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Friday, 22 November, 2024
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भारत दौरे पर आए बांग्लादेशी FM ने कहा- एकतरफा बन रहा है दिल्ली-ढाका व्यापार, संतुलित करने की जरूरत

दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन ने इस पर भी चर्चा की, कि बांग्लादेश PM शेख़ हसीना की आतंकवाद के प्रति शून्य सहनशीलता किस तरह दक्षिण एशिया में स्थिरता लाई है.

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नई दिल्ली: भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार ‘फलफूल’ रहा है लेकिन ये उतना संतुलित नहीं है जितना हो सकता था- ये कहना है बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन का, जिन्होंने सोमवार को अपना तीन-दिवसीय भारत दौरा खत्म किया.

2021 में जहां बांग्लादेश से भारत को 2 बिलियन डॉलर का निर्यात था, वहीं भारत से इस पड़ोसी देश में होने वाला आयात 14 बिलियन डॉलर पहुंच गया था. इसी को देखते हुए ढाका चाहता है कि दिल्ली बांग्लादेश से आने वाले जूट उत्पादों पर, भारत में लगने वाली एंटी-डंपिंग ड्यूटी खत्म कर दे.

मोमिन ने कहा, ‘बांग्लादेश और भारत के बीच व्यापार फलफूल रहा है लेकिन ये व्यापार एकतरफा होता जा रहा है इसलिए हमें इसे संतुलित करने की जरूरत है और हम चाहते हैं कि भारत हमें अधिक लचीलापन दिखाए क्योंकि भारत ने हमारी जूट की वस्तुओं पर कुछ एंटी-डंपिंग (ड्यूटी) लगा दी है’. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें ‘आश्वस्त’ किया गया है कि भारत में एक ‘कमेटी’ इस मामले की ‘जांच’ करेगी.

दिप्रिंट के साथ एक व्यापक इंटरव्यू में मोमिन ने, जो एक पूर्व अर्थशास्त्री और राजनयिक हैं, इस बारे में भी बात की कि बांग्लादेश प्रधानमंत्री शेख हसीना की आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहनशीलता नीति’ किस तरह दक्षिण एशिया में स्थिरता लेकर आई, तीस्ता जल-बंटवारा विवाद क्या है और भारत किस तरह ‘मयांमार पर दबाव’ बनाकर रोहिंग्या लोगों की स्वदेश वापसी करा सकता है.

मोमिन भारत के तीन दिन के दौरे पर थे जहां वो अपने भारतीय समकक्षी विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ भारत-बांग्लादेश संयुक्त सलाहकार आयोग (जेसीसी) में शिरकत करने आए हुए थे. दौरे के दौरान मोमिन ने उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात की.

जेसीसी के बाद विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक साझा बयान में भारतीय पक्ष ने अनुरोध किया था कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाने का बचा हुआ काम पूरा किया जाए जो त्रिपुरा से शुरू होकर बांग्लादेश सेक्टर तक जाता है.

बांग्लादेशी विदेश मंत्री ने कहा, ‘सीमा पर बाड़ लगाने के मुद्दे पर, दोनों पक्षों ने अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करने का फैसला किया है’. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले 50 वर्षों में भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय रिश्ते ‘एक ठोस संबंध’ बन जाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘और बेहतर करने के लिए हमने इस बात की भी सराहना की, कि बांग्लादेश और भारत के बीच ऐतिहासिक रिश्ते हैं. ये एक आधुनिक रिश्ता है. बेशक, हमारे बीच आपसी विश्वास, आदर और भरोसा है’.

पिछले साल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ने बांग्लादेश का दौरा किया था. इस साल, बांग्लादेशी प्रधानमंत्री हसीना के सितंबर शुरू में भारत के पारस्परिक दौरे पर आने की संभावना है.


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एंटी डम्पिंग ड्यूटी हटाने से ‘संतुलन’ वापस आ सकता है

दोनों देशों के बीच रेल, सड़क और हवाई संपर्क के बढ़ने से महामारी के बावजूद भारत-बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार फलफूल रहा है. लेकिन, मोमिन ने जोर देकर कहा कि इस व्यापार का झुकाव भारत के पक्ष में बहुत अधिक है.

