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Friday, 5 September, 2025
होमविदेशअफगानिस्तान में भूकंप इतना भयावह क्यों साबित हुआ ?

अफगानिस्तान में भूकंप इतना भयावह क्यों साबित हुआ ?

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इफ्तिखार अहमद, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकैसल

कैलाघन (ऑस्ट्रेलिया), दो सितंबर (द कन्वरसेशन) अफगानिस्तान में हाल ही में आए भूकंप में मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। तालिबान-प्रशासित स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, अब तक करीब 1400 लोगों की मौत हो चुकी है और 2,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

यह भूकंप रविवार रात स्थानीय समयानुसार आधी रात से कुछ पहले आया, जिसका केंद्र पाकिस्तान की सीमा से लगे पहाड़ी क्षेत्र में, जलालाबाद शहर के पास था। भूकंप की तीव्रता 6.0 थी, जो अपेक्षाकृत कम मानी जाती है, लेकिन इसका केंद्र सिर्फ आठ किलोमीटर की गहराई पर था, जिससे सतह पर तेज झटके महसूस किए गए और कई बाद में भी कई झटके आए।

अधिकांश लोग उस समय अपने घरों में सो रहे थे, जब भूकंप ने उनके कच्चे मकानों को धराशायी कर दिया। प्रभावित क्षेत्र दूरदराज और दुर्गम पहाड़ियों में होने के कारण, और भूस्खलन से कई सड़कें अवरुद्ध हो जाने की वजह से, अंतिम आंकड़े आने में अभी समय लग सकता है।

भूकंप संभावित क्षेत्र

हिमालय और हिंदूकुश पर्वतमालाएं, जहां यह प्रभावित इलाका स्थित है, भूकंपीय रूप से अत्यधिक सक्रिय क्षेत्र हैं। यह क्षेत्र भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों की टकराव रेखा पर स्थित है, जिससे यहां अक्सर विनाशकारी भूकंप आते हैं।

अक्टूबर 2023 में इसी क्षेत्र में आए भूकंप में 1,500 से अधिक लोगों की जान गई थी, जबकि 2022 में भी एक और भूकंप ने 1,000 से अधिक लोगों की जान ली थी।

तुलनात्मक रूप से देखें तो 2011 में न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में आया भूकंप इसी तीव्रता का था और उसका केंद्र और भी उथला था, फिर भी वहां केवल 185 लोगों की मौत हुई, क्योंकि वहां की निर्माण व्यवस्था और भवन सुरक्षा मानक अधिक मज़बूत थे।

भूकंप नहीं, इमारतें मारती हैं

एक बहुचर्चित कहावत ‘भूकंप लोगों को नहीं मारते, इमारतें मारती हैं’ इस त्रासदी को समझने में मदद करती है।

अफगानिस्तान के ग्रामीण समुदाय मजबूरी में स्थानीय रूप से उपलब्ध मिट्टी, पत्थर और कच्ची लकड़ी से मकान बनाते हैं, क्योंकि पक्की और मानकीकृत निर्माण सामग्री उनकी पहुंच से बाहर है।

ये मकान बिना किसी इंजीनियरिंग डिज़ाइन, भवन कोड या तकनीकी मानक के बनाए जाते हैं।

अक्सर इन घरों की दीवारें कच्ची ईंटों या पत्थर की चिनाई से बनी होती हैं, जिसे ‘मोनोलिथिक निर्माण’ कहा जाता है — जो भूकंप के क्षैतिज झटकों को सहने में असमर्थ होते हैं।

परिणामस्वरूप, भूकंप के दौरान इमारतें एक साथ गिरती हैं और सो रहे लोग मलबे में दब जाते हैं। वर्तमान भूकंप के बाद अफगानिस्तान से ढह चुकी इमारतों के मलबे की तस्वीरें और रिपोर्ट्स लगातार सामने आ रही हैं, जैसा कि पिछले भूकंपों में भी देखा गया था।

भविष्य के लिए सबक और समाधान

क्षेत्रीय उदाहरणों से पता चलता है कि कम संसाधनों में भी भूकंप-रोधी निर्माण संभव है।

नेपाल में 2015 के भूकंप के बाद सरकार ने राष्ट्रीय भवन कोड लागू किया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी भूकंप प्रतिरोधी निर्माण के न्यूनतम मानक स्थापित हो सके।

भारत में भूकंप इंजीनियर आनंद आर्य ने दशकों पहले ‘‘गैर-इंजीनियर्ड’’ इमारतों को सुरक्षित बनाने की तकनीकें विकसित कीं, जिनमें दीवारों में निरंतर बैंड, कोनों, दरवाज़ों और खिड़कियों पर सुदृढ़ीकरण जैसी तकनीकों के ज़रिए पारंपरिक निर्माण को भी अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है।

इन उपायों के ज़रिए बिना बहुत अधिक लागत के बिना, केवल तकनीकी और संस्थागत सहयोग से, जीवन रक्षक निर्माण संभव हो सकते हैं।

हालांकि ये तकनीकें इमारतों को पूरी तरह भूकंप-रोधी नहीं बनातीं, लेकिन इतनी मज़बूती जरूर देती हैं कि जान का नुकसान कम हो सके।

आशा की किरण

यह भूकंप अफगानिस्तान में निर्माण पद्धति में सुधार की दिशा में एक चेतावनी साबित हो सकता है। यदि भविष्य में आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने की रणनीतिक सोच के साथ पुनर्निर्माण किया जाए तो नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है।

द कन्वरसेशन मनीषा नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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