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Thursday, 16 May, 2024
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सीओपी28 में कार्बन कर जलवायु लड़ाई में तब्दील हुआ

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(गौरव सैनी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया और सिबी अरासु, द एसोसिएटेड प्रेस)

(संपादक: यह लेख इंडिया क्लाइमेट जर्नलिज्म प्रोग्राम के तहत निर्मित एक श्रृंखला का हिस्सा है, जो प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, एसोसिएटेड प्रेस और स्टेनली सेंटर फॉर पीस एंड सिक्योरिटी के बीच एक सहयोग है)

दुबई, 10 दिसंबर (भाषा/एपी) भारत और चीन जैसे देशों से आयातित सामान बनाने के लिए उत्सर्जित कार्बन प्रदूषण पर कर लगाने की यूरोपीय संघ की योजना ने दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में बहस छेड़ दी है, क्योंकि गरीब देशों का तर्क है कि कर आजीविका और आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचाएगा।

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के रूप में जाना जाने वाला यह कर गैर-ईयू देशों में लोहा, स्टील, सीमेंट, उर्वरक और एल्यूमीनियम जैसे ऊर्जा-गहन उत्पादों को बनाने के लिए उत्सर्जित कार्बन पर एक मूल्य निर्धारित करना चाहता है।

यूरोपीय संघ का कहना है कि यह घरेलू स्तर पर निर्मित वस्तुओं के लिए समान अवसर पैदा करता है, जिन्हें सख्त हरित मानकों का पालन करना होता है और आयात से उत्सर्जन भी कम होता है। लेकिन अन्य देश, विशेष रूप से विकासशील देश, चिंतित हैं कि इससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा और इस गुट के साथ व्यापार करना बहुत महंगा हो जाएगा।

यूरोपीय आयुक्त वोपके होकेस्ट्रा ने सीओपी28 में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘सीबीएएम का एकमात्र उद्देश्य आपूर्ति श्रृंखला में कहीं और कार्बन रिसाव को रोकना है’।

उन्होंने कहा कि कर 2030 तक उत्सर्जन में 55 प्रतिशत की कटौती के ब्लॉक के जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करने और वित्त पोषण के लिए महत्वपूर्ण है।

व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि उत्सर्जित कार्बन पर प्रति टन 44 अमेरिकी डॉलर का कर लगाने से आपूर्ति श्रृंखला से प्रदूषण आधा हो जाएगा। यह भी अनुमान लगाया गया है कि अमीर देश कर से 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर कमाएंगे, लेकिन गरीब देशों को 5.9 अरब अमेरिकी डॉलर तक का नुकसान हो सकता है।

आयात पर कार्बन कर के बिना, डर यह है कि यूरोपीय संघ की उत्सर्जन सीमा उद्योगों को ब्लॉक के बाहर अन्य देशों में धकेल देगी, जिनके यहां ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन संबंधी नियम शिथिल हैं।

अमेरिका और कनाडा जैसे देश भी कार्बन कर के अपने स्वयं के संस्करणों पर विचार कर रहे हैं, जिससे कुछ लोगों को चिंता है कि यह विकासशील देशों पर भारी पड़ सकता है।

भारत सरकार इस विचार का कड़ा विरोध करने वालों में से एक है।

भारत की पूर्व इस्पात सचिव अरुणा शर्मा ने सरकार से कर का विरोध जारी रखने का आग्रह किया, लेकिन कहा कि उद्योगों को निर्यात और घरेलू सामान दोनों के लिए कार्बन उपयोग कम करने के लिए निवेश करने की आवश्यकता है।

भाषा नेत्रपाल नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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