नई दिल्ली: कनाडा में सिख अलगाववादियों को देश से वित्तीय मदद मिलती हुई “देखी गई” है, जिसमें उत्तर अमेरिकी देश में भारतीय समुदाय से चंदा जुटाना भी शामिल है. यह बात कनाडाई सरकार की एक रिपोर्ट में कही गई है.
“कनाडा के क्रिमिनल कोड के तहत सूचीबद्ध कई आतंकी संगठनों, जो पीएमवीई (Political Motivated Violent Extremism) श्रेणी में आते हैं, जैसे हमास, हिजबुल्ला और खालिस्तानी हिंसक चरमपंथी समूह—बब्बर खालसा इंटरनेशनल और इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन—को कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों ने कनाडा से निकलने वाले वित्तीय सहयोग प्राप्त करते हुए देखा है.” यह बात पिछले महीने कनाडाई सरकार द्वारा प्रकाशित 2025 असेसमेंट ऑफ मनी लॉन्डरिंग एंड टेररिस्ट फाइनेंसिंग रिस्क्स में कही गई.
रिपोर्ट में आगे कहा गया, “खालिस्तानी चरमपंथी समूह, जो भारत के पंजाब में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए हिंसक तरीकों का समर्थन करते हैं, कई देशों में फंड जुटाने के संदेह में हैं, जिनमें कनाडा भी शामिल है. इन समूहों का पहले कनाडा में व्यापक फंडरेजिंग नेटवर्क था लेकिन अब ये छोटे-छोटे समूहों के रूप में दिखते हैं, जिनके लोग इस मकसद से जुड़े हैं लेकिन किसी खास संगठन से स्पष्ट रूप से जुड़े नहीं हैं.”
उत्तर अमेरिकी देश में आतंकी वित्तपोषण जोखिम के आकलन में पाया गया कि वहां सक्रिय “मुख्य विदेशी-आधारित खतरनाक तत्व” फंडिंग के लिए अलग-अलग स्रोतों पर निर्भर करते हैं, जिनमें क्रिप्टोकरेंसी, क्राउडफंडिंग, अनौपचारिक मूल्य हस्तांतरण प्रणाली (IVTS), राज्य प्रायोजन, गैर-लाभकारी संगठनों (NPOs) का दुरुपयोग और आपराधिक गतिविधियां शामिल हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया, “चैरिटेबल और एनपीओ सेक्टर के दुरुपयोग को हमास और हिजबुल्ला द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक प्रमुख फाइनेंसिंग पद्धति के रूप में देखा गया है. खालिस्तानी हिंसक चरमपंथी समूहों को भी प्रवासी समुदायों से दान जुटाने के लिए नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए जाना जाता है, जिसमें एनपीओ के माध्यम से फंड जुटाना और ट्रांसफर करना शामिल है.”
पिछले दोनों खतरे के आकलनों—2023 और 2015—में कनाडा में सक्रिय सिख अलगाववादी समूहों की फंडिंग से जुड़ी जानकारी दी गई थी, जिनमें खास ध्यान बब्बर खालसा और इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन पर था.
2015 की रिपोर्ट, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर की कंजरवेटिव सरकार ने प्रकाशित किया था, ने सिख अलगाववादी समूहों को “खालिस्तानी चरमपंथी समूह” बताया था. हालांकि, 2023 की रिपोर्ट, जो प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में प्रकाशित हुई थी, ने “खालिस्तानी” शब्द हटा दिया था और सिख अलगाववादी समूहों से जुड़ी सारी जानकारी “भारत के भीतर राज्य स्थापित करने के लिए हिंसक तरीकों का समर्थन करने वाले चरमपंथी समूह” शीर्षक के अंतर्गत रखी थी.
ट्रूडो सरकार द्वारा इस्तेमाल किया गया शीर्षक पंजाब या सिख अलगाववादियों की गतिविधियों का कोई उल्लेख नहीं करता था. हालांकि, प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की सरकार के तहत आई नवीनतम रिपोर्ट शब्दावली में और अधिक स्पष्ट रही है और 2015 वाले “खालिस्तानी चरमपंथी समूह” के फॉर्मूले पर वापस लौट आई है.
कार्नी की सरकार ने सिख अलगाववाद के मामले में ट्रूडो से काफी अलग रुख अपनाया है. यह नई दिल्ली और ओटावा के रिश्तों में एक बड़ा विवादित मुद्दा रहा है. जून 2025 में, कनाडाई खुफिया सेवा की वार्षिक रिपोर्ट ने साफ-साफ कहा था कि 1980 के दशक से कनाडा में जो “प्रमुख” राजनीतिक रूप से प्रेरित हिंसक चरमपंथी खतरा मौजूद है, वह सिख अलगाववाद है.
जून की यह रिपोर्ट उस समय प्रकाशित हुई थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा के अल्बर्टा में हुए जी7 शिखर सम्मेलन के इतर कार्नी से मुलाकात की थी. ट्रूडो के इस साल की शुरुआत में पद छोड़ने के बाद हाल के महीनों में दोनों देशों के रिश्ते स्थिर होने लगे हैं.
पिछले हफ्ते, दोनों देशों ने लगभग 10 महीने के अंतराल के बाद नई दिल्ली और ओटावा में अपने-अपने उच्चायुक्तों की नियुक्ति की घोषणा एक साथ की. सितंबर 2023 में रिश्ते तब बिगड़ गए थे जब ट्रूडो ने कहा था कि ओटावा “विश्वसनीय आरोपों” की जांच कर रहा है, जो भारतीय अधिकारियों को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जोड़ते हैं.
निज्जर, जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित किया था, जून 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. भारत ने ट्रूडो के आरोपों को खारिज कर दिया था और उन्हें “बेहूदे और प्रेरित” बताया था. आखिरकार, अक्टूबर 2023 तक, भारत ने “डिप्लोमैटिक पैरीटी” की मांग करते हुए कनाडाई मिशन से 41 राजनयिकों और उनके परिवारों को हटाने के लिए कहा.
हालांकि, अक्टूबर 2024 में रिश्ते और खराब हो गए जब भारत के उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा और पांच अन्य राजनयिकों ने ओटावा से वापसी कर ली, क्योंकि कनाडा ने निज्जर की हत्या की जांच के हिस्से के रूप में उनकी इम्युनिटी हटाने का अनुरोध किया था.
भारत ने इस अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया और छह कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया, जिनमें कार्यवाहक उच्चायुक्त स्टुअर्ट व्हीलर भी शामिल थे. हालांकि, जनवरी 2025 में ट्रूडो ने इस्तीफा दे दिया और मार्च में कार्नी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला, जब उन्हें लिबरल पार्टी का अगला नेता चुना गया.
कार्नी ने अप्रैल 2025 के समयपूर्व चुनावों में लिबरल पार्टी को जीत दिलाई और तब से भारत के साथ रिश्तों को स्थिर करने के कदम उठाए हैं. जी7 शिखर सम्मेलन में मोदी को आमंत्रित करने से दोनों नेताओं को द्विपक्षीय बातचीत करने और रिश्तों में विश्वास बहाल करने के ठोस कदम उठाने का मौका मिला.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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