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Thursday, 28 March, 2024
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अमेरिका की तरफ से फ्रीज ईरानी संपत्तियों पर सुनवाई कर रहा ICJ, इससे क्यों प्रभावित हो सकता है रूस

सुनवाई ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका ईरानी परमाणु समझौते को रिवाइव करने की कोशिश कर रहा है. आईसीजे के फैसले का रूस पर भी प्रभाव पड़ सकता है जो कि यूक्रेन पर हमले के कारण प्रतिबंधों का सामना कर रहा है.

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नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) सोमवार को अमेरिका में ईरानी संपत्तियां जब्त किए जाने से जुड़े एक हाई-प्रोफाइल मामले में सुनवाई शुरू करने जा रही है.

इस मामले को आधिकारिक तौर पर कुछ ईरानी संपत्तियां (इस्लामी गणराज्य ईरान बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका) कहा जाता है जिसे 2016 में तेहरान की तरफ से आईसीजे में दायर किया गया था. इसमें अमेरिका में जब्त की गई लगभग 2 बिलियन डॉलर की ईरानी संपत्ति को मुक्त करने और लौटाने की मांग की गई है.

इस बीच, वाशिंगटन का तर्क है कि इस फंड को कथित तौर पर ईरान समर्थित आतंकवाद के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए जब्त किया गया था. इसमें 1983 में बेरूत, लेबनान में एक मरीन कॉर्प्स बेस पर आत्मघाती बमबारी भी शामिल है, जिसमें 241 अमेरिकी सैन्यकर्मी मारे गए थे.

7 अप्रैल 1980 के बाद से ही ईरान और अमेरिका के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं रहे हैं.

कुल मिलाकर आईसीजे में विचाराधीन मामला इस सवाल के इर्द-गिर्द घूमता है कि क्या किसी संप्रभु सेंट्रल बैंक की विदेशी संपत्ति को किसी अन्य देश द्वारा जब्त और डायवर्ट करने से किसी प्रकार का संरक्षण हासिल है. इस मामले में फैसले के निहितार्था दूरगामी होंगे, खासकर यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को देखते हुए.

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वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में लॉ प्रोफेसर पॉल स्टीफन लिखते हैं, ‘…कम से कम संभवना तो है कि कोर्ट (आईसीजे) यह माने कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अमेरिका ने ईरान के अधिकारों का उल्लंघन किया है. अगर (अमेरिकी) कांग्रेस रूस की संपत्ति के मामले में वही दृष्टिकोण अपनाए जैसा उसने ईरान के साथ किया था, तो यह स्पष्ट तौर पर वह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा.’

सुनवाई एक ऐसे नाजुक समय पर हो रही है, जब बिडेन प्रशासन और अमेरिका के सहयोगी ईरानी परमाणु समझौते करार को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन ने 2018 में तोड़ दिया था.

इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध के बीच मास्को को तेहरान का समर्थन भी वाशिंगटन को पसंद नहीं आया है. अमेरिका स्थित थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल की पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यूक्रेन युद्ध ने रूस और ईरान को ‘आर्थिक अलगाव में सहयोगी’ बना दिया है.

पश्चिमी ताकतों ने यूक्रेन पर हमले की वजह से रूस पर पाबंदियां थोपी हैं, जबकि ईरान को 1979 के बाद से कई मौकों पर अमेरिकी पाबंदियों का सामना करना पड़ा है. ईरान ने 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समय ‘अधिकतम दबाव’ झेला जिसके बाद अमेरिका ज्वाइंट कंप्रेहेसिव एक्शन प्लान (जेसीपीओए) से बाहर हो गया था.


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ईरान ने केस क्यों दर्ज कराया

2000 के दशक की शुरुआत से चल रहे बैंक मरकजी बनाम पीटरसन केस में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2016 के फैसले के जवाब में ईरान ने 14 जून 2016 को आईसीजे में अमेरिका के खिलाफ मामला दर्ज कराया था.

इस मुकदमे में 1,300 से अधिक लोग शामिल थे जिन्होंने 1983 के बेरूत बम विस्फोटों और अन्य हमलों में ईरान की कथित भूमिका को लेकर कई अलग-अलग मामलों में अपने पक्ष में फैसले हासिल किए थे. याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि ईरान की सेंट्रल बैंक, जिसे बैंक मरकजी कहा जाता है, के न्यूयॉर्क स्थित सिटी बैंक से जुड़े खाते में जमा धन से उन्हें मुआवजे की रकम मुहैया कराई जाए.

2012 में, जब मामला लंबित ही था, ओबामा प्रशासन ने सिटी बैंक खाते सहित अमेरिका में ईरान सरकार की सभी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया.

इसके अलावा, अमेरिकी कांग्रेस ने ईरान थ्रेट रिडक्शन एंड सीरिया ह्यूमन राइट्स एक्ट, 2012 में एक धारा जोड़ी, जिसके तहत फैसलों पर अमल के लिए फ्रीज की गई विदेशी संपत्तियों के उपयोग की अनुमति थी. कानून में बाकायदा केस डॉकेट नंबर के साथ बैंक मरकजी बनाम पीटरसन मामले का जिक्र भी किया गया.

ईरानी सेंट्रल बैंक ने इस कदम का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि यह ‘असंवैधानिक’ है और शक्तियों के संतुलन के अमेरिकी सिद्धांत का उल्लंघन है और इसका मतलब है कि विधायिका न्यायिक प्रक्रिया को निर्देशित करने का प्रयास कर रही है.

अप्रैल 2016 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 6-2 के फैसले में कहा कि ऐसा कानून असंवैधानिक नहीं था और इसमें किसी भी तरह से शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया गया है.

हालांकि, मुख्य न्यायाधीश जॉन जी. रॉबर्ट्स, जूनियर ने उन मामलों पर केंद्रित कानून पारित करके अदालती मामलों में जीत हासिल करने वालों को ‘पिक’ करने के कांग्रेस के प्रयासों की आलोचना की जिन पर तब मुकदमे की कार्यवाही चल रही थी.

एमिटी संधि

2016 के बाद से तेहरान यह तर्क देता रहा है कि वाशिंगटन ने अमेरिका में ईरानी संपत्ति को जब्त करके और उन्हें अन्य पक्षों को देकर 1955 की एमिटी संधि—दोनों देशों के बीच एक मैत्री करार—का उल्लंघन किया है.

2018 में जब अमेरिका ईरानी परमाणु करार से पीछे हटा तो आईसीजे ने वाशिंगटन को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि तेहरान के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध भोजन और दवा जैसी मानवीय सहायता को प्रभावित न करें.

ट्रंप प्रशासन ने बाद में 2018 में अमेरिका को एमिटी संधि से बाहर कर लिया, जिसे बड़े पैमाने पर प्रतीकात्मक कदम के तौर पर देखा गया.

फरवरी 2019 में ही आईसीजे ने कई सालों सुनवाई के बाद फैसला सुनाया कि ईरान अमेरिका में फ्रीज की गई लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति की वसूली के लिए दावा कर सकता है. अब शुरू होने वाली सुनवाई इसी दावे के इर्द-गिर्द केंद्रित होगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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