बैंकाक: म्यांमार में एक फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के विरोध में बढ़ते जनाक्रोश पर की जा रही हिंसक कार्रवाई के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर दबाव बढ़ रहा है कि वह म्यांमार की सैन्य सरकार पर और अधिक प्रतिबंध लगाए.
इसके साथ ही कई देश इस बारे में भी विचार कर रहे हैं कि वैश्विक निंदा के आदी हो चुके म्यांमार के सैन्य अधिकारियों को किस प्रकार हटाया जाए.
महामारी के कारण पहले से ही आम नागरिकों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है ऐसे में उन्हें नुकसान पहुंचाए बिना म्यांमार की सैन्य सरकार को अपदस्थ करने की चुनौती और बढ़ गई है.
फिर भी, कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि दमनकारी सरकार के संसाधनों और उसे मिलने वाले धन के स्रोत में कटौती कर दबाव बनाया जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष राजनयिक क्रिस्टीन एस. बर्गनर ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद से आग्रह किया था कि सैन्य सरकार के विरुद्ध कार्रवाई की जाए.
बर्गनर ने कहा था, ‘सामूहिक कार्रवाई अनिवार्य है. हम म्यांमार की सेना को कितनी छूट दे सकते हैं?’
संयुक्त राष्ट्र द्वारा समन्वित कार्रवाई करना कठिन है क्योंकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य रूस और चीन इस पर वीटो कर सकते हैं.
इसके साथ ही म्यांमार के पड़ोसी देश, उसके सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार और निवेश के स्रोत वाले देश प्रतिबंधों के खिलाफ हैं.
शांतिपूर्ण कार्रवाई के भी कुछ प्रयास किए गए हैं जिसके तहत अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने म्यांमा की सेना, उनके परिजनों और सैन्य सरकार के अन्य वरिष्ठ नेताओं पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए हैं.
अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा था कि म्यामां सेंट्रल बैंक में रखी एक अरब डॉलर से अधिक की राशि को निकालने के म्यांमार की सेना के प्रयासों को अवरुद्ध कर दिया गया है.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र के विशेष अधिकारी थॉमस एंड्रयूज ने पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट में कहा था कि सैन्य सरकार के ज्यादातर आर्थिक हितों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
कुछ देशों ने म्यांमार को दी जाने वाली सहायता पर भी रोक लगा दी है और विश्व बैंक ने कहा है कि उसने भी वित्तपोषण रोक दिया है तथा सहायता कार्यक्रमों की समीक्षा की जा रही है.
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