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Saturday, 23 November, 2024
होमदेशरांची के इंजीनियर ने IS के लिए बनाए ड्रोन, टेरर टेक में क्रांति लाने वाला अब तुर्की की जेल में काट रहा है सजा

रांची के इंजीनियर ने IS के लिए बनाए ड्रोन, टेरर टेक में क्रांति लाने वाला अब तुर्की की जेल में काट रहा है सजा

इस पर रहस्य बना हुआ था कि एएमयू से पढ़ाई करने वाला इंजीनियर अर्शियान हैदर अब कहां है, जिसने ड्रोन और मिसाइलों को अपग्रेड करने में आईएस की मदद की थी. दिप्रिंट ने भारत और सऊदी अरब से लेकर तुर्की तक उसके सुराग तलाशे.

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नई दिल्ली: गुजरात की ‘सामूहिक हत्याओं’ से आहत और बदले की भावना पाले एक 18 वर्षीय कॉलेज छात्र के लिए अस्तित्व की लड़ाई अपनी दाढ़ी बढ़ाने पर जाकर केंद्रित हो गई थी.

सैयद मुहम्मद अर्शियान हैदर करीब एक साल से अधिक समय तक अपने चेहरे के बालों को बढ़ाता रहा. उसे यह विश्वास हो गया था कि अपने धर्म के प्रति प्रतिबद्ध न होने के कारण ही मुसलमान अपना उत्पीड़न करने वालों का सामना करने में असमर्थ हैं. हैदर के माता-पिता अपने बेटे के नवरूढ़िवादी धार्मिकता की ओर झुकाव से काफी चिंतित थे, और वह उससे नाई के पास जाकर अपनी दाढ़ी कटवाने को कहते रहते.

हालांकि, यह युवक 2003 की एक शाम मिले एक मौलवी के तर्क से अधिक आश्वस्त था, ‘लोगों को खुश करने के लिए अल्लाह को नाराज नहीं करना चाहिए.’

सवालों के घेरे में आए मौलवी अब्दुल रहमान अली खान, जिसके खिलाफ अब जिहादियों को भर्ती की साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चल रहा है, ने पुलिस के सामने अपने इकबालिया बयान में हैदर के साथ अपनी बातचीत की जानकारी दी है. (जिसे भारतीय कानून के तहत उसके खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.)

युवा हैदर के लिए तो रहमान के साथ संपर्क एक असाधारण यात्रा की शुरुआत थी. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक यह युवा—जिसका घर मूलत: रांची में है—सऊदी अरब के दम्मम में नौकरी करने पहुंच जाता है, वो भी केवल इस्लामिक स्टेट की टीम के लिए अपने कौशल का इस्तेमाल करने. उसने आत्मघाती ड्रोन और कम दूरी की मिसाइलें तैयार की, जो आतंकवादी समूहों के शस्त्रागार के लिए एक क्रांति साबित हुईं.

अब 38 वर्ष का हो चुका हैदर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 2017 से तुर्की की जेल में कैद है, लेकिन उसकी जिंदगी को लेकर बहुत ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई. क्लासीफाइड पुलिस और खुफिया रिकॉर्ड के साथ-साथ दोस्तों, परिजनों और पुलिस अधिकारियों के साथ बातचीत के जरिये दिप्रिंट ने उस भारतीय की कहानी को टुकड़ों में जोड़ने ने कोशिश की जिसने टेरर टेक्नोलॉजी बदलने में अहम भूमिका निभाई थी.

ये बात कई बार सामने आ चुकी है कि कैसे कई भारतीय इस्लामिक स्टेट से जुड़े और इसमें इंटरनेट के जरिये कट्टरपंथी बनाने की साजिश कैसे एक बड़ी भूमिका निभाती है—लेकिन कम से कम अर्शियान हैदर के मामले में इसकी जड़ें कुछ ज्यादा ही गहरी हैं.


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आतंकी लिंक वाला मौलवी

अर्शिया हैदर पर गहरा असर डालने वाले मौलवी अब्दुल रहमान अली खान की शुरुआत भी काफी अप्रत्याशित रही है.

