नई दिल्ली: 16 साल की उम्र में पाकिस्तानी कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई ने 12 जुलाई 2013 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में शिक्षा में लैंगिक समानता को लेकर एक भावुक भाषण दिया था. उनका ये भाषण इतना जोरदार था कि सभी प्रतिनिधियों ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया था. संयुक्त राष्ट्र ने युवा कार्यकर्ता को सम्मानित करने के लिए उस दिन को ‘मलाला दिवस’ के रूप में घोषित कर दिया. गौरतलब है कि 12 जुलाई को ही मलाला का जन्मदिन भी होता है.
बच्चों के शिक्षा के अधिकार खासकर संघर्ष ग्रस्त क्षेत्रों में रहने वालों के लिए मलाला ने शक्तिशाली अभियान चलाया है. दिप्रिंट ने उनके इस सफर और संयुक्त राष्ट्र में दिए गए भाषण पर नजर डाली है…
12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान की पहाड़ी स्वात घाटी में जन्मी मलाला ने लड़कियों के एक स्कूल में पढ़ाई की. ये स्कूल उनके पिता जियाउद्दीन यूसुफजई द्वारा चलाए जा रहे कई स्कूलों में से एक था. उनके पिता एक शिक्षा कार्यकर्ता भी हैं.
अक्टूबर 2007 में घाटी तालिबान आतंकवादियों के कब्जे में आ गई और इस्लामी कानून की उनकी कठोर व्याख्या ने लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया. इससे आहत तब 11 साल की मलाला ने बीबीसी के लिए एक गुमनाम ब्लॉग लिखना शुरू किया. इसमें वह दमनकारी शासन के अपने अनुभवों को लिखा करती थीं.
वह जल्दी ही विरोध की एक आवाज बन गईं. उनकी यही आवाज उन पर किए गए तालिबान हमले का कारण बनी. तालिबान के समर्थकों ने उन पर बेरहमी से हमला कर दिया. 2012 में जब वह स्कूल से आ रही थीं तो एक तालिबान बंदूकधारी उनकी स्कूल बस में चढ़ा और उनके सिर में गोली मार दी. इस घटना में उनकी दो दोस्त भी घायल हो गईं. यूके में विशेषज्ञ डॉक्टरों से उनका इलाज चला और वह उस घातक हमले के बाद बच गईं. बाद में उन्हें यूके में शरण दी गई थी.
ये घातक हमला मलाला को रोकने में नाकाम रहा और वह जल्द ही वैश्विक निरक्षरता और आतंकवाद से लड़ने वाली एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत में बदल गईं.
संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपने ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने बच्चों के लिए शांति, समान अवसर और दुनिया भर में शिक्षा तक पहुंच के लिए आग्रह किया था. एक साल बाद 2014 में, उन्होंने भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ नोबेल शांति पुरस्कार साझा किया.
तब एक प्रेस रिलीज में नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने कहा था, ‘अपनी कम उम्र के बावजूद मलाला पहले ही कई सालों से लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ती आ रहीं हैं. यह एक ऐसा उदाहरण है जो दिखाता है कि बच्चे और युवा भी अपनी स्थितियों में सुधार में योगदान दे सकते हैं. यह सब उन्होंने सबसे खतरनाक परिस्थितियों में किया है. अपने साहसी संघर्ष के जरिए वह लड़कियों के शिक्षा के अधिकारों की बात करने वाली एक प्रमुख प्रवक्ता बन गई हैं.’
अपने इस शानदार भाषण में उन्होंने बताया था कि कैसे तालिबान की शिक्षा पर रोक लगाकर इस्लामिक आस्था की गलत व्याख्या करता है. उन्होंने लोगों को याद दिलाते हुए कहा कि ‘… कुरान का पहला शब्द ‘इक़रा’ है जिसका अर्थ है पढ़ना.’
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित दुनिया भर के कई राष्ट्राध्यक्षों और मशहूर हस्तियों ने उन्हें उनकी जीत पर बधाई दी और कहा, ‘सिर्फ 17 साल की उम्र में, मलाला ने अपने जुनून और दृढ़ संकल्प से दुनिया भर के लोगों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया है कि हर जगह लड़कियों को शिक्षा मिल सके. जब तालिबान ने उन्हें चुप कराने की कोशिश की तो मलाला ने ताकत और संकल्प के साथ उनकी क्रूरता का जवाब दिया… हम उनके साहस से हैरान हैं और ये जानकर आशा से भरे हुए भी हैं कि यह दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के उनके असाधारण प्रयासों की शुरुआत है.’
