(चियारा डी ग्रेगोरियो पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च फेलो, वारविक विश्वविद्यालय)
कोवेंट्री (ब्रिटेन), 28 मई (द कन्वरसेशन) इंडोनेशिया के घने जंगलों में, आप अजीब और डरावनी आवाज सुन सकते हैं। प्रथम दृष्टया, यह अनियमित शोर हो सकता है लेकिन मेरे विश्लेषण से एक अलग कहानी सामने आई है।
यह आवाज सुमात्रा ओरंगुटान (पोंगो अबेली) की है, जिनका उपयोग शिकारियों की मौजूदगी के बारे में दूसरों को चेतावनी देने के लिए किया जाता है।
सुमात्रा ओरंगुटान का वैज्ञानिक नाम ‘पोंगो अबेली’ है जो एक वानर की प्रजाति है और सुमात्रा द्वीप में पाई जाती है।
ओरंगुटान हमारे पशु परिवार से संबंधित हैं। इसका मतलब है कि हमारे पूर्वज एक ही हैं और यह एक ऐसी प्रजाति है जो लाखों साल पहले रहती थी, जिससे हम दोनों विकसित हुए हैं।
हमारी तरह, ओरंगुटान के भी हाथ होते हैं जो पकड़ सकते हैं, वे औजारों का इस्तेमाल कर सकते हैं और नयी चीजें सीख सकते हैं। हम अपने डीएनए का लगभग 97 प्रतिशत हिस्सा ओरंगुटान के साथ साझा करते हैं, जिसका मतलब है कि हमारे शरीर और दिमाग के कई हिस्से एक जैसे तरीके से काम करते हैं।
यही कारण है कि ओरंगुटान का अध्ययन करने से हमें यह समझने में भी मदद मिल सकती है कि मनुष्य कैसे विकसित हुआ, खासकर जब बात संचार, बुद्धि और भाषा और लय की जड़ों की हो।
वर्ष 2024 में मनोवैज्ञानिक एड्रियानो लामीरा और उनके सहयोगियों द्वारा ओरंगुटान संचार पर किए गए शोध में ओरंगुटान की एक अलग प्रजाति, जंगली बोर्नियन ओरंगुटान (पोंगो पाइग्मियस वुर्मबी) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
उन्होंने केवल नरों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली एक प्रकार की ध्वनि का अध्ययन किया, जिसे लम्बी पुकार के नाम से जाना जाता है, और पाया कि लम्बी पुकारें लयबद्ध पदानुक्रम के दो स्तरों में व्यवस्थित होती हैं।
इसका पता लगाने के लिए हमने जंगली मादा सुमात्रा ओरंगुटान की चेतावनी भरी आवाजों का अध्ययन किया और कुछ आश्चर्यजनक बातें पाईं।
बोर्नियन ओरंगुटान में देखे गए दो स्तरों के बजाय, इस बार हमें तीन स्तर मिले।
इंडोनेशियाई जंगलों में गूंजती उन खतरनाक आवाजों की ओर लौटते हुए, अब हम इन्हें कानों से सुन सकते हैं।
हाल तक, कई वैज्ञानिकों का मानना था कि केवल मनुष्य ही स्वर संरचनाएं बना सकते हैं। इस विश्वास ने हमारे और अन्य जानवरों के बीच विभाजन के विचार को मजबूत करने में मदद की।
लेकिन हमारी खोज उन बढ़ते शोधों में शामिल है जो दर्शाते हैं कि यह विभाजन इतना स्पष्ट नहीं हो सकता है।
मानव भाषा कई मायनों में अनोखी है। लेकिन संभवतः यह अचानक नहीं आई।
वास्तव में यह समझने के लिए कि विकास, सामाजिक जीवन और पर्यावरण जैसी चीजें किस प्रकार इन दिलचस्प संचार कौशलों को आकार देती हैं, हमें अनेक भिन्न-भिन्न जानवरों का अध्ययन करते रहना होगा।
शायद सबसे आश्चर्यजनक सबक यह है: जटिलता को हमेशा शब्दों की आवश्यकता नहीं होती।
ओरंगुटान के संबंध में हमने जो संरचनाएं खोजी हैं, वे हमें याद दिलाती हैं कि सार्थक संचार कई रूपों में उभर सकता है और हमारी भाषा की जड़ें सिर्फ कही गई बातों में ही नहीं, बल्कि उसे व्यक्त करने के तरीके में भी निहित हो सकती हैं।
(द कन्वरसेशन)
देवेंद्र मनीषा
मनीषा
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