नई दिल्ली: दिप्रिंट को पता चला है कि ईरान ने भारत से कहा है, कि अमेरिका की ओर से थोपी गई एक ‘तरफा पाबंदियों को नज़रअंदाज़’ करते हुए, उनके देश से तेल की ख़रीद फिर से शुरू करे, ठीक उसी तरह जैसे नई दिल्ली ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों को किनारे करते हुए रूसी तेल के साथ किया है.
मामले से जुड़े अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि अपेक्षा की जा रही है कि ईरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी उज़बेकिस्तान के समरक़ंद में राष्ट्र प्रमुखों की परिषद के बीच होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से इतर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने वाली व्यक्तिगत मुलाक़ात में इस मुद्दे को उठा सकते हैं.
एससीओ शिखर सम्मेलन 15-16 सितंबर को होने जा रहा है, जिसमें मोदी, रईसी तथा सभी मध्य एशियाई नेताओं के अलावा, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ भी शरीक होंगे.
भारत ने मई 2019 के बाद से ईरान से तेल की ख़रीद बंद की हुई है, जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस देश पर कड़ी पाबंदियां लगा दी थीं. वो एक अभूतपूर्व क़दम था. पाबंदियां लगाए जाने से पहले, भारत चीन के बाद ईरानी तेल का दूसरा सबसे बड़ा ख़रीदार था.
अधिकारियों के अनुसार, भारत को ये क़दम अमेरिकी दबाव के चलते उठाना पड़ा, चूंकि वॉशिगटन ने ईरान पर सिलसिलेवार कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे, और ट्रंप प्रशासन ने ईरान परमाणु संधि को रद्द कर दिया था, जिसे ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) भी कहा जाता है.
लेकिन, भारत ने इसी तरह की, बल्कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका और यूरोप की ओर से मॉस्को पर लगाई गई और भी कड़ी पाबंदियों के बावजूद, रूस से तेल की ख़रीद जारी रखी.
बल्कि, अप्रैल 2022 के बाद से भारत की रूस से तेल की ख़रीद 50 प्रतिशत बढ़ गई, जिससे रूस भारत के 10 सबसे बड़े सप्लायर्स में से एक बन गया है.
ईरानी अधिकारियों के अनुसार, अमेरिका द्वारा लगाई पाबंदियां ‘एक तरफा’ हैं और यूएन के नेतृत्व में नहीं हैं, लेकिन फिर भी भारत ने इस मुल्क से तेल ख़रीदना बंद कर दिया है.
लेकिन, अधिकारियों ने कहा कि अब, जब भारत ने रूस पर लगाई गई पाबंदियों से बचने का एक तरीक़ा विकसित कर लिया है, तो नई दिल्ली को तेहरान के लिए भी उसी नीति पर अमल करना चाहिए.
इस मामले पर कथित रूप से तब चर्चा की गई, जब भारत में ईरान के निवर्तमान राजदूत अली चेगेनी ने पिछले सप्ताह विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाक़ात की.
Pleased to receive Ambassador of Iran Dr. Ali Chegeni on the completion of his tenure.
Appreciate his enthusiasm and contribution towards building our bilateral relationship. pic.twitter.com/bHQQlNiwtr
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) September 5, 2022
ईरान से तेल ख़रीद की बहाली से जुड़े मुद्दों पर तब भी विस्तार से चर्चा हुई थी, जब ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियान जून 2022 में भारत के दौरे पर आए थे, और जयशंकर से मुलाक़ात के साथ ही पीएम मोदी से भी मिले थे.
जून में, एक यूरोपियन थिंक टैंक को अपने एक संबोधन में जयशंकर ने, ईरानी तेल पर लगी पाबंदियां न हटाने को लेकर, अमेरिका पर सवाल खड़े किए.
जयशंकर ईरान के कट्टरवादी राष्ट्रपति रईसी से मुलाक़ात करने वाले पहले विदेशी पदाधिकारियों में थे, जो जून 2021 में पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी के सत्ता से हटने के बाद राष्ट्रपति चुने गए थे.
चाबहार पोर्ट पर रेलमार्ग
तेल के अलावा ये भी अपेक्षा है, कि रईसी चाबहार पोर्ट परियोजना में भारत की ‘धीमी प्रगति’ से जुड़े मुद्दे को भी उठाएंगे, ख़ासकर चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे परियोजना के आख़िरी हिस्से के निर्माण को, जो क़रीब 200 किमी. का है.
पूरा हो जाने पर ये रेलमार्ग ईरान में चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान और उससे आगे मध्य एशिया के बीच ज़्यादा तेज़ कनेक्टिविटी मुहैया कराएगा. ये भी अपेक्षा है कि इससे चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के बीच, मौजूदा सड़क संपर्क को भी बढ़ावा मिलेगा.
अपेक्षा है कि रईसी और मोदी की मुलाक़ात के दौरान, दोनों पक्ष पोर्ट पर शहीद बहिश्ती टर्मिनल के दीर्घ-कालिक संचालन को लेकर एक समझौते को भी अंतिम रूप दे सकते हैं.
समझौते पर दस्तख़त किए जाने पर पिछले कई सालों से बातचीत चल रही है. ये मामला दोनों पक्षों के बीच विवाद पैदा हो जाने की स्थिति में, मध्यस्थता को लेकर अटका हुआ है.
अधिकारियों ने कहा कि ईरानी संविधान के अंतर्गत, विवाद के समाधान को किसी अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता, और उसे ईरानी अदालतों में ही उठाया जा सकता है. इसलिए दोनों पक्ष इसे सुलझाने के तरीक़ों पर बातचीत कर रहे हैं, चूंकि ईरानी क़ानूनों के तहत संविधान में संशोधन करना तक़रीबन नामुमकिन है.
अगस्त में बंदरगाह, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने, शहीद बहिश्ती टर्मिनल की प्रगति का जायज़ा लेने के लिए ईरान का दौरा किया था, जहां उप-मंत्री और बंदरगाह तथा समुद्री संगठन के प्रबंध निदेशक अली अकबर सफाई के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की गई थी.
पिछले महीने अपने दौरे के दौरान, सोनोवाल ने बंदरगाह पर छह मोबाइल हार्बर क्रेन्स, इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल चाबहार फ्री ट्रेड ज़ोन (आईपीजीसीएफटीज़ेड) के हवाले कीं. बंदरगाह के सुचारू कामकाज के लिए दोनों पक्षों ने, एक संयुक्त तकनीकी समिति गठित करने का भी फैसला किया.
इस साल फरवरी में, विदेश राज्यमंत्री वी मुरलीधरन ने संसद को बताया, कि भारत और ईरान के बीच 2016 में दस्तख़त किए गए एमओयू के अनुसार, भारत अभी भी रेलवे परियोजना को लेकर इच्छुक बना हुआ है.
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