नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ घंटों पहले के9 (K9) सैनिक की एक तस्वीर ट्वीट की, जिसने सीरिया के इदलिब में एक अंधेरी और खतरनाक सुरंग के माध्यम से डेल्टा फोर्स के छापे के दौरान आइसिस नेता अबू बकर अल-बगदादी का पीछा किया और अंततः उसे मार डाला.
कुत्ते की पहचान अब कॉनन के रूप में की गई है, जो एक बेल्जियन मेलिनोइस है. ऑपरेशन में घायल होने के बाद कॉनन वापस ड्यूटी पर आ गया है.
यह उसी कुत्ते की नस्ल है जिसका उपयोग अमेरिकी नौसेना के जवानों द्वारा 2011 के ऑपरेशन में अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए किया गया था.
अपनी फुर्तीली रफ़्तार, तेज दिमाग और शानदार धीरज और आक्रामकता के लिए जानी जाने वाली बेल्जियन मेलिनोइस दुनिया भर में विशेष बलों और सुरक्षा एजेंसियों के नए पसंदीदा के तौर पर उभरी है. एक जर्मन शेफर्ड के विपरीत, ये कुत्ते अपने छोटे आकार के कारण विमान से पैराशूटिंग और तेज़-रोपिंग के लिए एकदम फिट बैठते हैं.
उनका छोटा कोट गर्म वातावरण वाले इलाकों जैसे कि इराक या अफगानिस्तान के लिए भी आदर्श है. हाल के युद्धों में ये नस्ल इतनी प्रमुख रही है कि वॉशिंगटन एक्जामिनर के अनुसार, उत्तरी कैरोलिना के फेएटविले में स्पेशल ऑपरेशन फोर्स डॉग मेमोरियल में एक बेल्जियन मेलिनोइस की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गयी है.
वॉर डॉग: ए सोल्जर्स बेस्ट फ्रेंड (डॉक्युमेंट्री) का निर्देशन करने वाले फिल्मकार देबोराह स्क्रैंटन ने कहा, ‘इन कुत्तों का रैंक उन्हें संभालने वाले से भी एक ज्यादा होता है, इससे पता चलता है कि वो टीम मेंबर के रूप में कितने मूल्यवान हैं. परंपरागत रूप से, कुत्ते एक गैर-कमीशन अधिकारी की रैंक रखते हैं. अमेरिकी सेना के अनुसार, उन्होंने दुर्घटनाओं को रोकने के तरीके के रूप में अपने हैंडलर्स को पछाड़ दिया.
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कुत्तों की इस नस्ल का इस्तेमाल भारतीय सुरक्षा बल जैसे सीआरपीएफ, कोबरा और आईटीबीपीऔर द्वारा नक्सल विरोधी अभियानों में भी किया जाता है. पठानकोट हमले के दौरान एनएसजी के संचालन का एक हिस्सा कुत्ता भी था जो कि एक आतंकवादी को गिराने में सक्षम हुआ था जिससे सुरक्षा बल उसे आसानी से निशाना बना पाएं.
भारत में बेल्जियन मेलिनोइस
मूलरूप से बेल्जियम से आने वाले मेलिनोइस को हर्डिंग कुत्ते के रूप में जाना जाता है. ये आमतौर पर काले मुखौटे जैसे चेहरे और कानों के साथ भूरे से महोगनी रंगों में पाए जाते हैं. नर की ऊंचाई करीब 24-26 इंच और मादाओं की 22-24 होती है. लिंग के आधार पर इनका वज़न लगभग 20-30 किलोग्राम होता है.
‘हमने पहले जर्मन शेफर्ड और लैब्राडोर का उपयोग किया था. लैब्स को शुद्ध रूप से सूंघने के लिए उपयोग किया जाता था, जबकि जर्मन शेफर्ड का उपयोग आक्रामक कार्यों के लिए भी किया जाता था, ‘डीआईजी एम एल रविंद्र (डॉग ब्रीडिंग एंड ट्रेनिंग स्कूल के प्रमुख) ने दिप्रिंट को बताया.
सीआरपीएफ ने भारत में पहली बार इस नस्ल को लेकर आई और यह अब लंबे अभियानों में शामिल सुरक्षा बलों की पसंदीदा बन चुकी है.
‘नक्सल इलाकों में हमारा अभियान लंबा है और कई दिनों तक चलता रह सकता है जब जवान घने जंगलों के बीच से मार्च करते हुए निकलते हैं. लैब्राडोर और जर्मन शेफर्ड लगभग 3-4 किमी लगातार चल सकते थे. हालांकि, बेल्जियम मेलिनोइस 30 किमी तक लगातार चल सकते हैं. वे बेहद फुर्तीले और आक्रामक हैं लेकिन जर्मन शेफर्ड की तरह ही कमांड सुनते हैं’ रविंद्र ने बताया.
वर्तमान में सीआरपीएफ द्वारा 553 बेल्जियन मेलिनोइस तैनात किए गए हैं जिनमें से 192 का प्रशिक्षण चल रहा है. डीआईजी ने कहा कि बल इस समय लगभग 500 कुत्तों की कमी का सामना कर रहा है. सीआरपीएफ में कैनाइन इकाइयां कई जानों को बचाने में सक्षम रही हैं क्योंकि वे आम तौर पर एक विस्फोटक पदार्थ (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) के बारे में सचेत करने वाले सबसे पहले होते हैं.
आईटीबीपी पंचकूला में अपना खुद का प्रशिक्षण केंद्र भी चलाती है और प्रधानमंत्री के विशेष सुरक्षा समूह सहित कई बलों को आपूर्ति करती है.
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एक आईटीबीपी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम देशभर में अपने लिए और विभिन्न ताकतों के लिए प्रशिक्षण देते हैं. हम नई नस्लों को भी आज़मा रहे हैं, जिनमें भारतीय नस्ल मुधोल हाउंड भी शामिल है. ये कुत्ते बहुत अच्छे परिणाम दे रहे हैं और लागत के अनुकूल भी हैं.’
सेना द्वारा अपनी सूची में मुधोल हाउंड्स की स्वदेशी नस्ल को शामिल करने के तीन साल बाद, अब कैनाइन को कई इकाइयों में परिचालन और अन्य नियमित कार्यों के लिए मान्यता दे दी गयी है.
मध्य प्रदेश के टेकनपुर में बीएसएफ प्रशिक्षण अकादमी में कुत्तों के लिए भी एक प्रशिक्षण केंद्र है. नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग 1970 में स्थापित किया गया था. बीएसएफ अधिकारियों ने कहा कि अभी तक बीएसएफ और अन्य पुलिस संगठनों के लिए इस संस्था से 4,443 कुत्तों को प्रशिक्षित किया गया है.
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