आज 22 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के नोबेल पुरस्कार विजेता ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से फिलॉसफी, राजनीति और अर्थशास्त्र का अध्ययन कर रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए मलाला यूसुफजई ने अपने भाषण में जो कुछ भी कहा उसे नीचे पढ़े या फिर इसे यहां देखें:
ईश्वर के नाम पर, सबसे परोपकारी, सबसे दयालु
ऑनरेबल संयुक्त राष्ट्र जनरल सेक्रेटरी मिस्टर बान की-मून,
आदरणीय महासभा अध्यक्ष वुक जेरेमिक
ग्लोबल एजुकेशन के लिए युएन के माननीय दूत मिस्टर गॉर्डन ब्राउन,
रिस्पेक्टड एल्डर, मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
आज बहुत दिनों बाद फिर से बोलना मेरे लिए सम्मान की बात है. इतने सम्मानित लोगों के साथ यहां होना मेरे जीवन का एक महान पल है.
मुझे नहीं पता कि मैं अपना भाषण कहां से शुरू करूं. मुझे नहीं पता कि लोग मुझसे क्या कहने की उम्मीद कर रहे होंगे. लेकिन सबसे पहले ईश्वर को धन्यवाद, जिसके लिए हम सब समान हैं और हर उस व्यक्ति को धन्यवाद, जिसने मेरे जल्द स्वस्थ होने और नए जीवन के लिए प्रार्थना की है. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि लोगों ने मुझे इतना प्यार दिया है. मुझे दुनिया भर से हजारों शुभकामनाओं के कार्ड और उपहार मिले हैं. उन सभी को धन्यवाद. उन बच्चों को धन्यवाद जिनकी मासूम बातों ने मेरा हौसला बढ़ाया. मेरे बड़ों का शुक्रिया जिनकी प्रार्थनाओं ने मुझे मजबूत किया.
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‘मैं सभी लड़कियों और लड़कों के लिए आवाज उठाती हूं’
मैं अपनी नर्सों, डॉक्टरों और पाकिस्तान, यूके और यूएई सरकार के अस्पतालों के सभी कर्मचारियों को धन्यवाद देना चाहती हूं जिन्होंने मुझे बेहतर होने और मुझे फिर से मजबूत बनाने में मेरी मदद की है. मैं महासचिव बान की-मून को उनकी ग्लोबल एजुकेशन फर्स्ट इनिशिएटिव और संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत गॉर्डन ब्राउन के काम का पूरा समर्थन करती हूं और मैं उन दोनों को उस लीडरशिप के लिए धन्यवाद देती हूं जिसे उन्होंने लगातार बनाए रखा है. वे हम सभी को काम करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं.
सैकड़ों मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता, जो न केवल मानवाधिकारों के लिए बोल रहे हैं, बल्कि शिक्षा, शांति और समानता के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हजारों लोग आतंकवादियों द्वारा मारे गए हैं और लाखों घायल हो गए हैं. मैं उनमें से सिर्फ एक हूं.
इसलिए मैं यहां खड़ी हूं…उन कई लड़कियों में से एक हूं.
मैं सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि सभी लड़कियों और लड़कों के लिए आवाज उठाती हूं.
मैं अपनी आवाज उठाती हूं – इसलिए नहीं कि मैं चिल्ला सकूं, बल्कि इसलिए कि बिना आवाज वाले लोगों को भी सुना जा सके.
जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है:
शांति से जीने का उनका अधिकार.
सम्मान के साथ व्यवहार करने का उनका अधिकार.
अवसर की समानता का उनका अधिकार.
शिक्षित होने का उनका अधिकार.
‘तालिबान ने सोचा कि गोलियां हमें खामोश कर देंगी’
9 अक्टूबर 2012 को तालिबान ने मेरे माथे के बाईं ओर गोली मार दी. उन्होंने मेरे दोस्तों को भी गोली मार दी. उन्हें लगा कि गोलियां हमें खामोश कर देंगी. लेकिन वे असफल रहे और फिर उस सन्नाटे से हजारों आवाजें निकलीं. आतंकवादियों ने सोचा था कि वे हमारे लक्ष्य बदल देंगे और हमारी महत्वाकांक्षाओं को रोक देंगे लेकिन मेरे जीवन में इसके अलावा कुछ भी नहीं बदला: कमजोरी, भय और निराशा मर गई. शक्ति, ताकत और साहस का जन्म हुआ. मैं वही मलाला हूं. मेरी महत्वाकांक्षाएं वही हैं. मेरी उम्मीदें वही हैं. मेरे सपने वही हैं.
