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Monday, 23 December, 2024
होमविदेशपाकिस्तान में 'अनाथों की मां' कहीं जाने वाली बिलकिस इदी जिसने हज़ारों बच्चों को मौत से बचाया

पाकिस्तान में ‘अनाथों की मां’ कहीं जाने वाली बिलकिस इदी जिसने हज़ारों बच्चों को मौत से बचाया

इस 74 वर्षीय मानवतावादी, जिनका शुक्रवार को निधन हो गया, को उनके 'झूला' प्रोजेक्ट के लिए जाना जाता था. इसके तहत उन्होंने अनचाहे बच्चों के लिए पूरे देश भर में पालने रखे हुए थे जिन्हें बाद में उनके इदी फाउंडेशन ने गोद ले लिया था..

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नई दिल्ली: नर्स, मानवतावादी और परोपकारी (फ़िलांथ्रोपिस्ट) बिलकिस बानो इदी, जिन्हें पाकिस्तान के सामाजिक कल्याण के हलके में एक बड़ी शख्सियत और अक्सर ‘अनाथों की मां’ के रूप में जाना जाता है. बिलकिस बानो ने शुक्रवार को कराची के आगा खान अस्पताल में 74 वर्ष की उम्र में स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं की वजह से इस दुनिया को अलबिदा कह दिया.

उनकी मृत्यु के बाद, पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें यह सिफारिश की गई है कि उनके द्वारा की गई ‘देश की अद्वितीय सेवाओं’ के लिए उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, निशान-ए-पाकिस्तान, से मरणोपरांत रूप से नवाजा जायेग.

अपने जीवनकाल के दौरान, बिल्किस को साल 1986 में लोक सेवा (पब्लिक सर्विस)  के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो उन्हें उनके शौहर और फ़िलांथ्रोपिस्ट अब्दुल सत्तार इदी के साथ संयुक्त रूप से मिला था. उन्हें 2015 में सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा मेमोरियल इंटरनेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था.

बिल्किस ने कराची स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था, इदी फाउंडेशन, के सह-अध्यक्ष के रूप में काम किया, जो दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी एम्बुलेंस नेटवर्क है और जो अपनी अन्य सेवाओं के साथ-साथ बेघर लोगों के पनाहगाहों और उनके पुनर्वास केंद्रों की देखरेख भी करता है. इसकी स्थापना उनके शौहर ने की थी, जिनकी साल 2016 में मृत्यु हो गई थी.

बिल्किस के काम की एक सबसे बड़ी पहचान ‘झुला’ (पालना) परियोजना से जुडी थी – इसके तहत शिशु हत्या, विशेष रूप से कन्या भ्रूण हत्या, से लड़ने के प्रयास में पूरे पाकिस्तान में पालने रखे गए थे.

शनिवार को, भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी मौत पर अपनी संवेदना व्यक्त की. उन्होंने ट्वीट किया, ‘बिल्किस इदी के निधन पर मेरी हार्दिक संवेदना. मानवीय कार्यों के प्रति उनके आजीवन समर्पण ने दुनिया भर के लोगों के जीवन को प्रभावित किया. भारत में भी लोग उन्हें प्यार से याद करते हैं. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.’

साल 2015 में बिलकिस ने गीता नाम की एक दिव्यांग भारतीय महिला की भारत वापस लौटने में मदद की थी जो  एक दशक पहले गलती से पाकिस्तान चली गई थीं. इसके लिए बिलकिस की पीएम मोदी ने प्रशंसा की थी. उस समय, प्रधान मंत्री मोदी ने घोषणा की थी कि भारत इदी फाउंडेशन के काम की सराहना के निशानी के रूप में उसे 1 करोड़ रुपये दान करेगा. मगर, ख़बरों के अनुसार बिलकिस के पति अब्दुल ने भारतीय पीएम के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था और उनके फाउंडेशन के एक प्रवक्ता ने कहा था कि इस मानवतावादी शख्श ने कभी सरकारों या संस्थानों से सहायता स्वीकार नहीं की.

गुजरात में जन्मीबंटावरे के समय पाकिस्तान चली गईं

बिलकिस का जन्म गुजरात के जूनागढ़ स्थित बंटवा में भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या यानि कि 14 अगस्त, 1947 को हुआ था. हालाँकि, वह देश के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान चली गईं. पाकिस्तानी अख़बार ‘डॉन’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंसानियत की सेवा करने के प्रति एक ज़बरदस्त जुनून के वजह से वह एक किशोरी के रूप में ही इदी फाउंडेशन में शामिल हो गईं. पेशे से एक नर्स के रूप में वह फाउंडेशन के मैटरनिटी क्लिनिक (प्रसूति विभाग)  में काम करती थीं .

