वाशिंगटन : अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में तीन सांसदों ने एक विधेयक पेश किया है जिसमें उन नियोक्ताओं को एच-1बी वीजाधारक विदेशी कर्मचारियों को नौकरी पर रखने से रोकने की बात है जिन्होंने अमेरिकी कर्मचारियों को हाल में लंबी छुट्टी पर भेज दिया है या फिर उनकी ऐसी कोई योजना है. इसमें नियोक्ताओं को अमेरिकी कर्मचारियों की अपेक्षा एस1बी धारक कर्मचारियों को अधिक भुगतान देने की बात भी है.
रिपब्लिकन पार्टी के कांग्रेस सदस्य मो ब्रुक्स, मैट गाऐट्ज और लांस गूडेन की ओर से पेश ‘अमेरिकन्स जॉब्स फर्स्ट एक्ट’ में आव्रजन और राष्ट्रीयता कानून में आवश्यक बदलाव करके एच-1बी वीजा कार्यक्रम में आमूल-चूल बदलाव का प्रस्ताव है.
भारतीय मूल के आईटी पेशेवरों में एच-1बी वीजा की सर्वाधिक मांग रहती है. यह गैर-आव्रजक वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को उन विशेषज्ञता वाले पदों पर विदेशी कार्मिकों की नियुक्ति का अधिकार देता है जिनमें तकनीकी विशेषज्ञता जरूरी होती है.
आईटी कंपनियां इस वीजा प्रणाली के आधार पर हर वर्ष भारत और चीन जैसे देशों से हजारों कर्मियों की भर्ती करती हैं.
बुधवार को पेश नए विधेयक के मसौदे के अनुसार किसी ‘विदेशी अतिथि कर्मी’ को तब तक एच-1बी गैर-आव्रजक का दर्जा नहीं दिया जा सकता जब तक याचिकाकर्ता नियोक्ता श्रम मंत्री के समक्ष यह आवेदन नहीं करता कि वह एच-1बी गैर-आव्रजक को अमेरिकी नागरिक या कानूनन स्थायी नागरिक कर्मी को दिये जाने वाले सालाना वेतन से अधिक वार्षिक पारिश्रमिक की पेशकश कर रहा है.
ब्रुक्स ने कहा, ‘अमेरिकन जॉब्स फर्स्ट एक्ट आवश्यक सुधार लाएगा और एच1बी वीजा कार्यक्रम को देखेगा एवं सुनिश्चित करेगा कि अमेरिकी कर्मचारियों को उनके अपने ही देश में और नुकसान नहीं उठाना पड़े.’
उन्होंने कहा, ‘विदेशी कर्मचारियों के कम पारिश्रमिक में उपलब्ध होने जैसे लालच को खत्म करने के लिए विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि नियोक्ताओं को किसी भी एच1बी कर्मचारी को न्यूनतम 1,10,000 डॉलर का भुगतान करना होगा. इसके अलावा अमेरिकी कर्मचारियों की रक्षा के लिए इस विधेयक में कहा गया है कि जो कंपनियां एच1बी कर्मचारी को नौकरी पर रखना चाहती हैं उन्होंने कम से कम दो वर्ष में बिना कारण किसी भी अमेरिकी कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकाला हो और बिना कारण किसी भी अमेरिकी कर्मचारी को अगले दो वर्ष तक नहीं निकालने का वादा किया हो.’
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