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Saturday, 4 May, 2024
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मोदी, एर्दोगन ने फिलहाल कश्मीर मसले से किया किनारा, उज्बेकिस्तान में बैठक के दौरान व्यापार पर की चर्चा

प्रधानमंत्री मोदी और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के बीच समरकंद में जारी एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान अलग से द्विपक्षीय मुलाकात हुई और इस दौरान दोनों नेताओं ने राजनीति को परे रखकर परस्पर व्यापार और निवेश बढ़ाने के उपायों पर चर्चा की.

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समरकंद, उज्बेकिस्तान: भारत और तुर्की ने कश्मीर पर राजनीति और इस्लामाबाद के साथ अंकारा के घनिष्ठ संबंधों को अलग रखकर परस्पर व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के प्रयासों के जरिये अपने द्विपक्षीय संबंधों को एक नए आयाम पर पहुंचाने का फैसला किया है.

भारत और तुर्की के रिश्तों में ये गर्माहट करीब तीन साल के अंतराल के बाद नजर आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से इतर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के साथ द्विपक्षीय बैठक की. यह शिखर सम्मेलन शुक्रवार को संपन्न हो गया.

आर्मेनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका के अलावा तुर्की भी एससीओ के डायलॉग पार्टनर में से एक है.

इन देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने के संकेत अप्रैल 2021 में तब मिले थे जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ताजिकिस्तान के दुशांबे में तुर्की में अपने समकक्ष मेव्लुत कॉसोगुल से मुलाकात की थी. एर्दोगन की 2017 की भारत यात्रा के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के नेताओं की व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात हुई है.

विदेश सचिव विनय क्वात्रा के मुताबिक, मोदी और एर्दोगन ने ‘द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोत्तरी, जो अच्छी-खासी रही है,’ के बारे में बात की.

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क्वात्रा ने कहा, ‘व्यापार करीब 10 अरब डॉलर के करीब पहुंच रहा है, जो गहराते आर्थिक संबंधों को स्पष्ट तौर पर दर्शाता है और जैसा मैंने कहा यह निश्चित तौर पर इस क्षेत्र और दुनियाभर के घटनाक्रम से जुड़ा है.’

भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में 10.71 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो दोनों देशों की तरफ से 2020 के लिए निर्धारित लक्ष्य से अधिक है.

राजनयिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि शुक्रवार की बैठक के दौरान, दोनों देशों ने अपने व्यापार संबंधों को बढ़ाने और मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की संभावना तलाशने का भी फैसला किया, जो उनके बीच व्यापार के और ज्यादा रास्ते खोलेगा. सूत्रों ने बताया कि भारत और तुर्की एफटीए की संभावनाओं पर पिछले साल से ही चर्चा कर रहे हैं.

नाटो के एक सदस्य देश तुर्की ने 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने के फैसले के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी सरकार की आलोचना की थी.

वहीं, 2020 में अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान एर्दोगन ने कहा था कि अंकारा कश्मीर मुद्दे पर इस्लामाबाद का समर्थन करता है और उन्होंने कश्मीरियों के ‘संघर्ष’ की तुलना प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपने देश की स्थिति के साथ भी की थी.

भारत ने कश्मीर पर तुर्की की टिप्पणियों को ‘भारत के आंतरिक मामलों में गंभीर…और पूरी तरह से अस्वीकार्य’ करार दिया था.

इन सब वजहों से द्विपक्षीय संबंध इतने निचले स्तर पर पहुंच गए कि प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 में अपनी तुर्की यात्रा ही रद्द कर दी थी.

हालांकि, ऐसा लगता है कि दोनों पक्ष अब पीएम मोदी की तुर्की यात्रा को अंतिम रूप देने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, जबकि वहां पर जून 2023 में चुनाव प्रस्तावित हैं और एर्दोगन ने एक बार फिर शीर्ष पद के लिए अपनी दावेदारी घोषित कर दी है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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