(रॉब कोयने, रोड आइलैंड विश्वविद्यालय)
साउथ किंग्सटाउन (अमेरिका), 11 जून (द कन्वर्सेशन) लगभग एक सदी पहले, वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत में विरोधाभास को सुलझाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
वर्ष 1915 में प्रकाशित और दुनिया भर में भौतिकविदों तथा गणितज्ञों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किए गए इस सिद्धांत में कहा गया कि ब्रह्मांड स्थिर है – अपरिवर्तनीय, अचल और अडिग।
संक्षेप में, आइंस्टीन का मानना था कि ब्रह्मांड का आकार और आकृति आज भी कमोबेश वैसी ही है जैसी हमेशा से थी।
लेकिन जब खगोलविदों ने शक्तिशाली दूरबीनों से दूर-दूर स्थित आकाशगंगाओं में रात के आकाश में देखा, तो उन्हें संकेत मिले कि ब्रह्मांड कुछ और ही है। इन नए अवलोकनों से इसके विपरीत संकेत मिले – वास्तव में यह कि ब्रह्मांड फैल रहा है।
वैज्ञानिकों को जल्द ही एहसास हो गया कि आइंस्टीन का सिद्धांत वास्तव में यह नहीं कहता था कि ब्रह्मांड स्थिर होना चाहिए; सिद्धांत एक विस्तारित ब्रह्मांड का भी समर्थन कर सकता है। दरअसल, आइंस्टीन के सिद्धांत द्वारा प्रदान किए गए उन्हीं गणितीय उपकरणों का उपयोग करके, वैज्ञानिकों ने नए मॉडल बनाए जो दिखाते हैं कि ब्रह्मांड वास्तव में गतिशील और विकसित हो रहा है।
मैंने सामान्य सापेक्षता को समझने की कोशिश में दशकों बिताए हैं, जिसमें इस विषय पर पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में मेरी वर्तमान नौकरी भी शामिल है। मुझे पता है कि एक निरंतर विस्तारित ब्रह्मांड के विचार को समझना कठिन लग सकता है – और चुनौती का एक हिस्सा यह है कि चीजें कैसे काम करती हैं, इस बारे में आपके प्राकृतिक अंतर्ज्ञान को अनदेखा करना। उदाहरण के लिए, ब्रह्मांड जितनी बड़ी चीज की कल्पना करना कठिन है, जिसका कोई केंद्र नहीं है, लेकिन भौतिकी कहती है कि यह वास्तविकता है।
* आकाशगंगाओं के बीच का स्थान
सबसे पहले, आइए परिभाषित करें कि ‘‘विस्तार’’ का क्या मतलब है। पृथ्वी पर, ‘‘विस्तार’’ का मतलब है कि कुछ बड़ा हो रहा है। और ब्रह्मांड के संबंध में, यह सच है, कुछ हद तक। विस्तार का मतलब यह भी हो सकता है कि ‘‘सब कुछ हमसे दूर होता जा रहा है’’, जो ब्रह्मांड के संबंध में भी सच है। दूर स्थित आकाशगंगाओं पर दूरबीन घुमाएं तो वे सभी हमसे दूर जाती हुई प्रतीत होंगी।
इसके अलावा, वे जितनी दूर होती हैं, उतनी ही तेजी से आगे बढ़ती हुई दिखाई देती हैं। वे आकाशगंगाएँ एक-दूसरे से दूर होती हुई भी दिखाई देती हैं। इसलिए यह कहना अधिक सटीक होगा कि ब्रह्मांड में हर चीज़ एक साथ हर चीज़ से दूर होती जा रही है।
यह विचार सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण है। ब्रह्मांड के निर्माण के बारे में पटाखों के विस्फोट की तरह सोचना आसान है: एक बड़े धमाके से शुरू करें, और फिर ब्रह्मांड की सभी आकाशगंगाएं किसी केंद्रीय बिंदु से सभी दिशाओं में उड़ जाएंगी।
लेकिन यह तुलना सही नहीं है। यह न केवल गलत तरीके से यह दर्शाता है कि ब्रह्मांड का विस्तार एक ही स्थान से शुरू हुआ, जो कि सच नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि आकाशगंगाएं गतिशील चीज़ें हैं, जो पूरी तरह से सही नहीं है।
इसलिए यह पूछना कि ब्रह्मांड का केंद्र कहां है, कुछ हद तक यह पूछने जैसा है कि गुब्बारे की सतह का केंद्र कहां है? ऐसा कोई केंद्र नहीं है। आप गुब्बारे की सतह पर किसी भी दिशा में, जितनी देर चाहें, यात्रा कर सकते हैं, और आप कभी भी ऐसी जगह पर नहीं पहुंचेंगे जिसे आप इसका केंद्र कह सकें क्योंकि आप वास्तव में सतह से कभी बाहर ही नहीं निकलेंगे।
इसी तरह, आप ब्रह्मांड में किसी भी दिशा में यात्रा कर सकते हैं और कभी भी उसका केन्द्र नहीं पा सकेंगे, क्योंकि गुब्बारे की सतह की तरह, इसका भी कोई केन्द्र नहीं है।
(द कन्वरसेशन)
नेत्रपाल मनीषा
मनीषा
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