उड़ीसा सैन्य पुलिस (जिसे अब विशेष सशस्त्र पुलिस के तौर पर जाना जाता है) में एक अधिकारी के बेटे अब्दुल रहमान, जिसके सहयोगी उसे एक उत्कृष्ट मैराथन धावक के रूप में याद करते हैं, ने कटक के पास सतबटिया गांव के एक सरकारी स्कूल में पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई की थी. फिर उसे स्कूल से निकाल लिया गया और एक मौलवी के तौर पर प्रशिक्षण के लिए एक मदरसे में भेज दिया गया.

खान एक जिज्ञासु छात्र साबित हुआ और 1994 में देवबंद उत्तर प्रदेश के जाने-माने दारुल उलूम मदरसा में पहुंच गया. पुलिस रिकॉर्ड और मदरसा में पढ़ाने वाले एक समकालीन उलमा के मुताबिक, यही पर उसमें कट्टरपंथ के बीज पड़े.

दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद से ही देवबंद परिसर जिहाद की वकालत करने वाले कट्टरपंथी छात्रों और इसकी रूढ़िवादी शिक्षण व्यवस्था के बीच जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा के लिए ख्यात हो गया था. परिसर में अपने कई साथी छात्रों की तरह—जिसमें अल-कायदा के दक्षिण एशिया प्रमुख बना सना-उल-हक भी शामिल था—खान भी जिहादियों के प्रति आकर्षित था. उसे चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े एक समूह का साथ मिल गया था.

अप्रैल 2001 में इंटेलिजेंस ब्यूरो के नेतृत्व वाले एक अभियान के तहत जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकवादियों—लियाकत अली, अब्दुल अजीज ब्रोही और फैजान अहमद को मार गिराया गया, जिन पर कथित तौर पर ध्वस्त विवादित स्थल पर बने एक हिंदू मंदिर के ढांचे पर हमले की साजिश रचने का आरोप था. बताया जाता है कि इसके बाद अली को छिपने में मदद करने वाला खान देवबंद से भाग गया.

अगले दो सालों तक खान ने खुद को छिपाए रखने की कोशिश की और पूर्वी भारत में मस्जिदों में काम करने में अपना समय बिताया. उसके भाई ताहिर अली खान को आतंकवाद से जुड़े दो मामलों में गिरफ्तार किया गया था लेकिन आखिरकार दोनों मामलों में बरी कर दिया गया.

सऊदी अरब में भारतीय जिहादी

2003 में किसी समय मौलवी खान को अर्शियान हैदर से मिलने का मौका मिला, और इसके बाद ही यह सब शुरू हुआ.

हैदर के परिवार से परिचित एक सूत्र ने बताया कि इस समय तक यह युवा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए पढ़ाई में व्यस्त था. हालांकि, वह तब्लीगी जमात में भी सक्रिय था, जो एक रूढ़िवादी सुन्नी धर्मांतरण आंदोलन है.

खान की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक, 2005 में हैदर ने बैंगलोर (जैसा कि उस समय इसका नाम था) की यात्रा की और कई महीनों तक एक मदरसे में अध्ययन किया. हालांकि, इसका कोई पुख्त सबूत नहीं है कि यह इंजीनियर उस समय जिहाद में शामिल था.

फिर, 2008 में हैदर को सऊदी अरब के दम्मम में एक सॉफ्टवेयर डेवलपर के तौर पर नौकरी मिली और वह वहां चला गया. सऊदी अरब में ही वह अपनी पत्नी, जातीय-चेचन बेल्जियम की नागरिक अलीना हैदर, से मिला और फिर इस दंपति की एक बेटी हुई.

इस बीच, मौलवी खान अपना नेटवर्क बढ़ाने में लगा रहा. उसके इकबालिया बयान के मुताबिक, खान ने 2009-2010 में बैंगलोर में डॉक्टर सबील अहमद से कई बार मुलाकात की और इस पर चर्चा की कि उत्पीड़न के खिलाफ भारतीय मुसलमानों की लड़ाई को वित्तीय मदद कैसे मुहैया कराई जा सकती है.

