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Friday, 1 November, 2024
होमविदेशम्यांमार में प्रस्तावित साइबर सुरक्षा कानून को लेकर विरोध शुरू, बताया- प्रदर्शन को कुचलने वाला

म्यांमार में प्रस्तावित साइबर सुरक्षा कानून को लेकर विरोध शुरू, बताया- प्रदर्शन को कुचलने वाला

मानवाधिकार के पैरोकारों ने भी सैन्य नेताओं से अनुरोध किया है कि वे इस कानून की योजना को रद्द कर दें और एक फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के बाद इंटरनेट पर लगी पाबंदियों को खत्म करें.

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बैंकाक: म्यांमा में प्रस्तावित साइबर सुरक्षा कानून के मसौदे को लेकर विरोध शुरू हो गया है. ऐसी आशंकाएं हैं कि इस कानून का इस्तेमाल निजता की रक्षा करने के लिए नहीं, बल्कि असंतोष को कुचलने के लिए किया जाएगा.

मानवाधिकार के पैरोकारों ने शुक्रवार को वक्तव्य जारी कर देश के सैन्य नेताओं से अनुरोध किया है कि वे इस कानून की योजना को रद्द कर दें और एक फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के बाद इंटरनेट पर लगी पाबंदियों को खत्म करें.

‘आर्टिकल-19’ समूह के एशिया कार्यक्रम के प्रमुख मैथ्यू बघेर ने वक्तव्य जारी कर उक्त योजना की निंदा की.

‘ओपन नेट एसोसिएशन’ और ‘इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट’ ने भी इस कानून को लागू करने की योजना की निंदा की.

बघेर ने कहा कि मसौदा कानून ‘देश में इंटरनेट आजादी के स्थायी रूप से दमन’ के सेना के इरादे को दर्शाता है.

इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और अन्य को प्रस्तावित कानून पर जवाब देने के लिए 15 फरवरी तक का समय दिया गया है.

‘इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट’ के महासचिव सैम जारिफी ने कहा, ‘यह बताता है कि साइबर स्पेस पर नियंत्रण म्यांमा की सेना की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है. सेना पिछले हफ्ते गैरकानूनी तरीके से तख्तापलट कर सत्ता में काबिज हो गई थी.’

उन्होंने कहा, ‘सेना को म्यांमा में संपूर्ण शक्ति अपने हाथों में रखने की आदत है. लेकिन इस बार उसके सामने जनता है जिसकी सूचना तक पहुंच है और जो संवाद कर सकती है.’

वैश्विक इंटरनेट कंपनियों के समूह ‘एशिया इंटरनेट कोएलिशन’ के प्रबंधन निदेशक जैफ पैने ने कहा कि यह कानून सेना को ‘नागरिकों पर नियंत्रण करने और उनकी निजता का उल्लंघन करने, अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत प्रदत्त लोकतांत्रिक नियमों एवं बुनियादी अधिकारों की अवहेलना करने की अभूतपूर्व शक्ति दे देगा.’

मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी नॉर्वे की टेलीनॉर की ओर से कहा गया कि वह कई तरह के ‘असमंजस’ का सामना कर रही है.

म्यांमा के 158 गैर सरकारी संगठनों के समूह ने भी वक्तव्य जारी कर मसौदा कानून का विरोध किया है.

तख्तापलट से पहले सरकार इंटरनेट प्रबंधन और साइबर सुरक्षा संबंधी मास्टर प्लान पर काम कर रही थी.

मसौदा कानून का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि इसमें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर गुमनाम रहने पर पाबंदी होगी और सरकार को जो सामग्री अस्वीकार्य लगेगी, उस सामग्री को हटाना भी इसमें शामिल है. मसौदा कानून के तहत इन नियमों का उल्लंघन करने पर सजा/जुर्माने का प्रावधान है.

दरअसल, कानून के तहत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ऐसी टिप्पणियों को हटा दिया जाएगा जिन्हें भ्रामक जानकारी माना जाएगा, जो स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती हैं अथवा ‘नफरत’ फैला सकती हैं और ऐसी टिप्पणियों को भी हटा दिया जाएगा जो किसी भी वर्तमान कानून का उल्लंघन कर सकती हैं.

कानून के प्रावधानों के तहत सार्वजनिक माहौल को बिगाड़ने, साइबर स्पेस में भरोसे को खत्म करने या सामाजिक विभाजन करने के इरादे के साथ गलत या भ्रामक सूचना देनेवाले किसी भी व्यक्ति को तीन साल तक की सजा/जुर्माने का प्रावधान है.

कानून के तहत इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को तीन वर्ष तक उपभोक्ता का यूजरनेम, आईपी एड्रेस और अन्य निजी डेटा अपने पास रखना आवश्यक होगा. यह डेटा सरकार द्वारा निर्धारित स्थान पर रखना होगा. कानून का पालन नहीं करने पर इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को तीन साल तक की जेल और जुर्माने की सजा मिल सकती है.

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