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Monday, 23 December, 2024
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कराची से बलूचिस्तान तक कई लोग हैं लापता- सरकार से लड़ रहे हैं पीड़ित परिवार

पाकिस्तान ने वादों के बावजूद जबरन गायब किए जा रहे लोगों को सुरक्षा देने के लिए यूएन इंटरनेशनल कन्वेंशन को हस्ताक्षर से मना कर चुका है.

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पाकिस्तान : शाज़िया चन्दियो और उनकी मां जून महीने की तपती दुपहरी में भी कराची प्रेस क्लब के बाहर घंटों बैठे रहते थे. जब से शाज़िया के 18 वर्षीय भाई आकिब को कथित तौर पर पिछले साल 30 मई को कुछ वर्दीधारी व्यक्तियों ने उठाया तब से दोनों मां बेटी इन्साफ की गुहार लगा रही हैं. इसके लिए वे 400 किलोमीटर दूर लरकाना से कराची आने के लिए भी गुरेज़ नहीं करती हैं. पर आकिब के बारे में सरकार की तरफ से उन्हें कोई संतोषजनक जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है.

ये मामला सिर्फ आकिब का नहीं हैं. पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान से 41 सिन्धी एक्टिविस्ट, मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के करीब 135 सदस्य, 8000 पश्तून और बलूच समुदाय के करीब 20,000 लोग संदेहास्पद हालातों में गायब हुए हैं. पाकिस्तानी शिया भी ऐसे हालातों में गायब हो रहे हैं.

शाज़िया का कहना है उन्हें कोई जानकारी नहीं है कि आकिब कहां है और किस हालत में है. ‘वो कैसे एक जवान लड़के को ऐसे लेकर जा सकते हैं? हमने पूर्व मुख्य न्यायाधीश साकिब नासिर से तीन बार मुलाकात की पर कुछ नहीं हुआ. उन्होंने सिर्फ हमें तसल्ली देकर भेज दिया.’ शाज़िया गायब हुए सिन्धी लोगों के लिए आन्दोलन कर रहे समूह ‘वॉइस ऑफ़ मिसिंग पर्सन्स – सिंध (VMP-S) का भी हिस्सा हैं.

VMP-S के अन्य सदस्य सोराथ लोहार (26) ने बताया की आकिब एक संवेदनशील लड़का था और वो बाकी गायब हुए लोगों के लिए हुए आन्दोलनों में भी हिस्सा लिया करता था.

सोराथ के पिता हिदायत लोहार भी 26 महीनों तक गायब हो गए थे. पर इसी जून में उन्हें खोज लिया गया. VMP-S की एक सूची के मुताबिक़ गायब हुए लोगों में से 41 एक्टिविस्ट हैं.


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‘खुद से हो गए हैं गायब’

इस तरह अचानक से लोगों के गायब हो जाने का यह सिलसिला जनरल परवेज़ मुशर्रफ की सरकार के समय शुरू हुआ था. 2002 से 2008 के बीच गायब हुए 4000 पाकिस्तानियों को कथित तौर पर अमेरिका समेत अन्य देशों में भेज दिया गया था.

सरकार की ओर से अधिकारियों ने पूछे जाने पर कहा कि ये सभी लोग खुद से गायब हो गए हैं. वहीं पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ गफूर ने 5 जुलाई को ट्वीट करके कहा कि हर गायब इन्सान के लिए सरकार ज़िम्मेदार नहीं है. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि किस कानून के अंतर्गत किसी अभियुक्त को बिना ट्रायल के हिरासत में रखा जा सकता है वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए.

राजनीतिक प्रवक्ता आयशा सिद्दीका ने कहा कि समाज में डर पैदा करने के लिए सरकार और सुरक्षा एजेंसी इस तरह के हथकंडे अपनाती हैं. पीड़ितों को बिना किसी सबूत के उठा लिया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है. पर क्या अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते सरकार अपनी नीतियां बदलेगी? इस पर आयशा का कहना है कि ‘इस तरह का कोई दबाव नहीं बनाया जा रहा है. और भगवान न करे यदि अमेरिका के साथ हमारे रिश्ते सुधरे तो हमारी कोई भी मदद नहीं कर पायेगा.’

मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के सदस्य

आकिब की ही तरह, फौजिया मुश्ताक के पति आदिल बारा को भी 29 जुलाई 2015 के कराची के गार्डन एरिया से उठा लिया गया था. फौजिया को आज भी अपने पति के बारे में किसी खबर का इंतज़ार है. 28 वर्षीय फौजिया का कहना है कि वो हर दफ्तर के चक्कर लगा चुकी है. यहां तक कि वो डीजी रेंजर के ऑफिस जाकर अपने हाथ की नसें भी काट चुकी है. ‘मैं मजबूर हूं और अगर मेरे पति नहीं मिले तो मैं अपनी दो बेटियों के साथ मिलकर खुद को मार डालूंगी’- फौजिया ने कहा. उसके पति आदिल एमक्यूएम (MQM) के सदस्य रह चुके हैं जो 2015 से सरकार के निशाने पर है. जब आदिल को गिरफ्तार किया गया तो कुछ स्थानीय चैनलों ने दावा किया की उन्हें अर्धसैनिक बलों द्वारा गिरफ्तार किया गया है पर अधिकारियों ने इस बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया. बता दें की एमक्यूएम 2016 के बाद से निष्क्रिय है और इसके 135 सदस्य अब तक गायब हुए लोगों की सूची में शामिल हैं.

वहीं मूवमेंट के संयोजक नदीम एहसान ने लन्दन से दि प्रिंट को बताया कि संयुक्त राष्ट्र को मानवाधिकार हनन की रिपोर्ट्स भेजने के बावजूद भी पार्टी कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसा जा रहा है. उनका कहना है कि हमें संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई का इंतज़ार है.

गायब होते पश्तून

पाकिस्तान के खैबर पख्तून्ख्वा में 30 साल के इहसान गुल भी इस दुःख के शिकार हैं. उनके पिता खान ए मुल्ला (63) को 29 जुलाई 2016 को उनके घर जमरूद तहसील से कुछ आदमियों ने उठा लिया. तब से वो घर वापस नहीं लौटे हैं. इहसान परेशान होकर कहते हैं  ‘मेरी उम्र के लोग नौकरियां ढूंढ़ रहे हैं, घर बसा रहे हैं वहीं मेरा पूरा दिन बस अपने पिता को ढूंढ़ने में चला जाता है. कई बार मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती है. इससे बेहतर तो मर जाना है’. इहसान को अपने पिता की सेहत की भी चिंता है क्योंकि वह मधुमेह से ग्रस्त हैं. ‘मैंने उन लोगों को अपने पिता की दवाइयां दी थीं. पता नहीं वो उनको दवा दे भी रहे होंगे या नहीं’ इहसान ने चिंतित स्वर में कहा.

पश्तून समुदाय के हितों के लिए पश्तून तह्फूज़ आन्दोलन के उभरने के बाद ही इन हादसों के बारे में लोगों को पता चलना शुरू हुआ. पर सरकार इस आंदोलन पर रोक लगाने के लिए इसके कई कार्यकर्ताओं को कड़े कानूनों का हवाला देते हुए गिरफ्तार करने लगी. साल की शुरुआत में ही गायब हुए लोगों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने वाले एक कार्यकर्ता आलामजेब महसूद को भी गिरफ्तार कर लिया गया. वज़ीरिस्तान के एक अन्य कार्यकर्ता फरीद असगर ने अब गायब हुए लोगों की जानकारी इकट्ठा करने का ज़िम्मा उठाया है. दि प्रिंट को बताते हुए फरीद ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार 8,000 पश्तून अब तक गायब हैं.


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बलूच लोगों की एक दशक पुरानी लड़ाई

वहीं बलूच के सामाजिक कार्यकर्ताओं पर इन घटनाओं के खिलाफ विरोध करने पर भी रोक लगा दी गयी है. बलूचिस्तान से कार्यकर्ता मामा कादिर हर रोज़ क्वेट्टा में मौजूद कैंप में जाते हैं जो की पिछले 10 साल से गायब व्यक्तियों को ढूंढ़ने की मांग करते हुए बनाया गया. पिछले हफ्ते बीबीसी उर्दू ने रिपोर्ट किया कि अधिकारियों ने कादिर को नो-ऑब्जेक्शन प्रमाण पत्र लाने को कहा जिसके बाद वो विरोध जारी रख सकते थे. परन्तु कादिर ने इनकार कर दिया. उनका कहना है की वो ये लड़ाई जारी रखेंगे चाहे कुछ भी हो जाए. बलूचिस्तान के एक्टिविस्ट का दावा है कि इलाके से करीब 20,000 लोग गायब हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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