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Saturday, 4 May, 2024
होमविदेशTV को सास बहू से आगे ले जाएंगे पाकिस्तानी एक्टर हुमायूं सईद, डॉक्टर बहू होगा इसका उदाहरण

TV को सास बहू से आगे ले जाएंगे पाकिस्तानी एक्टर हुमायूं सईद, डॉक्टर बहू होगा इसका उदाहरण

सईद ने हैशटैग ‘डॉक्टर बहू’ के साथ ट्विटर पर लिखा कि वह नए प्रोजेक्ट में व्यस्त हैं, जिसमें इस समस्या को उठाया गया है.

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भारतीय टीवी सीरियल अब भी सास-बहू की कहानियों में उलझा हुआ है. वहीं, पाकिस्तान इस मामले में आगे निकलता दिख रहा है. यह सीरियल एक महत्वपूर्ण समाजिक मुद्दे को उठाती है. लोकप्रिय पाकिस्तानी अभिनेता और टीवी होस्ट हुमायूं सईद, नेटफ़्लिक्स की सीरीज ‘द क्राउन’ के पांचवें सीजन में डॉक्टर हसनत खान का किरदार निभाते नजर आएंगे. वह इस वेब सीरीज के ज़रिए देश में प्रैक्टिस करने वाले महिला डॉक्टरों की कमी के मुद्दों को उठाना चाहते हैं.

सईद ने सोमवार को अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सिर्फ़ 25 फीसदी महिला डॉक्टर ही प्रैक्टिस कर पाती हैं. इनमें से ज्यादातर ‘परिवार के दबाव’ में प्रैक्टिस करना छोड़ देती हैं.

सईद ने हैशटैग ‘डॉक्टर बहू’ के साथ ट्विटर पर लिखा कि वह नए प्रोजेक्ट में व्यस्त हैं, जिसमें इस समस्या को उठाया गया है.

जेंडर गैप

एक अन्य यूजर ने इसके जवाब में ट्वीट करते हुए अपनी बहन के अनुभव को शेयर किया.

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उन्होंने लिखा, ‘इस समस्या की मूल वजह यह है कि हमारे समाज में घर के काम और बच्चों की देखभाल पूरी तरह से पत्नी की जिम्मेदारी मानी जाती है. ऐसे में नौकरी और घर के बीच तालमेल बिठा पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है.’

एक अन्य उपोयगकर्ता ने ट्वीट किया, ‘हमें ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिसमें पति भी घर के काम और बच्चों की देखभाल करने में अपनी जिम्मेदारी निभाएं.’

इस मुद्दे पर सईद से सहमति रखने वाले कुछ लोगों ने उन्हें इस मुद्दे और प्रोजेक्ट के बारे में ज़्यादा जानकारी देने और और उनकी मदद की पेशकश भी की है.

व्यक्तिगत मामला

हालांकि, कुछ पाकिस्तानी इस मुद्दे को ‘समाज की अपेक्षाओं’ या ‘परिवार के दबाव’ से अलग मानते हैं. ट्विटर यूजर राशिद चौधरी, सईद के विचारों से इत्तेफ़ाक नहीं रखते.

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘इसकी वजह पारिवारिक नहीं है. वह ऐसा अपने मन से करती हैं. ज़्यादातर मामलों में वह धनी सहयोगी पाने के लिए यह डिग्री प्राप्त करती हैं.’

उन्होंने लिखा, ‘मेरी चाची ने शादी के बाद अपने मन से डॉक्टर के पेशे को छोड़ दिया. उनके पास निर्णय लेने की छूट थी, लेकिन उन्होंने अमेरिका में हाउसवाइफ़ बनना पसंद किया.’

डॉक्टर नायब इसकी वजह, पाकिस्तान में डॉक्टरों के लिए लंबे काम के घंटे के साथ ही, डे-केयर और मैटरनिटी लीव की अच्छी व्यवस्था न होना मानते हैं. वह लिखते हैं, ’36 घंटे की शिफ़्ट और उसके बाद 12 घंटा घर पर बिताने के बाद, तड़के सुबह वार्ड के पास हाजिरी देनी होती है. इससे, फैमली लाइफ़ और बच्चों पर बुरा असर पड़ता है… यह बर्बर है. हमें काम के माहौल को बेहतर बनाने की ज़रूरत है.’

पाकिस्तान की अभिनेत्री और डॉक्टर साईस्ता लोदी ने कहा कि लड़कियों के पास कैरियर चुनने का विकल्प होना चाहिए. उन्होंने उन महिला डॉक्टरों के लिए दु:ख जताया जो प्रैक्टिस नहीं कर पा रही हैं.

सईद ने अपने ट्वीट में आंकड़े के स्रोत का जिक्र नहीं किया है. हालांकि, डेटा से यह साफ पता चलता है कि मेडिकल की डिग्री लेने वाले और प्रैक्टिस कर रहे महिला डॉक्टर के बीच एक बड़ा अंतर है.

नवंबर, 2020 में, जेंडर, वर्क एंड ऑर्गनाइजेशन जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘पाकिस्तान के मेडिकल स्कूलों में महिला डॉक्टरों की संख्या 80-85 प्रतिशत तक है, जबकि प्रैक्टिस करने वालों में 50 प्रतिशत ही महिला डॉक्टर हैं. प्रैक्टिस करने वाले महिला डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं.’

यूके से छपने वाली पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में साल 2019 में छपे एक जर्नल के मुताबिक करांची के डॉओ यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंस ने 700 महिला डॉक्टरों को अपने यहां काम पर रखा. इसकी वजह से एक लाख से ज्यादा मरीजों का इलाज हो पाया.

पायनियर पोस्ट में छपे एक लेख के मुताबिक, मेडिकल काउंसिल ऑफ़ पाकिस्तान ने यह आंकड़ा जारी किया कि मार्च 2020 के बाद, 23 फीसदी महिला डॉक्टर ही मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिस कर रही हैं. वे टेलीमेडिसीन कंपनियों को भी अपनी सेवाएं दे रही हैं. साथ ही, महिलाओं की ओर से चलाये जा रहे ऐसे एनजीओ में अपना योगदान दे रही हैं जो पिछड़े इलाकों में काम करते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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