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Wednesday, 13 August, 2025
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ThePrint Exclusive: ID कार्ड और परिजनों के बयान—पहलगाम आतंकियों के पाकिस्तान से कनेक्शन हुए उजागर

दिप्रिंट को मिले सबूत दिखाते हैं कि पाकिस्तान सरकार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की गतिविधियों से वाकिफ रही है, लेकिन उन्हें बंद करने के लिए कुछ नहीं किया.

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नई दिल्ली: लीला देवी अपने पति खेमा राज के गोली से छलनी शव के पास बैठी थीं, जब पुलिस वहां पहुंची. उनकी शादी को सिर्फ एक दिन हुआ था. लीला के हाथ में उनकी शादी की एकमात्र निशानी थी—खेमा राज की सस्ती रबर की चप्पलें. उसी दिन मारे गए दूसरे दूल्हे का शव, लीला के भाई सेश राम का, पास ही पड़ा था. सेश राम की शादी तीन दिन पहले दुगदी देवी से हुई थी. वहां 20 से ज्यादा लोग मारे गए थे, सभी कदल गांव से बारात में आए थे, जो लीला के दूसरे भाई ओम प्रकाश की शादी के लिए कोर्डा जा रहे थे.

1998 की गर्मियों में लीला के सिंदूर का बदला लेने वाला कोई नहीं था. उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने चपनारी में बारातियों के नरसंहार के गुनाहगारों को सजा देने का वादा किया था. यह नरसंहार कश्मीर में हिंदुओं और सिखों के 700 से अधिक लोगों की जान लेने वाली साम्प्रदायिक हत्याओं की एक कड़ी की शुरुआत था. लेकिन सबूतों की कमी के कारण आरोपियों पर मुकदमा खत्म हो गया.

इस हफ्ते, हालांकि, कश्मीर के डाचीगाम में मारे गए तीन आतंकवादियों के शवों से पुख्ता सबूत मिले, जिन्होंने पहलगाम नरसंहार, पाकिस्तान और लश्कर के बीच संबंधों को साफ साबित कर दिया. खुफिया सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले तीन में से दो आतंकियों के पास पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी डिजिटल पहचान पत्र की प्रतियां थीं, जिनसे बायोमेट्रिक जानकारी के जरिए उनकी सही पहचान हो सकी.

दिप्रिंट को मिले स्वतंत्र सबूत यह भी दिखाते हैं कि पाकिस्तान सरकार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद के चल रहे आतंकी ऑपरेशनों से अवगत है, लेकिन उन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं किया.

पहलगाम में पाकिस्तानी नागरिकों की संलिप्तता के सबूत, एक वरिष्ठ भारतीय खुफिया अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर हाफिज मोहम्मद सईद और मसूद अज़हर अल्वी जैसे बड़े जिहादी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बढ़ाने में मदद करेंगे. उन्होंने कहा, “पहलगाम जांच दिखाती है कि पाकिस्तान-स्थित आतंकी संगठन न केवल इन हत्याओं में शामिल रहे हैं, बल्कि सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह कहकर झूठ बोल रही है कि उन्हें बंद कर दिया गया है.”

बहुराष्ट्रीय वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF) द्वारा प्रतिबंध की धमकियों के बाद पाकिस्तान ने 26/11 मुंबई हमले से जुड़े कुछ वरिष्ठ जिहादियों को जेल में डाला था. देश ने लश्कर और जैश के ऑपरेशनों को खत्म करने का वादा भी किया था, जिन्हें उसने पहले प्रतिबंधित कर दिया था. एनआईए के सबूत दिखाते हैं कि इस वादे का खुला उल्लंघन हुआ है.

डेटाबेस में कातिल

भारत द्वारा अब जुटाए गए सबूत पाकिस्तान के राष्ट्रीय डेटाबेस पंजीकरण प्राधिकरण (NADRA) द्वारा जारी राष्ट्रीय पहचान पत्रों के इर्द-गिर्द हैं. ये दो आतंकियों को जारी हुए थे जो डाचीगाम जंगल में मारे गए—जिन्हें इस हफ्ते संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गलती से चुनाव पहचान पत्र बताया. NADRA कार्ड सिस्टम भारत के आधार कार्ड के बराबर है, जो बायोमेट्रिक जानकारी वाले डेटाबेस से जुड़ा होता है. हर कार्ड प्रविष्टि में धारक, उनके परिवार और मोबाइल रिकॉर्ड का भौगोलिक विवरण भी होता है.

