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बुधवार, 2 जुलाई, 2025
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उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार सिर्फ ट्रस्ट के पास—दलाई लामा का दावा, चीन ने जताया अपना हक

दलाई लामा ने कहा है कि उनका उत्तराधिकारी वरिष्ठ तिब्बती बौद्ध नेताओं की सलाह से चुना जाएगा. वहीं, उन्हें अलगाववादी मानने वाला चीन इस बात पर अड़ा है कि पुनर्जन्म को चीनी सरकार की मंजूरी मिलना अनिवार्य है.

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नई दिल्ली: चीन के उस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कि उसे अगले दलाई लामा के चयन में कोई भूमिका है, तिब्बती आध्यात्मिक गुरु ने बुधवार को कहा कि केवल गदेन फोड्रंग ट्रस्ट, जिसे उन्होंने स्थापित किया था, को उनके उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार है.

दलाई लामा ने अपने 90वें जन्मदिन से पहले धर्मशाला से एक बयान में कहा, “मैं फिर से स्पष्ट करता हूं कि गदेन फोड्रंग ट्रस्ट को ही भविष्य में मेरे पुनर्जन्म को मान्यता देने का पूरा अधिकार है; किसी और को इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.”

उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया सदियों पुरानी धार्मिक परंपराओं के अनुसार, वरिष्ठ तिब्बती बौद्ध धर्मगुरुओं और आध्यात्मिक रक्षकों की सलाह से पूरी की जाएगी. यह बयान चीन के उस दावे को सीधी चुनौती देता है जिसमें कहा गया है कि लामाओं—खासकर दलाई लामा—का पुनर्जन्म एक राज्य नीति का विषय है.

हालांकि, कुछ ही घंटों बाद, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि भविष्य में होने वाले पुनर्जन्म को चीनी सरकार की मंजूरी जरूरी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराधिकार की प्रक्रिया चीन के कानूनों, नियमों, धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं के तहत ही होनी चाहिए.

चीन इस पर अपनी दावेदारी के पक्ष में 1793 में किंग वंश के समय की एक परंपरा का हवाला देता है, जब उच्च पदों के लामा को चुनने के लिए “गोल्डन अर्न” (सोने की कलश) अनुष्ठान शुरू किया गया था.

दलाई लामा की बुधवार की घोषणा ने चीन के इन लगातार दावों को फिर से खारिज कर दिया. यह वही रुख है जिसे वे दशकों से दोहराते आ रहे हैं. 1969 में उन्होंने कहा था कि उनके पद की निरंतरता का निर्णय तिब्बती जनता पर छोड़ दिया जाना चाहिए. 2011 में जब उन्होंने तिब्बती निर्वासित सरकार में अपने राजनीतिक पद से इस्तीफा दिया, तो उन्होंने औपचारिक रूप से यह स्पष्ट कर दिया कि उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देने की जिम्मेदारी पूरी तरह तिब्बती समुदाय के धार्मिक नेतृत्व की होगी.

धर्मशाला में स्थित निर्वासित संसद का कहना है कि निर्वासित सरकार की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए पहले से ही तंत्र मौजूद हैं, जबकि गदेन फोड्रंग फाउंडेशन उनके उत्तराधिकारी को खोजने और मान्यता देने की जिम्मेदार होगी. यह फाउंडेशन दलाई लामा द्वारा 2015 में स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य उनकी संस्था की आध्यात्मिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करना है. इसके नेतृत्व में उनके कई करीबी सहयोगी शामिल हैं.

बुधवार को उन्होंने बताया कि पिछले 14 वर्षों में उन्हें तिब्बत के अंदर रहने वाले तिब्बतियों, प्रवासी समुदायों और चीन, मंगोलिया और रूस सहित एशिया भर के बौद्ध समुदायों से कई अपीलें मिलीं कि वे दलाई लामा की संस्था को बनाए रखें.

इसके जवाब में उन्होंने औपचारिक रूप से पुष्टि की कि उनकी आध्यात्मिक परंपरा आगे भी जारी रहेगी, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह धार्मिक परंपराओं और तिब्बती बौद्ध समुदाय के नेतृत्व में होगी, किसी भी राजनीतिक शक्ति का इसमें कोई दखल नहीं होगा.

चीन की चिंता

दलाई लामा के पुनर्जन्म का सवाल तिब्बत के राजनीतिक और धार्मिक भविष्य को लेकर चल रहे एक बड़े और बेहद विवादित संघर्ष का हिस्सा है.

1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद, दलाई लामा तिब्बत से भाग गए और धर्मशाला में एक निर्वासित सरकार की स्थापना की, जिसे बीजिंग ने कभी मान्यता नहीं दी. हालांकि उन्होंने लंबे समय पहले तिब्बत की स्वतंत्रता की मांग छोड़ दी थी और उसकी जगह “मध्य मार्ग” अपनाते हुए चीन के भीतर वास्तविक स्वायत्तता की वकालत की, लेकिन चीनी सरकार उन्हें अब भी एक अलगाववादी ताकत के रूप में देखती है.

इस साल मार्च में तनाव तब और बढ़ गया जब दलाई लामा ने अपनी किताब वॉयस ऑफ द वॉयसलेस में सुझाव दिया कि उनका अगला अवतार शायद चीन के बाहर जन्म लेगा. इस किताब में उन्होंने तिब्बतियों से अपील की कि वे किसी भी ऐसे उत्तराधिकारी को स्वीकार न करें जिसे “राजनीतिक उद्देश्यों” के तहत चुना गया हो, जिसमें चीनी सरकार द्वारा चुना गया उत्तराधिकारी भी शामिल है.

इसके जवाब में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने उन्हें एक राजनीतिक निर्वासित बताया और कहा कि उन्हें “तिब्बती लोगों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं है.” प्रवक्ता ने यह भी दावा किया कि चीन के शासन ने तिब्बत में विकास लाया और बंधुआगिरी समाप्त की.

दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी अधिकारियों के बीच आखिरी औपचारिक बातचीत 2010 में हुई थी. इसके बाद बीजिंग ने यह मांग की कि दलाई लामा किसी भी संपर्क से पहले अपनी राजनीतिक सोच को “पूरी तरह सुधारें.”

पिछले साल, अमेरिकी सांसदों के एक द्विदलीय प्रतिनिधिमंडल ने भारत में दलाई लामा से मुलाकात की और तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता के लिए समर्थन जताया। उन्होंने यह भी कहा कि चीन को तिब्बती बौद्ध परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

12 जून 2024 को अमेरिकी कांग्रेस ने रिसॉल्व तिब्बत एक्ट पास किया, जो तिब्बत को लेकर चीनी “भ्रामक जानकारी” का विरोध करता है और दलाई लामा व तिब्बती नेताओं के साथ सीधे संवाद की मांग करता है ताकि विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकल सके. यह कानून तिब्बतियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता देता है और उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक पहचान को स्वीकार करता है.

बीजिंग ने रिसॉल्व तिब्बत एक्ट को खारिज कर दिया और दोहराया कि तिब्बत चीन का अभिन्न हिस्सा है, साथ ही किसी भी विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी भी दी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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