इदी फाउंडेशन की स्थापना 1951 में बिलकिस के जल्द ही शौहर बनने वाले अब्दुल सत्तार इदी द्वारा की गई थी, जो उनसे लगभग बीस साल बड़े थे. ब्रिटिश लेखक और पत्रकार जान गुडविन ने अपनी पुस्तक ‘प्राइस ऑफ ऑनर: मुस्लिम वीमेन ‘लिफ्ट द वेल ऑन साइलेंस ऑफ़ द इस्लामिक वर्ल्ड’ में लिखा है कि एक समय में पाकिस्तान के एकमात्र सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में से एक रूप में यह साल 1947 और 2007 के बीच कराची में सांप्रदायिक झड़पों के दौरान लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण पनाहगाह के रूप में कार्य करता था.

गुडविन ने अपनी पुस्तक इसके बारे में समझाते हुए लिखा है : ‘इदी की ढाई सौ एम्बुलेंस ही एक मात्र ऐसी एम्बुलेंस हैं जो विस्फोटक हिंसा और भारी गोलाबारी का मुकाबला करती हैं’.  वे आगे लिखती हैं कि यह उस समय के आसपास का वक्त था जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने कराची में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी.


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 झूला प्रोजेक्ट

साल 1965 में अब्दुल और बिलकिस ने शादी कर ली. ‘द टेलीग्राफ’ के लिए साल 2011 में  की गई एक रिपोर्ट में पत्रकार पीटर ओसबोर्न ने लिखा था कि यह निकाह लगातार सात महिलाओं द्वारा अब्दुल के साथ शादी के प्रस्तावों को ठुकराने के बाद हुआ था.

बिलकिस ने अंततः इदी फाउंडेशन के ‘मातृत्व क्लीनिक’ और महिलाओं से संबंधित ‘परोपकारी परियोजनाओं’ की बागडोर संभाली. अब्दुल ने विशेष रूप से ऐसे मुद्दों के लिए अपने फाउंडेशन के साथ संबद्ध एक और संगठन बनाया, और इसका नाम बिल्किस के नाम पर रखा. साल 2016 में अब्दुल की मौत के बाद, बिलकिस ने फाउंडेशन के सभी गतिविधियों की बागडोर अपने हाथों में ले ली.

बिल्किस के सबसे अधिक मान्यता प्राप्त कार्यों में से एक ‘झुला’ प्रोजेक्ट है.

उनके फाउंडेशन ने पाकिस्तान में शिशुहत्या, विशेष रूप से कन्या भ्रूण हत्या, और साथ ही बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, की उपेक्षा और उन्हें अकेला छोड़ दिए जाने की समस्या का मुकाबला करने के लिए देश भर के इदी फाउंडेशन से सम्बद्ध घरों और केंद्रों के बाहर ‘झूलों’ (पालनों) को रखा.

गुडविन लिखती हैं इनमें से कुछ पालनों में सन्देश लिखे थे कि ‘बेकसूर बच्चे को मत मारो. पहले गुनाह को सबसे बुरा गुनाह मत बनाओ’.

इन पालनों में छोड़े गए शिशुओं को अंततः फाउंडेशन की हिफाजत और देखभाल में ले लिया जाता था, जिसके बाद उन्हें गोद लेने की व्यवस्था की जाती थी.

इस सेवा ने कथित तौर पर पाकिस्तान में 42,000 से अधिक अनचाहे बच्चों को बचाया.

हालांकि, जापानी प्रोफेसर मिनोरू मियो, काज़ुया नाकामीज़ो और तात्सुरो फुजिकुरा द्वारा संपादित पुस्तक ‘द डायनेमिक्स ऑफ़ कॉन्फ्लिक्ट एंड पीस इन कंटेम्पररी साउथ एशिया’ (2020) ने बताया गया है कि क्यों इस परियोजना को पहली बार शुरू किये जाने के वक्त मजहबी मौलवियों की तरफ से विरोध का सामना करना पड़ा था.

कुछ मौलवियों ने इसे एक ऐसी सेवा के रूप में समझ लिया जो ‘लोगों को शादी के दायरे से परे बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी‘. हालांकि, जैसा कि इन लेखकों ने लिखा है, इस परियोजना के एक काफी महत्व वाली समाज सेवा साबित होने के बाद लोगों के लिए इदी केंद्रों के अधिकारियों को खुद बच्चों को सौंपने के लिए आगे आना आसान हो गया.

इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि बिल्किस को अक्सर ‘अनाथों की मां’ के रूप में जाना जाता है.

पिछले जनवरी में, बिलकिस को संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रतिवेदक (ह्यूमन राइट्स राप्पोर्टर) प्रोफेसर यांगी ली और अमेरिकी नैतिकतावादी (एथिसिस्ट) स्टीफन सोल्ड्ज़ के साथ ‘पर्सन ऑफ़ डी डिकेड’ के रूप में नामित किया गया था.

इम्पैक्ट हॉलमार्क, एक अंतरराष्ट्रीय निकाय जिसने इस पुरस्कार प्रदान करने से जुडी प्रक्रिया का संचालन किया, ने बिलक्विस, ली और सोल्ड्ज़ को ‘दशक के इम्पैक्ट हॉलमार्क के शीर्ष क्रम को बढ़ाने वाले और इसे सेग्मेंट्स में बांटने वाले’ के साथ-साथ जनमत सर्वेक्षणों की शीर्ष ‘त्रिमूर्ति’ के रूप में भी वर्णित किया था .

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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