प्रिय बहनों और भाइयों, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं. न तो मैं यहां तालिबान या किसी अन्य आतंकवादी समूह के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध की बात करने आईं हूं. मैं यहां हर बच्चे की शिक्षा के अधिकार के लिए बोलने आई हूं. मैं सभी चरमपंथियों खासकर तालिबान के बेटे-बेटियों के लिए शिक्षा चाहती हूं.
मुझे गोली मारने वाले तालिबन से भी मैं नफरत नहीं करती हूं. भले ही मेरे हाथ में बंदूक हो और वह मेरे सामने खड़ा हो, मैं उसे गोली नहीं मारूंगी. यह वह करुणा है जो मैंने दया के पैगंबर- मुहम्मद, ईसा मसीह और भगवान बुद्ध से सीखी है. यह परिवर्तन की विरासत है जो मुझे मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और मुहम्मद अली जिन्ना से विरासत में मिली है. यह अहिंसा का दर्शन है जिसे मैंने गांधी जी, बच्चा खान और मदर टेरेसा से सीखा है और यही वह क्षमा है जो मैंने अपने माता-पिता से सीखी है. यही मेरी आत्मा मुझसे कह रही है, शांत रहो और सभी से प्रेम करो.
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‘शिक्षा की ताकत चरमपंथियों को डराती है’
जब हम अंधकार को देखते हैं तो हमें प्रकाश के महत्व का एहसास होता है. जब हम चुप होते हैं तो हमें अपनी आवाज के महत्व का एहसास होता है. उसी तरह जब हम पाकिस्तान के उत्तर में स्वात में थे, तो हमें बंदूकों को देखकर कलम और किताबों के महत्व का एहसास हुआ.
‘कलम तलवार से भी शक्तिशाली होती है’ यह कहावत एकदम सच है. चरमपंथी किताबों और कलम से डरते हैं. शिक्षा की ताकत उन्हें डराती है. वे महिलाओं से डरते हैं. महिलाओं की आवाज की ताकत उन्हें डराती है और इसलिए उन्होंने हाल ही में क्वेटा में हुए हमले में 14 निर्दोष मेडिकल छात्रों की हत्या कर दी. और इसलिए उन्होंने खैबर पख्तून ख्वा और फाटा में कई महिला शिक्षकों और पोलियो कार्यकर्ताओं को मार डाला, इसलिए वे आए दिन स्कूलों में ब्लास्ट कर रहे हैं, क्योंकि वे बदलाव से डरते थे और डरते हैं, उस समानता से डरते हैं जो हम अपने समाज में लाएंगे.
मुझे याद है, हमारे स्कूल में एक लड़का था जिससे एक पत्रकार ने पूछा था, ‘तालिबान शिक्षा के खिलाफ क्यों हैं?’ उसने बड़ी ही सरलता से अपनी किताब की ओर इशारा करते हुए जवाब दिया, ‘एक तालिब नहीं जानता कि इस पुस्तक के अंदर क्या लिखा है.’ वे सोचते हैं कि भगवान एक तुच्छ, थोड़ा रूढ़िवादी प्राणी है जो लड़कियों को स्कूल जाने से उन्हें नरक में भेज देगा. आतंकवादी अपने निजी फायदे के लिए इस्लाम और पश्तून समाज के नाम का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. पाकिस्तान शांतिप्रिय लोकतांत्रिक देश है. पश्तून अपनी बेटियों और बेटों के लिए शिक्षा चाहते हैं. इस्लाम शांति, मानवता और भाईचारे का धर्म है. इस्लाम कहता है कि शिक्षा पाना हर बच्चे का अधिकार ही नहीं है, बल्कि यह उनका कर्तव्य और जिम्मेदारी है.
