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Saturday, 16 November, 2024
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टोंगा में हुआ ज्वालामुखी विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि वायुमंडल घंटी की तरह बज उठा

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होनोलूलू, 24 जनवरी (द कन्वरसेशन) हंगा टोंगा-हंगा हपाई 15 जनवरी को जबर्दस्त ज्वालामुखी विस्फोट का गवाह बना। इससे निकलने वाली तीव्र ऊर्जा से समुद्र में सुनामी की विशाल लहरें उठीं, जिन्होंने अमेरिका के पश्चिमी तट तक तबाही मचाई। साथ ही वायुमंडल में ऐसी भूकंपीय तरंगें पैदा कीं, जो जल्द ही दुनियाभर में फैल गईं।

विस्फोट वाले स्थल के पास भूकंपीय तरंगों का स्वरूप काफी जटिल था, लेकिन हजारों मील दूर ये तरंगें एक पृथक तरंग के रूप में 650 मील प्रति घंटे की रफ्तार से क्षितिज की समांतर दिशा में बढ़ती नजर आईं।

नासा से जुड़े ‘गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर’ के मुख्य वैज्ञानिक जेम्स गार्विन ने एनपीआर को बताया कि ज्वालामुखीय विस्फोट के दस मेगाटन ‘टीएनटी इक्विवेलेंट’ होने का अनुमान है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम से लगभग 500 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। आकाश से इंफ्रारेड सेंसर के जरिये विस्फोट को देखने वाले उपग्रहों को भूकंपीय तरंगें उस तरंग की तरह नजर आ रही थीं, जो तालाब में पत्थर फेंकने पर उत्पन्न होती है।

वायुमंडलीय दबाव में बाधा के रूप में दर्ज यह तरंग उत्तरी अमेरिका, भारत, यूरोप और कई अन्य स्थानों से गुजरते हुए कई मिनटों तक अस्तित्व में रही। इंटरनेट पर लोगों ने रियल टाइम में तरंग को आगे बढ़ते हुए देखा, क्योंकि इससे जुड़ा बैरोमेट्रिक डाटा सोशल मीडिया पर जारी किया गया था। पूरी दुनिया में यह तरंग लगभग 35 घंटे तक घूमी।

गार्विन ने कहा, मैं एक मौसम विज्ञानी हूं, जिसने लगभग चार दशक तक वैश्विक वातावरण में होने वाले बदलावों का अध्ययन किया है। टोंगा में विस्फोट स्थल से भूकंपीय तरंगों का उठना वायुमंडलीय तरंगों के वैश्विक फैलाव का शानदार उदाहरण था। अतीत में परमाणु परीक्षण सहित अन्य बड़ी विस्फोटक घटनाओं के दौरान भी इस तरह का फैलाव देखने को मिल चुका है।

गार्विन के मुताबिक, यह विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि वायुमंडल में मानो एक घंटी बज उठी। हालांकि, इसकी फ्रीक्वेंसी बेहद कम थी, जिस कारण यह सुनाई नहीं दी। यह एक ऐसी दुर्लभ घटना है, जिसके बारे में 200 साल पहले लिखा गया था।

क्रकाटोआ, 1883

वैज्ञानिकों का ध्यान खींचने वाली पहली ऐसी वायुमंडलीय तरंग 1883 में इंडोनेशिया के माउंट क्राकाटोआ में हुए जबर्दस्त विस्फोट से पैदा हुई थी। इसका असर दुनियाभर में दर्ज किया गया था। उस दौर में संचार की गति बेहद धीमी थी, लेकिन कुछ ही वर्षों में वैज्ञानिकों ने अलग-अलग स्थानों से प्राप्त आंकड़ों को इकट्ठा कर तरंग के प्रसार का वैश्विक नक्शा तैयार कर लिया।

क्राकाटोओ से शुरू हुई इस तरंग ने दुनिया के लगभग तीन चक्कर लगाए थे। 1888 में ‘द रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन’ ने तरंग के मार्ग को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न नक्शे जारी किए थे। क्राकाटोआ के बाद और टोंगा विस्फोट के दौरान पैदा ध्वनि तरंगें बहुत कम फ्रीक्वेंसी की थीं। इन तरंगों का प्रसार हवा के दबाव में होने वाले बदलाव के जरिये होता है।

धरती को चूमने वाली तरंगों का सिद्धांत

200 साल पहले, महान फ्रांसिसी गणितज्ञ एवं भौतिक विज्ञानी पियरे-साइमन डि लाप्लेस ने इन तरंगों के व्यवहार का अनुमान लगाया था। उनका सिद्धांत वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय हलचल को निर्धारित करने वाली घटनाओं पर आधारित था।

लाप्लेस का कहना था कि वायुमंडल में ऐसी तरंगें पैदा होती हैं, जो तेजी से फैलते हुए धरती को चूमती हैं। उन्होंने अनुमान लगाया था कि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण और पर्यावरणीय दबाव क्षितिज की समांतर दिशा में हवा के बहाव को प्रेरित करता है। इसी के चलते तरंगें पूरी धरती का चक्कर लगाती हैं।

1883 में क्राकाटोआ के विस्फोट डाटा ने लाप्लेस के सिद्धांत पर मुहर लगाई थी। तरंगों के इस व्यवहार की समझ दूरदराज में होने वाले परमाणु विस्फोटों का पता लगाने में मदद करती हैं।

घंटी की तरह कंपन

लाप्लेस के सिद्धांत में इस बात का भी उल्लेख है कि ज्वालामुखीय विस्फोट के दौरान उत्पन्न तरंगों से वायुमंडल में घंटी बजने जैसा कंपन क्यों होता है। दरअसल, ये तरंगें वायलिन के तारों, ड्रम और घंटी जैसे वाद्य यंत्रों से निकलने वाले ध्वनि तरंगों से इतर पूरी दुनिया में फैल जाती हैं। वायुमंडल अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर घंटी की तरह बजता है। पर चूंकि, ये तरंगें बेहद कम फ्रीक्वेंसी की होती हैं, लिहाजा इन्हें सुना नहीं जा सकता।

द कन्वर्सेशन

पारुल नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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