बांग्लादेशी जूट उत्पादों पर भारत की एंटी-डम्पिंग ड्यूटी विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रही है. मोमिन ने कहा कि इस शुल्क को हटाया जाना चाहिए क्योंकि बांग्लादेशी निर्यात घरेलू उत्पादकों के लिए खतरा नहीं हैं. उन्होंने ये भी कहा कि निर्यातकों को दिए जाने वाले ‘प्रोत्साहनों’ को सब्सीडीज नहीं समझा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘जब भी हम कुछ निर्यात करते हैं, तो जूट कंपनियों को कुछ प्रोत्साहन देते हैं क्योंकि ये क्षेत्र बहुत अच्छा नहीं कर रहा है. भारत को लगता है कि ये एक सब्सीडी है. अगर एंटी-डम्पिंग ड्यूटी हटा ली जाए तो भी मुझे नहीं लगता कि उससे भारतीय बाजार में कोई बाढ़ आ जाएगी- हमारे पास वो क्षमता बिल्कुल भी नहीं है’.

2017 में इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के दबाव की वजह से भारत ने बांग्लादेश से निर्यात होने वाले जूट उत्पादों पर एंटी डम्पिंग ड्यूटी लगा दी थी जो 19 से 352 डॉलर प्रति टन के बीच थी. बांग्लादेश लंबे समय से मांग करता आ रहा है कि उनके जूट के माल पर लगने वाले शुल्क को हटाया जाए.

भारत सरकार के गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगाने के मुद्दे पर मोमिन ने कहा कि नई दिल्ली ढाका को खाद्यान्न भेजती रही है. पाबंदी लगने के बाद भारत ने बांग्लादेश को एक लाख टन गेहूं भेजा था लेकिन इसी महीने ढाका ने भारत से अतिरिक्त 10 लाख टन निर्यात करने का अनुरोध किया था.

व्यापार पर आगे बात करते हुए मोमिन ने कहा कि भारत और बांग्लादेश सीमा चेकनाकों पर वस्तुओं के लदान और उतराई को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके लिए दोनों पक्षों के ट्रकों तथा कंटेनर्स को जल्दी फेरे लगाने की अनुमति दी जा रही है. उन्होंने आगे कहा कि दोनों देश अब एकीकृत सप्लाई चेन्स का हिस्सा बनने पर जोर दे रहे हैं.

‘आतंकवाद पर शेख हसीना की नीति ने भारत और दक्षिण एशिया का भला किया है’

मोमिन ने दावा किया कि आतंकवाद के लिए बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना की ‘शून्य सहनशीलता नीति’ भारत और पूरे दक्षिण एशिया में ‘स्थिरता’ और ‘विकास’ लाई है.

मोमिन ने कहा, ‘आतंकवाद के लिए पीएम की शून्य सहनशीलता नीति और बांग्लादेश को आतंकी गतिविधियों का केंद्र न बनने देने के उनके फैसले ने इस (दक्षिण एशिया) क्षेत्र में स्थिरता लाने में मदद की है’.

उन्होंने आगे दावा किया कि हाल ही में गुवाहाटी के दौरे पर असम मुख्यमंत्री ने शेख हसीना की आतंकवाह नीति की सराहना की थी.

मोमिन ने कहा, ‘मैं हाल ही में गुवाहाटी में था और असम के मुख्यमंत्री ने मुझसे कहा कि उनके यहां विकार और प्रगति काफी हद तक आतंकवाद के प्रति पीएम शेख हसीना की शून्य सहनशीलता नीति की वजह से है’.


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भारत को रोहिंग्या लोगों की स्वदेश वापसी के लिए म्यांमार पर ‘दबाव’ बनाना चाहिए

रोहिंग्या शर्णार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के लिए बांग्लादेश के भारत से सहायता मांगे के मुद्दे पर मोमिन ने कहा कि ढाका नई दिल्ली से और अधिक अपेक्षा रखता है.

मोमिन ने कहा, ‘ये एक बहुत दुखद कहानी है. बेशक हमने रोहिंग्याओं को बांग्लादेश आने दिया क्योंकि हमें 1971 का अनुभव है जब हमें सताया जा रहा था- ये भारत और भारत के लोग ही थे जिन्होंने हमें आसरा और आवास दिया और आजादी हासिल करने में भी हमारी सहायता की’.

हालांकि, उन्होंने कहा कि रोहिंग्याओं का मामला ‘अलग’ है क्योंकि सताए गए लोगों के पास कोई ठिकाना नहीं था.

उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश ने मानवीय लिहाज़ से अपनी सीमाएं खोल दीं और म्यांमार हमारा पड़ोसी है. वो इन्हें वापस लेने को सहमत हो गए, उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने पर राजी हो गए और इसपर भी राजी हो गए कि उनकी सुरक्षा और सम्मानजनक वापसी के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा’.

लेकिन, मोमिन ने कहा कि म्यांमार ने उन रोहिंग्या शर्णार्थियों की स्वदेश वापसी के लिए कुछ नहीं किया जो अब बांग्लादेश बांग्लादेश में रह रहे हैं और भारत के ठेलने से कुछ काम बन सकता है.

बांग्लादेशी विदेश मंत्री ने कहा, ‘म्यांमार का एक इतिहास है- 70, 80 और 90 के दशकों में उन्होंने हजारों रोहिंग्याओं को बाहर भगा दिया. 1992 में, बातचीत और चर्चा के ज़रिए म्यांमार ने 2,53,000 में से 2,36,000 रोहिंग्याओं की स्वदेश वापसी कराई. इसलिए हमें उम्मीद है कि इस बार भी वो यही करेंगे. इस बार ये संख्या बहुत बड़ी है- 11 लाख- लेकिन वो राज़ी हो गए कि सत्यापन के बाद उन्हें वापस ले लिया जाएगा’.

लेकिन, उन्होंने कहा कि ये प्रक्रिया ‘बहुत सहज नहीं रही है’ इसलिए ‘हमने भारत से मदद मांगी है’ क्योंकि उसके म्यांमार के साथ ‘अच्छे रिश्ते’ हैं.

मोमिन का कहना था कि बांग्लादेश और म्यांमार दोनों का दोस्त होने के नाते अगर भारत ‘उनपर थोड़ा सा दबाव बनाएं’ और ‘इस दिशा में थोड़ा प्रयास करे’ तो इसमें कुछ मदद मिल सकती है.

‘तीस्ता के बारे में पश्चिम बंगाल से बात करेंगे’

हालांकि भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय रिश्ते बढ़ रहे हैं लेकिन अंतर-सीमा नदी जल का बटवारा, खासकर तीस्ता का मुद्दा एक दुखती रग बन गया है.

मोमिन ने कहा, ‘हमने छह नदियों के जल बटवारे के बारे में (भारत के साथ) बात की, तीस्ता के लिए भी की. इसके लिए हम पश्चिम बंगाल सरकार के साथ भी बात करेंगे’.

ढाका चाहता है कि दिसंबर-मार्च की अवधि में उसे तीस्ता का 50 प्रतिशत पानी मिले क्योंकि उस दौरान बांग्लादेश की ओर नदी का बहाव हल्का हो जाता है. भारत सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पूर्ववर्त्ती मनमोहन सिंह दोनों ने ढाका को आश्वस्त किया था कि जो पानी दोनों देशों से होकर गुज़रता है उसका बंटवारा किया जाएगा.

लेकिन ये मुद्दा विवादास्पद बन गया है क्योंकि जल राज्य का विषय है और पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीस्ता के पानी को ढाका के साथ बांटने का लगातार विरोध किया है.

बांग्लादेश भारत पर ये भी दबाव डालता आ रहा है कि दूसरी छह नदियों- मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमती, धरला, दुधकुमार- के पानी के बटवारे पर अंतरिम समझौते की रूपरेखा का जल्द समापन किया जाए.

मोमिन ने कहा कि भीषण बाढ़ के हाथों बांग्लादेश भारत के उत्तरपूर्व के हिस्सों में तबाही को देखते हुए ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

मोमिन ने कहा, ‘हमारे यहां बहुत बाढ़ आती रही है जिसके नतीजे में बांग्लादेश के कई ज़िलों में इन दिनों पानी भरा हुआ है. इसलिए मैंने भारत सरकार को सुझाव दिया, कि अगर हमें मौसम भविष्यवाणी का वास्तविक (बाढ़) डेटा मिल जाए, तो हम पानी को एक व्यवस्थित तरीक़े से डिस्चार्ज कर सकते हैं. फिर हम बांग्लादेश में एक पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करके रोकथाम उपाय कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में हम ज़िंदगियां बचा सकते हैं और नुकसान को संभाल सकते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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