वाशिंगटन: बाइडन प्रशासन ने कहा है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर आगे की कूटनीति पर चर्चा करने के लिए वह ईरान और विश्व की शक्तियों के साथ बैठकर बात करने का इच्छुक है. पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन द्वारा 2015 के परमाणु समझौते से अलग होने के बाद, अब इसे नए सिरे से आकार देने की दिशा में यह पहला बड़ा कदम है.
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया था.
इस समझौते के तहत ईरान ने 2025 तक अपने परमाणु कार्यक्रम को बहुत अधिक सीमित करने पर सहमति जताई थी. ट्रंप का तर्क था कि इससे ईरान के लिए परमाणु हथियारों का रास्ता साफ हो जाएगा.
राष्ट्रपति जो बाइडन और उनके सलाहकारों ने कहा है कि वे इस समझौते में फिर से शामिल हो सकते हैं बशर्ते ईरान समझौते के अनुपालन की बात माने.
विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कूटनीतिक रास्ते पर आगे बढ़ने के लिहाज से चर्चा करने के लिए पी5+1 देशों और ईरान की बैठक में शामिल होने के यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि के निमंत्रण को अमेरिका स्वीकार करेगा.’
पी5+1 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ जर्मनी भी शामिल है.
इन देशों ने ओबामा प्रशासन के दौरान ईरान के साथ समझौता किया था.
विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने समझौते पर दस्तखत करने वाले तीन यूरोपीय देशों (ई3) के अपने समकक्षों के साथ ऑनलाइन बातचीत की थी जिसके बाद ईरान ने इस संबंध में घोषणा की.
अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संवाददाताओं से कहा कि राष्ट्रपति बाइडन ईरान के साथ लंबित मुद्दों को सुलझाने के प्रयासों में अमेरिकी बहुपक्षीय कूटनीतिक भूमिका को बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
अधिकारी ने कहा कि अमेरिका देखना चाहता है कि क्या ऐसी स्थिति आ सकती है जिसमें ईरान फिर से ‘संयुक्त समग्र कार्रवाई योजना’ (जेसीपीओए) का अनुपालन करे और अमेरिका पुन: जेसीपीओए का अनुपालन करे.
जेसीपीओए को ही ईरान परमाणु करार या ईरान समझौते के नाम से जाना जाता है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर यह समझौता 14 जुलाई, 2015 को वियना में ईरान तथा पी5+1 देशों के बीच हुआ था.
अमेरिका और ई3 देशों ने एक संयुक्त बयान में परमाणु अप्रसार व्यवस्था को बरकरार रखने में उनके साझा बुनियादी सुरक्षा हितों को व्यक्त किया जिसमें ईरान कभी कोई परमाणु शस्त्र विकसित नहीं कर सके.
इस संदर्भ में जेसीपीओए का निष्कर्ष बहुपक्षीय कूटनीति की अहम उपलब्धि है.
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