scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमविदेशजलवायु संकट से धरती पर पड़ रहा गंभीर असर, बच्चा पैदा करना है तो कुछ बातों पर कर लें विचार

जलवायु संकट से धरती पर पड़ रहा गंभीर असर, बच्चा पैदा करना है तो कुछ बातों पर कर लें विचार

2012 और 2022 के बीच प्रकाशित शोध का विश्लेषण करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग जलवायु संकट के बारे में चिंतित थे, वे आमतौर पर कम बच्चे पैदा करना चाहते थे या बच्चे पैदा ही नहीं करना चाहते थे.

Text Size:

लैंकेस्टर (यूके) (द कन्वरसेशन) : हमारे ग्रह पर पड़ रहे विनाशकारी प्रभाव के बारे में चेतावनियां और अधिक भयावह होती जा रही हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की सबसे हालिया उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट, जो ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने में हमारी प्रगति पर नज़र रखती है, से पता चला है कि दुनिया इस सदी के अंत से पहले वैश्विक तापन के ‘‘नारकीय’’ 3°डिग्री सेल्सयस की ओर अग्रसर है.

जब परिदृश्य इतना अंधकारमय हो तो आप अपने परिवार के लिए योजना कैसे बना सकते हैं? यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के होप डिलरस्टोन, लॉरा ब्राउन और एलेन फ्लोर्स द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डालने के लिए मौजूदा सबूतों की समीक्षा की गई है कि जलवायु संकट बच्चे पैदा करने या न करने के निर्णयों को कैसे आकार दे रहा है.

2012 और 2022 के बीच प्रकाशित शोध का विश्लेषण करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग जलवायु संकट के बारे में चिंतित थे, वे आमतौर पर कम बच्चे पैदा करना चाहते थे या बच्चे पैदा ही नहीं करना चाहते थे. अधिक जनसंख्या और अत्यधिक उपभोग के बारे में चिंताएं, भविष्य के बारे में अनिश्चितता और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने की चिंताएं लोगों में छोटे परिवारों की इच्छा को प्रेरित करने वाले कारकों में शामिल थीं.

अत्यधिक जनसंख्या और अत्यधिक उपभोग

क्या आप अपने संभावित बच्चे के कार्बन फ़ुटप्रिंट के बारे में दोषी महसूस करते हैं? शायद आप आधुनिक समाज के भौतिकवादी मूल्यों और अति उपभोग की अनिवार्यता से निराश हैं? ये मुद्दे कई समीक्षा किए गए अध्ययनों में भी सामने आए.

अधिक जनसंख्या के विचार के पीछे एक लंबा, समस्याग्रस्त और राजनीतिक इतिहास है. विभिन्न रूपों में, यह विचार कम से कम 18वीं सदी के अंत से ही चारों ओर तैर रहा है. इसने कुछ देशों में अनैतिक ‘‘जनसंख्या नियंत्रण’’ उपायों को बढ़ावा दिया है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

कुछ (जैसे पॉल एर्लिच, 1960 की विवादास्पद पुस्तक ‘‘द पॉपुलेशन बम’’ के लेखक) का तर्क है कि हमारे ग्रह पर पहले से ही बहुत सारे लोग रहते हैं, और लोगों की भारी संख्या हमारे वर्तमान पर्यावरणीय संकट का कारण बन रही है. लेकिन अधिक जनसंख्या के बारे में जो तर्क बार-बार छूट जाता है वह यह है कि यह सिर्फ इस बारे में नहीं है कि ग्रह पर कितने लोग हैं, बल्कि यह भी मायने रखता है कि हम कितनी स्थिरता से रहते हैं. संख्याएं पूरी कहानी नहीं बता सकतीं.

जिस तत्परता से हमें जलवायु संकट से निपटने की आवश्यकता है, उसका तात्पर्य यह भी है कि जलवायु की खातिर बच्चे पैदा न करने का विकल्प अब अपर्याप्त और अप्रभावी साबित होगा. कम प्रजनन क्षमता के साथ भी, जनसंख्या की गति के कारण जनसंख्या बढ़ती रहेगी. भले ही प्रजनन दर में गिरावट आ रही हो, फिर भी वैश्विक आबादी में प्रजनन आयु के लोगों की संख्या अभी भी बड़ी है, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु की तुलना में जन्म अधिक हो रहे हैं.

कई अध्ययनों में प्रतिभागियों ने बताया कि कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती जैसे अधिक संरचनात्मक समाधानों की तत्काल आवश्यकता है और यह परिवार के आकार को कम करने की तुलना में अधिक प्रभावी होने का वादा करता है.