जब इन दोनों की मुलाकात हुई, तब सबील को 2007 में ग्लासगो एयरपोर्ट पर आत्मघाती हमले में अपने भाई और वैमानिकी इंजीनियर कफील अहमद के शामिल होने को लेकर आतंकी साजिश के बारे में जानकारी छिपाने के आरोप में कुछ समय ब्रिटेन की जेल में बिताने के बाद भारत डिपोर्ट किया जा चुका था.

2010 में जब सबील अहमद ने सऊदी अरब में काम करने के लिए फिर से भारत छोड़ा तो मौलवी ने उसे अर्शियान हैदर के संपर्क में रखा.

भारतीय खुफिया अधिकारियों के मुताबिक, 2012 से 2015 तक दम्मम में हैदर का घर जिहाद समर्थक भारतीयों का अड्डा बना हुआ था. सऊदी अरब में अगले तीन वर्षों में होने वाली बैठकों के क्रम में खान पर आरोप है कि उसने कथित तौर पर हैदर से लश्कर-ए-तैयबा के लिए भारतीयों की भर्ती करने को कहा था.

जांचकर्ताओं का दावा है कि 2015 में लश्कर के शीर्ष कमांडरों के साथ बैठक के लिए खान के संयुक्त अरब अमीरात के रास्ते पाकिस्तान जाने का खर्च भी हैदर ने ही उठाया था. खान को अल-कायदा के लिए भारतीयों की भर्ती करने को भी कहा गया था, जिसका नेतृत्व अब उसका देवबंद का पुराना साथी सना-उल-हक संभाल रहा था.

बहरहाल, उसी साल के अंत में खान को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, और सबील अहमद को सऊदी अरब में हिरासत में ले लिया गया और उसे चार साल बाद ही भारत निर्वासित किया गया.


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ड्रोन डिजाइनर

2014 के अंत में फेडएक्स की डिलीवरी वैन तुर्की के शहर सानलिउरफा में एक नॉनडिस्क्रिप्ट अपार्टमेंट बिल्डिंग के बाहर से नियमित तौर पर सामान ले जाने जाने लगी. यह शहर प्राचीन गोबेकली टेप मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, और एक मस्जिद उस जगह को चिह्नित करती है जहां पैगंबर अब्राहम का जन्म हुआ था.

इन बॉक्सों के अंदर रिमोट कंट्रोल, प्रोग्राम पैड, सिम्युलेटर सॉफ्टवेयर, एंटीना, कैमरा पॉड्स, माइक्रो-टरबाइन इंजन जैसे रेडियो-कंट्रोल खिलौने बनाने वाले पुर्जे थे लेकिन ये इस्लामिक स्टेट के शस्त्रागार के लिए घातक नए हथियार भी थे.

यह भान होते ही कि सऊदी अरब में उसके नेटवर्क का भंडाफोड़ हो गया है, हैदर 2015 के अंत में अपनी पत्नी और बच्ची के साथ तुर्की भाग निकला और वहां अपना घर बसाया.

उधर, सीमा से एक घंटे की दूरी पर स्थित रक्का—सीरिया में इस्लामिक स्टेट खिलाफत का मुख्यालय—में बांग्लादेश में जन्मे और ग्लैमरगन-शिक्षित कंप्यूटर इंजीनियर सिफुल हक सुजान ने इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस पहुंचाने में सक्षम ड्रोन को असेंबल करना शुरू कर दिया था. सुजान के भाई अताउल हक सोबुज और बिजनेस पार्टनर अब्दुल समद ने उन फ्रंट कंपनियों का नेटवर्क इस्तेमाल किया, जो वेल्स में पोंटीप्रिड से लेकर स्पेन और अमेरिका तक फैला था.