Screengrab of a WhatsApp message circulated among Jam’at cadre in Khaigala in PoK with Habib Tahir's image | By special arrangement
पीओके के खैगाला में जमात कार्यकर्ताओं के बीच हबीब ताहिर की तस्वीर के साथ एक व्हाट्सएप संदेश का स्क्रीनशॉट | विशेष व्यवस्था

NADRA कार्ड से पता चलता है कि एक आरोपी हबीब ताहिर था, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के खैगला के पास कोइयन गांव का रहने वाला था. वह रावलाकोट में कॉलेज छोड़ चुका एक पूर्व छात्र था. लंबे समय से जमात-ए-इस्लामी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा था. दिप्रिंट को मिले स्थानीय व्हाट्सऐप संदेश दिखाते हैं कि इसके बाद ताहिर जमात-उद-दावा में शामिल हो गया, जो लश्कर का मातृ संगठन है.

परिवार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि रावलाकोट के लश्कर प्रमुख रिज़वान अनीस ने ताहिर के भाई को, जो सऊदी अरब में काम करता है, फोन कर डाचीगाम की मुठभेड़ की जानकारी दी. इसमें 4 पैरा-कमांडो रेजिमेंट के जवानों ने 28 जुलाई को पहलगाम हमलावरों को मार गिराया था.

अगले दिन, परिवार ने बताया, रिज़वान कोइयन में उनके घर आया और मारे गए आतंकियों के लिए प्रार्थना सभा करने की अनुमति मांगी. हालांकि, आतंकवादी के मामा आसिफ अक़राम और जन्नत अक़राम ने रिज़वान से गांव छोड़ने को कहा. एक गवाह ने कहा, “आसिफ और जन्नत ने कहा कि लश्कर ने उनके भांजे का ब्रेनवॉश कर उसे मौत की ओर भेजा.” रिज़वान और उसके गार्ड्स के साथ बहस हुई, जो हाथापाई पर खत्म हुई.

दूसरा NADRA कार्ड—जो आतंकियों द्वारा इस्तेमाल किए गए हाई-फ्रीक्वेंसी एन्क्रिप्टेड संचार उपकरण पर मिला—ने दूसरे आरोपी की पहचान बिलाल अफज़ल के रूप में की. कार्ड, जिसे दिप्रिंट ने देखा, के नंबर बताते हैं कि अफज़ल लाहौर क्षेत्र का निवासी था और उसके पिता का नाम मोहम्मद अफज़ल था.

माना जाता है कि अफज़ल कई वर्षों से कश्मीर में “सुलेमान शाह” कोड नाम से सक्रिय था और पिछले साल गगनगीर में निर्माण श्रमिकों की हत्या में कई ऑपरेशनों को अंजाम दिया था.

दो भारतीय खुफिया अधिकारियों के मुताबिक, ये तीनों लोग कई टीमों का हिस्सा थे जो वरिष्ठ लश्कर ऑपरेटिव सज्जाद सैफुल्लाह जट के कमान में काम कर रहे थे. सज्जाद ने 2005 से कई वर्षों तक दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में काम किया. माना जाता है कि वह वर्तमान में लाहौर के पास चंगा मंगा गांव में अपनी कश्मीरी मूल की पत्नी के साथ रहता है.

पाकिस्तान सरकार की मिलीभगत

हालांकि पाकिस्तान सरकार ने बार-बार दावा किया है कि उसने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के ऑपरेशनों को खत्म कर दिया है, लेकिन दिप्रिंट को मिले दस्तावेज दिखाते हैं कि दोनों संगठन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सार्वजनिक कार्यक्रम करते रहे हैं. डाचीगाम में लश्कर के आतंकियों के मारे जाने से तीन दिन पहले, बैरमंग में जैश के कमांडरों ने स्थानीय प्रशासन से कश्मीर में मारे गए एक आतंकी के लिए ग़ायबाना नमाज़ (बिना शव के जनाज़े की नमाज़) पढ़ने की अनुमति मांगी थी.

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बाग जिले में जैश के प्रमुख नोमान शहजाद की अगुवाई में, संगठन ने जिला मजिस्ट्रेट राजा मोहम्मद जुल्फ़िकार खान से ग़ायबाना नमाज़ की अनुमति मांगी. खान द्वारा 26 जुलाई को हस्ताक्षरित एक पत्र में रैली की अनुमति इस आधार पर देने से इनकार किया गया कि हथियार लहराने वाले लोग शांति भंग कर सकते हैं. जिला प्रशासन के आदेश के बाद जैश ने बैरमंग में एक छोटी प्रार्थना सभा की, स्थानीय लोगों ने दिप्रिंट को बताया. हालांकि, हथियार दिखाने की अनुमति नहीं दी गई.

जिला मजिस्ट्रेट का यह पत्र साबित करता है कि पाकिस्तान जानता है कि प्रतिबंधित जिहादी संगठन अब भी कश्मीर में हिंसा करने के लिए लोगों को भेज रहे हैं, लेकिन पहलगाम नरसंहार के बाद भी कार्रवाई करने से बचता है.