भविष्य के बारे में अनिश्चितता

क्या आप चिंतित हैं कि आपके भावी बच्चे क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र के कारण प्रकृति का आनंद नहीं ले पाएंगे? शायद आप अधिक विनाशकारी परिणाम, जैसे पूर्ण सामाजिक पतन, के बारे में चिंतित हैं? समीक्षा से पता चलता है कि ये लोगों के कम बच्चे पैदा करने के फैसले को प्रभावित करने वाले प्रमुख विषय हैं, खासकर अमेरिका, कनाडा, यूरोप और न्यूजीलैंड में रहने वाले लोगों के लिए.

ये चिंताएं समझ में आती हैं. संयुक्त राष्ट्र की हालिया उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि केवल 14% संभावना है कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को अधिकतम 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर देगी जिसकी जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा मांग की जा रही है.

साथ ही, दुनिया भर में करोड़ों लोग पहले से ही अपने रोजमर्रा के जीवन में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों का अनुभव कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, ज़ाम्बिया और इथियोपिया में, जलवायु परिवर्तन की चिंताओं का बच्चे के जन्म पर बहुत अधिक तत्काल प्रभाव पड़ रहा है.

2021 के एक अध्ययन में, जिसने जाम्बिया की महिलाओं की सामाजिक और वित्तीय भलाई और उनके प्रजनन जीवन पर सूखे के प्रभाव का पता लगाया, एक प्रतिभागी ने कहा: ‘‘जिन छह बच्चों की मैं इच्छा रखती हूं उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होगा. लेकिन कम बच्चे पैदा करने के लिए, लोगों को गर्भनिरोधक तक पहुंच की आवश्यकता होती है, जिसकी आपूर्ति बाधित हो सकती है, खासकर संकट के समय में.

इसके साथ ही, जाम्बिया में अन्य उत्तरदाताओं ने बताया कि वे वित्तीय और श्रम सहायता प्रदान करने के लिए अधिक बच्चे पैदा करने पर विचार कर रहे हैं. यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे जलवायु संकट पहले से ही और सीधे तौर पर प्रजनन न्याय में बाधा डाल रहा है – बच्चे पैदा करने का अधिकार, बच्चे पैदा न करने का और सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में माता-पिता बनने का अधिकार – विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण (अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में कम आय वाले देश) में.

एक राजनीतिक विकल्प के रूप में बच्चा पैदा करना

अंततः, जलवायु संकट एक सामूहिक और इसलिए राजनीतिक संकट है. यदि हम अपनी सरकारों को उद्योग और उपभोक्ताओं द्वारा उत्पन्न उत्सर्जन को भारी मात्रा में कम करने का आदेश देते हैं, तो हम सबसे खराब जलवायु परिणामों से बचने की अधिक संभावना रखते हैं, बजाय इसके कि हम अपने व्यक्तिगत व्यवहार को बदलने पर ध्यान केंद्रित करें.

समीक्षा में शामिल एक अध्ययन ने यह विश्लेषण करके यह बात कही कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने बच्चे पैदा करने के निर्णयों को कैसे अपनाया. कुछ लोगों ने राजनीतिक दबाव डालने और वकालत करने के साधन के रूप में बच्चे पैदा न करने का निर्णय लिया, उदाहरण के लिए, पूर्व बर्थस्ट्राइक आंदोलन के माध्यम से.

दूसरों के लिए, बच्चे न पैदा करना जलवायु संकट पर केंद्रित राजनीतिक और वकालत गतिविधियों के लिए समय और ऊर्जा खाली करने का एक विकल्प था. इसके बजाय कुछ लोगों ने बच्चे पैदा करने को भावी कार्यकर्ता तैयार करने के एक तरीके के रूप में देखा.

अंततः, चुनाव नितांत व्यक्तिगत है. एकमात्र ‘‘सही’’ उत्तर वही है जो आपके लिए सर्वोत्तम हो. लेकिन हम सभी यह सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रयास कर सकते हैं कि नीतियां हर किसी को अपनी पसंद चुनने में मदद करें.

(जैस्मिन फ्लेडरजोहान, लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी और लॉरा सोचास, द यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग)

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


यह भी पढे़ं : ‘सरकार अच्छी, काम अच्छा, लेकिन..,’ क्या रोटी पलटने का सिलसिला राजस्थान में जारी रहेगा?


 

share & View comments