‘मैं चाहती हूं कि महिलाएं अपने लिए लड़ने के लिए स्वतंत्र हों’
ऑनरेबल सेक्रेटरी जनरल, शिक्षा के लिए शांति जरूरी है. दुनिया के कई हिस्सों में खासतौर पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में, आतंकवाद, युद्ध और संघर्ष बच्चों को उनके स्कूलों में जाने से रोकते हैं. हम वास्तव में इन संघर्षों से थक चुके हैं. दुनिया के कई हिस्सों में महिलाएं और बच्चे अलग-अलग तरह से पीड़ित हैं. भारत में मासूम और गरीब बच्चे बाल मजदूरी का शिकार होते हैं. नाइजीरिया में कई स्कूलों को तबाह कर दिया गया है. अफगानिस्तान में लोग दशकों से चरमपंथ की बाधाओं से प्रभावित हैं. नौजवान लड़कियों को घरेलू बाल मजदूरी करनी पड़ती है और उन्हें कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है. गरीबी, अज्ञानता, अन्याय, जातिवाद और बुनियादी अधिकारों से वंचित होना, पुरुषों और महिलाओं दोनों के सामने आने वाली मुख्य समस्याएं हैं.
आज मैं महिलाओं के अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान दे रही हूं क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. एक समय था जब महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुरुषों को उनके अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए कहा था. लेकिन इस बार ये हम खुद करेंगे. मैं पुरुषों को महिलाओं के अधिकारों के लिए बोलने से दूर जाने के लिए नहीं कह रही हूं, बल्कि मैं महिलाओं को अपने लिए लड़ने के लिए स्वतंत्र होने पर ध्यान देने के लिए कह रही हूं.
‘हमारे शब्द दुनिया बदल सकते हैं’
अब बोलने का समय आ गया है. इसलिए आज हम विश्व नेताओं से शांति और समृद्धि के पक्ष में अपनी रणनीतिक नीतियों को बदलने का आह्वान करते हैं.
हम विश्व नेताओं का आह्वान करते हैं कि सभी शांति समझौतों में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए. एक समझौता जो महिलाओं की गरिमा और उनके अधिकारों के खिलाफ जाता है, उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा.
हम सभी सरकारों से दुनिया भर में हर बच्चे के लिए मुफ्त अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान करते हैं.
हम सभी सरकारों से आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ लड़ने, बच्चों को क्रूरता और नुकसान से बचाने का आह्वान करते हैं.
हम विकसित देशों से विकासशील देशों में लड़कियों के लिए शैक्षिक अवसरों के विस्तार का समर्थन करने का आह्वान करते हैं.
हम सभी समुदायों को जाति, पंथ, संप्रदाय, धर्म या लिंग के आधार पर पूर्वाग्रह को अस्वीकार करने के लिए सहिष्णु होने का आह्वान करते हैं. महिलाओं के लिए स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करना चाहते हैं ताकि वे आगे बढ़ सकें. जब तक हममें से आधों को पीछे रखा जाएगा, तब तक हम सभी सभी सफल नहीं हो सकते हैं.
हम दुनिया भर में अपनी बहनों का आह्वान करते हैं कि वे बहादुर बनें – अपने भीतर की ताकत को अपनाएं और अपनी पूरी क्षमता का एहसास करें.
हम हर बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूल और शिक्षा चाहते हैं. हम सभी के लिए शांति और शिक्षा तक पहुंचने के लिए अपने इस सफर को जारी रखेंगे. हमें कोई नहीं रोक सकता. हम अपने अधिकारों के लिए बोलेंगे और अपनी आवाज से बदलाव लाएंगे. हमें अपने शब्दों की ताकत और शक्ति पर विश्वास करना चाहिए. हमारे शब्द दुनिया को बदल सकते हैं.
क्योंकि हम सब एक साथ हैं, शिक्षा के लिए एकजुट हैं. और अगर हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, तो आइए हम ज्ञान के हथियार से खुद को सशक्त बनाएं और एकता और एकजुटता में खुद को ढाल लें.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लाखों लोग गरीबी, अन्याय और अज्ञानता से पीड़ित हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लाखों बच्चे स्कूलों से बाहर हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी बहनें और भाई एक उज्ज्वल शांतिपूर्ण भविष्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
तो आइए हम निरक्षरता, गरीबी और आतंकवाद के खिलाफ एक ग्लोबल संघर्ष छेड़ें और अपनी किताब और कलम उठाएं. वे हमारे सबसे ताकतवर हथियार हैं.
एक बच्चा, एक शिक्षक, एक कलम और एक किताब दुनिया को बदल सकते हैं.
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