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Monday, 23 December, 2024
होमविदेशCOP27: EU कोल पैक्ट 'कमजोर न करने' पर 'सभी' जीवाश्म ईंधन हटाने की भारत की मांग का करेगा समर्थन

COP27: EU कोल पैक्ट ‘कमजोर न करने’ पर ‘सभी’ जीवाश्म ईंधन हटाने की भारत की मांग का करेगा समर्थन

भारत ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए 'सभी जीवाश्म ईंधनों’ की खपत को कम करने की आवश्यकता है'. पिछले साल इसने कोयले को फेज आउट करने का विरोध किया था, जिसके बदले में इसके फेज डाउन वाली शर्त को अपनाया गया था.

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शर्म अल-शेख: यूरोपियन कमीशन के उपाध्यक्ष, फ्रांस तिम्मरमानस ने मंगलवार को मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे कॉप 27 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान जारी एक प्रेस बयान में कहा कि यूरोपियन यूनियन (यूरोपीय संघ) ‘सभी’ तरह के जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने (फेज डाउन) के लिए भारत के प्रस्ताव का समर्थन करेगा, बशर्ते वह ‘कोयले के उपयोग को फेज डाउन करने पर हुए हमारे पहले के समझौते को कमजोर नहीं करता है.’

इस बयान के द्वारा यूरोपीय संघ ने उस बात पर दोहरा जोर लगाया है जिस पर पिछले साल ग्लासगो में आयोजित सीओपी 26 के दौरान अंततः सहमति हुई थी. इसके तहत कोयले के उपयोग को फेज डाउन करने के लिए चिन्हित किया गया था, शुरू में मांग यह थी कि इसके उपयोग को फेज आउट (चरणबद्ध तरीके से प्रचलन से बाहर) किया जाये.

भारत उन देशों के समूह में शामिल था, जिन्होंने अपने नागरिकों को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के प्रति सरकार की जिम्मेदारी का हवाला देते हुए कोयले को फेज आउट करने का विरोध किया था. फ़िलहाल भारत का अधिकांश बिजली उत्पादन कोयले पर निर्भर है.

कॉप26 में भारत द्वारा आधी रात के बाद बातचीत में किये गए हस्तक्षेप ने एक शर्त को अंतिम रूप से अपनाये जाने के लिए प्रेरित किया था, जिसने विकसशील देशों को ‘बिना किसी तरह की कमी के कोयला से बिजली उत्पादन करने की प्रवृत्ति में चरणबढ़ रूप से कमी लाने, और अपनी-अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोगों को सहायता प्रदान करते हुए भी जीवाश्म ईंधन के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया.’


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पिछले हफ्ते, भारत ने कॉप27 प्रेसीडेंसी के समक्ष एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें कहा गया था कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री ऊपर ‘के स्तर से काफी नीचे’ तक सीमित करने के लिए सिर्फ एक नहीं बल्कि ‘सभी तरह के जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने की आवश्यकता है. इसके लिए इसने जलवायु परिवर्तन पर यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत जलवायु संरक्षण संबंधी कार्रवाई (क्लाइमेट एक्शन) को नियंत्रित करने वाली सामान्य लेकिन बंटी हुई जिम्मेदारियों पर जोर दिया.

यह संकेत देते हुए कि तेल और गैस के उपयोग में चरणबद्ध कमी में कोयले के उपयोग में ऐसा होने के बाद ही कमी आएगी, मंगलवार के संवाददाता सम्मलेन के दौरान टिम्मरमैन्स ने कहा कि यूरोपीय संघ भारत के प्रस्ताव का समर्थन करेगा बशर्ते यह ग्लासगो में हम पहले से ही जिस बात पर सहमत हुए हैं, उसके अलावा आता है तो.’

उन्होंने कहा, ‘जैसा कि हम पिछले साल सहमत हुए थे, कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के प्रयासों से हमारा ध्यान नहीं हटना चाहिए.’

टिम्मरमैन का बयान यूरोपीय संघ द्वारा यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर रूस पर अपनी ईंधन संबंधी निर्भरता को कम करने के लिए लाखों क्यूबिक मीटर गैस और तेल के आयात के लिए किये गए कई सौदों पर हस्ताक्षर करने के बाद आया है.

इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इंटरनेशनल रिलेशंस (आईडीडीआरआई) में जलवायु कार्यक्रम निदेशक लोला वैलेजो ने दिप्रिंट को बताया, ‘जीवाश्म ईंधन को फेज डाउन करने के भारत के प्रस्ताव को सकारात्मक रूप में देखा जाना चाहिए, और यूरोपीय संघ इसके प्रति समर्थन व्यक्त करता है. लेकिन वह सुनिश्चित करना चाहता है कि कोयले को फेज डाउन करने की प्रतिबद्धता से कोई भी पीछे न हटे. मुझे नहीं लगता कि यूरोपीय संघ इसके विरुद्ध है.’

इसी 11 नवंबर को, मिस्र ने घोषणा की कि उसने अपने नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का विस्तार करने और अपने गैस की आपूर्ति को फिलहाल घोर ऊर्जा संकट का सामना कर रहे यूरोप की तरफ मोड़ने के लिए अमेरिका और जर्मनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

दिल्ली में स्थित और शोध-आधारित परामर्श व क्षमता-निर्माण पहल से संबंधित जलवायु संचार (क्लाइमेट कम्युनिकेशन) फर्म क्लाइमेट ट्रेंड्स के अनुसार, कॉप27 में कम से कम आठ तेल और गैस सौदे हुए हैं, जिनमें से चार में यूरोप को उनकी आपूर्ति किये जाने की बात शामिल है.

‘लॉस एंड डैमेज वाले प्रावधान के बारे में व्यावहारिक होना चाहिए’

लॉस एंड डैमेज फाइनेंस- चर्चा का एक ऐसा मुद्दा जो इस वार्ता के गतिरोध फंसा हुआ है – पर यूरोपीय संघ के रुख के बारे में पूछे जाने पर टिमरमन्स ने कहा कि यूरोपीय संघ इसके बारे में ‘ऐसे समाधान खोजने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है जो सहमति योग्य हो और साथ ही साथ इसके लिए पैसों की व्यवस्था करना आसान बना दे.’

बता दें कि विकासशील देशों ने एक ऐसी वित्तीय सुविधा की मांग की है जो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से उत्पन्न होने वाले नुकसान और क्षति (लॉस एंड डैमेज) के लिए धनराशि प्रदान करे.

इस वार्ता के दौरान, यूरोपीय संघ ने यह नहीं कहा है कि यह ऐसी किसी वित्तीय सुविधा का समर्थन करता है, इसके बजाय इसने कहा है कि वह ‘लॉस एंड डैमेज’ के कारण कमजोर लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के तरीकों की पहचान करने की प्रक्रिया’ स्थापित करने का समर्थन करता है.

अपनी प्रस्तुति में इसने जर्मनी द्वारा कमजोर देशों को होने वाले ‘लॉस एंड डैमेज’ के खिलाफ बीमा करने के लिए शुरू की गई ‘ग्लोबल शील्ड’ नाम की एक योजना का भी समर्थन किया.

सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के समूहों ने ‘ग्लोबल शील्ड’ की आलोचना की है. उनका दावा है कि कमजोर देश इसके प्रीमियम का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते ‘लॉस एंड डैमेज’ का अधिक समय तक बीमा नहीं किया जा सकता है.

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी के प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा, ‘एक ऐसे नए तंत्र पर ध्यान केंद्रित करना जो समुद्र के बढ़ते स्तर या भाषा एवं संस्कृति के नुकसान जैसी धीमी शुरुआत वाली घटनाओं को कवर नहीं करता है, समुदायों की जमीनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है.‘

उन्होंने कहा: ‘ग्लोबल शील्ड वाला कार्यक्रम कॉप27 में ‘लॉस एंड डैमेज’ के लिए एक वित्तीय सुविधा स्थापित करने की विकासशील देशों की प्राथमिक मांग से ध्यान नहीं भटका सकता है.’

अनुवाद: रामलाल खन्ना

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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