पिछले साल दिप्रिंट ने रिपोर्ट की थी कि लश्कर ने अपने आतंकियों अब्दुल वहाब उर्फ अबू सैफुल्लाह और सनम जाफ़र के लिए ग़ायबाना नमाज़ का ऐलान किया था, जिन्हें उत्तर कश्मीर के सोपोर के पास भारतीय बलों के साथ मुठभेड़ में मार दिया गया था. लश्कर ने दावा किया था कि वहाब बैरमंग का पांचवां निवासी था जो कश्मीर में संगठन के साथ लड़ते हुए मारा गया. आतंकी संगठन ने मारे गए लोगों को “महान योद्धा बताया जो जालिम भारतीय सेना से लड़ते हुए शहीद हुए”.

दिप्रिंट को मिला एक वीडियो यह भी दिखाता है कि 2022 में मारे गए आतंकी हाफिज मोहम्मद अर्सलान के ग़ायबाना नमाज़ में हथियारबंद जैश के सदस्य हवा में गोलियां चला रहे थे.

लश्कर के नेता नसीर अहमद ने मुरिदके में एक सभा में, जो पहलगाम नरसंहार से ठीक पहले हुई थी, कहा कि “हाफिज मोहम्मद सईद की विचारधारा के उत्तराधिकारी उसका जिहाद जारी रखेंगे”. इससे पहले, लश्कर के सह-संस्थापक आमिर हमज़ा, जिन्हें आतंकवाद के लिए धन जुटाने में भूमिका के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित किया गया था, ने मुरिदके में “काफिरों के खिलाफ जिहाद” का आह्वान करते हुए भाषण दिया.

स्थानीय लश्कर नेता रिज़वान हनीफ़ ने खैगला में, जो पहलगाम हमलावर ताहिर के गांव के पास है, अनुयायियों से “गौ-पूजकों के खिलाफ हमारे जिहाद” के लिए तैयार रहने को कहा.

पिछले मामलों में नाकाम जांच

सबूतों की कमी, जैसे NADRA कार्ड, ने पहले भी जम्मू क्षेत्र में हिंदुओं के नरसंहार की जांच को रोक दिया था. चपनारी में बारात पर हमले की जांच ने इन समस्याओं को उजागर किया. अबिद हुसैन, जिसे अबू माज़ कोड नाम से जाना जाता था और जिस लश्कर कमांडर को इस नरसंहार और उस गर्मी में सरावन व छन्ना-ठकरई में हिंदुओं के दो अन्य नरसंहार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, 1999 में मारा गया. हालांकि, उसके पाकिस्तान या लश्कर से जुड़ाव का कोई ठोस सबूत नहीं था.

डोडा क्षेत्र के पांच भारतीय नागरिकों पर नरसंहार में मदद करने का मुकदमा चला, लेकिन सबूतों के अभाव में सभी बरी हो गए. स्थानीय निवासी फारूक अहमद, जिन्हें 1998 में गिरफ्तार किया गया था लेकिन 2006 में बरी कर दिया गया, जल्द ही कस्तिगढ़ गांव छोड़कर चला गया और पुलिस का कहना है कि अब वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में रह रहा है. भट्टा दीसा गांव के निवासी अब्दुल कय्यूम हजाम, मोहम्मद रफ़ीक और अताउल्लाह मोहम्मद को भी 1998 में गिरफ्तार किया गया, लेकिन फिर बरी कर दिया गया.

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए दर्ज किया, “जिन लोगों ने वास्तव में आरोपियों के नाम बताए थे, उन्होंने भी अभियोजन पक्ष का साथ नहीं दिया और विशेष रूप से घटना में उनकी संलिप्तता से इनकार कर दिया. उन्होंने यहां तक कहा कि मुकदमे का सामना कर रहे आरोपी हमलावर नहीं थे.”

स्थानीय निवासी मंज़ूर अहमद गुज्जर को अप्रैल 1998 में प्रनकोटे गांव में 22 बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की हत्या के लिए कथित तौर पर मदद करने के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने मंज़ूर को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है. लेकिन उसे एहतियाती हिरासत कानूनों के तहत रोके रखा गया, इस आधार पर कि वह राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा है. हाई कोर्ट ने 2007 में उसकी रिहाई का आदेश दिया.

सबसे गंभीर नाकामी 36 सिखों के चट्टीसिंहपोरा गांव में नरसंहार के मामले में हुई, जो उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौरे की पूर्व संध्या पर हुआ था. लश्कर का आतंकी मोहम्मद सुहैल मलिक, जिसने मीडिया के सामने 36 सिखों की हत्या करने की बात कबूल की थी, सबूतों के अभाव में बरी हो गया और 2015 में पाकिस्तान भेज दिया गया.

डोडा जांच में शामिल एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “इन सभी मामलों की जांच पुलिस को करनी पड़ी, जिन्हें नियंत्रण रेखा के पार संदिग्धों तक पहुंच नहीं थी, न ही पाकिस्तानी अधिकारियों से मदद. यह तथ्य कि आखिरकार हमारे पास पुख्ता सबूत हैं, उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सक्रिय करेगा और पाकिस्तान पर दबाव डालेगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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