सुजान के ड्रोन के शुरुआती वर्जन केवल हैंड-ग्रेनेड ही पहुंचा सकते थे—लेकिन 2015 में हैदर के जुड़ने के बाद उसके कामों की वजह से न केवल ये घातक हथियारों को ले जाने में सक्षम हो गए बल्कि इनकी सटीकता भी बढ़ गई. तुर्की के जांचकर्ताओं के अनुसार, हैदर कम दूरी की मिसाइलों पर भी काम कर रहा था, जो बख्तरबंद और जहाजों पर हमला कर सकती हों.

घातक असर, लागत भी कम

घातक हथियार पहुंचाने के लिए मानव रहित हवाई प्लेटफार्म इस्तेमाल करने की कोशिश काफी लंबे समय से की जाती रही है. 1849 की गर्मियों में ऑस्ट्रिया के तोपखाना अधिकारी फ्रांज वॉन उचैटियस ने टाइमर लगे विस्फोटक गर्म हवा के गुब्बारों में भरकर वियना को घेरने वाली सेना के खिलाफ उसका इस्तेमाल करने की कोशिश की थी. हालांकि, हवाओं के रुख ने उनकी योजना पर पानी फेर दिया.

इस्लामिक स्टेट के डिजाइनरों ने कम लागत पर सटीक तरह से इनका इस्तेमाल करना सीखा. 2016 में अमेरिकी वायुसेना के एक पूर्व अधिकारी मार्क जैकबसेन ने बताया, ‘जितना संभव हो सकता है, उस हिसाब से मैंने सबसे सस्ता ‘हमलावर’ ड्रोन बनाने का प्रयोग किया है. इसके लिए 4 डॉलर का फोम बोर्ड, पैकिंग टेप, हॉट ग्लू, और करीब 250 डॉलर वाले सस्ते चीनी कलपुर्जों की जरूरत है. यह बदसूरत लग सकता है, लेकिन छह से 12 मील की दूरी तक दो पाउंड (करीब एक किलोग्राम) वजन पहुंचा सकता है.’

दिसंबर 2015 में अमेरिका के प्रिडेटर मिलिट्री ड्रोन से दागी गई एक हेलफायर मिसाइल ने रक्का में सुजान पर निशाना साधकर उसे मार गिराया. उसके भाई और हमले में शामिल कई अन्य लोगों को अमेरिका और ब्रिटेन की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

2016 में तुर्की के अधिकारियों ने हैदर का ठिकाना ढूंढ़ लिया और अंततः उसे इस्लामिक स्टेट को ड्रोन, जैमर और एन्क्रिप्टेड-संचार उपकरण की आपूर्ति के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उसके साथ गिरफ्तार अन्य लोगों में पाकिस्तानी नागरिक पेट्रोकेमिकल इंजीनियर निहाल जावेद और एकाउंटेंट शाहिद अख्तर शामिल थे. सेल का एक अन्य सदस्य खालिद ताशकंदी उज्बेकिस्तान में एक छोटा-सा व्यवसाय चलाता था.

हैदर और उसकी टीम द्वारा डिजाइन किए गए ड्रोन ने 2017 में मोसुल पर फिर से कब्जा की जंग के दौरान एक महीने से कम अवधि में कम से कम 100 उड़ानें भरीं और सीरियाई रक्षा बल की गोला-बारूद की आपूर्ति और रसद लाइनों को निशाना बनाया. एक दिन में 15-16 हमले असामान्य नहीं थे.

स्कॉलर डॉन रासलर के एक आधिकारिक अध्ययन से पता चला है कि आतंकवादी समूह दुनियाभर में वाणिज्यिक स्रोतों से ऐसे कंपोनेंट आसानी से खरीद सकते हैं.

गौरतलब है कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी समूह नियंत्रण रेखा के पार हथियारों और विस्फोटकों की आपूर्ति के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, पिछले साल, भारतीय वायु सेना के एक हेलीकॉप्टर बेस को दो ड्रोन-डिलीवरी बमों के जरिये निशाना बनाने की कोशिश की गई थी, जो एक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम से निर्देशित था. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत में आतंकवादी हमले में इस तकनीक का इस्तेमाल तो पुरानी बात हो गई है.’

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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