बर्लिनः विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख ने बुधवार को कहा कि वह कोविड-19 के ओमीक्रॉन और डेल्टा स्वरूपों के मिलने से संक्रमण के मामलों की ‘सुनामी’ आने की आशंका को लेकर चिंतित है, लेकिन उम्मीद जताई कि दुनिया अगले साल में इस महामारी को पछाड़ देगी.
कोरोनावायरस सबसे पहले सामने आने के लगभग दो साल बाद संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों ने आगाह किया कि वायरस के सबसे नये स्वरूप ओमीक्रॉन से हल्के-फुल्के लक्षण वाला संक्रमण होने की ओर इशारा करने वाले शुरुआती आंकड़ों को पूरी तरह मान लेना अभी जल्दबाजी होगी. दक्षिण अफ्रीका में पिछले महीने सबसे पहले सामने आये वायरस के इस स्वरूप का संक्रमण अमेरिका और यूरोप के हिस्सों में फैलता जा रहा है.
डब्ल्यूएचओ के 194 सदस्य देशों में से 92 देश इस साल के अंत तक अपनी 40 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण कराने के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाये हैं जिसके बाद इसके महानिदेशक टेड्रस अधनम घेब्रेयेसस ने सभी से नये साल पर यह संकल्प लेने का आग्रह किया है कि जुलाई की शुरुआत तक देशों की 70 प्रतिशत जनसंख्या के टीकाकरण के अभियान का समर्थन करें.
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में पिछले सप्ताह सामने आये कोविड-19 के मामलों की संख्या उससे पहले के सप्ताह की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक हो गयी और अमेरिका महाद्वीपीय देशों में सर्वाधिक बढ़ोतरी देखी गयी है.
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने मंगलवार को जारी अपनी साप्ताहिक महामारी संबंधी रिपोर्ट में कहा कि 20 से 26 दिसंबर के बीच दुनियाभर में करीब 49.9 लाख नये मामले सामने आये.
इनमें से आधे से अधिक मामले यूरोप में आये. हालांकि यूरोप के मामलों में एक सप्ताह से पहले की तुलना में केवल तीन प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी.
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अमेरिका महाद्वीपीय क्षेत्र में नये मामले 39 प्रतिशत बढ़कर करीब 14.8 लाख हो गये. अकेले अमेरिका में 34 प्रतिशत वृद्धि के साथ 11.8 लाख से अधिक मामले हो गये. अफ्रीका में नये मामलों में 7 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ संक्रमितों की संख्या करीब 2,75,000 हो गयी.
उसने कहा, ‘नये स्वरूप ओमीक्रॉन से संबंधित जोखिम बहुत ज्यादा बना हुआ है.’
टेड्रस ने एक ऑनलाइन पत्रकार वार्ता में कहा, ‘मुझे इस बात की बहुत चिंता है कि डेल्टा के प्रकोप के दौरान ही ओमीक्रॉन का अधिक संक्रामक होना मामलों की सुनामी लाने की आशंका दर्शाता है.’
उन्होंने कहा कि इससे पहले ही थक चुके स्वास्थ्य कर्मियों और स्वास्थ्य प्रणाली पर अत्यधिक बोझ पड़ेगा.
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