादेश, ईरान, मंगोलिया, पाकिस्तान, पेरू, थाईलैंड और तुर्की शामिल हैं। संगठन का मुख्य लक्ष्य जीपीसी के चीनी प्रारूप बेईदोऊ नौवहन प्रणाली का विस्तार करना है।

निजी अंतरिक्ष कंपनियों की भूमिका:

पिछले दशक में अंतरिक्ष में वाणिज्यिक गतिविधियों में अपार वृद्धि हुई है।

अंतरिक्ष गुट सहयोग या टकराव के लिए:

मेरा मानना है कि अंतरिक्ष गुट एक ऐसा माध्यम होंगे जिसके जरिये विभिन्न देश अंतरिक्ष एवं जमीन पर राष्ट्रीय हितों को पूर्ति करना चाहेंगे।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को दूर रखते हुए वैज्ञानिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित रखने और अंतरिक्ष गुटों के बीच जानकारियों का आदान प्रदान करने से अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के भविष्य को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

(द कन्वरसेशन)

सुभाष उमा

उमा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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