(ली एरिक्सन, पॉल माजरोले, समारा मैकफेड्रान, ग्रिफिथ विश्वविद्यालय; रिचर्ड वॉर्टली, यूसीएल)
दक्षिण पूर्व क्वींसलैंड, 10 जुलाई (द कन्वसेशन) हम लंबे समय से जानते हैं कि शराब और हिंसा के बीच एक संबंध है लेकिन जब बात हत्या की आती है तो आंकड़ों के पीछे की कहानी बेहद जटिल प्रतीत होती है।
हमारा अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि जब हत्या से पहले शराब पी जाती है, तो वास्तव में क्या होता है। यह न केवल पुलिस या अदालती रिकॉर्ड पर आधारित है बल्कि अपराधियों के प्रत्यक्ष अनुभवों पर भी आधारित है।
हमने ऑस्ट्रेलिया भर में 205 पुरुषों और महिलाओं का साक्षात्कार लिया, जिनकी आयु अपराध किए जाने के समय 15 से 65 वर्ष के बीच थी तथा साक्षात्कार के समय उनकी आयु 20 से 71 वर्ष के बीच थी।
लगभग आधे लोगों (43 प्रतिशत) ने कहा कि उन्होंने इस कृत्य को अंजाम देने से ठीक पहले शराब पी थी। हालांकि नशे का स्तर अलग-अलग था, कई लोगों ने बताया कि उस समय वे बहुत ज़्यादा नशे में थे।
एक व्यक्ति से जब पूछा गया तो उसने बताया कि घटना से पहले उसने ‘‘बहुत ज़्यादा’’ शराब पी ली थी। यह अध्ययन शराब पीने के बाद की गई हत्याओं की वास्तविकताओं पर एक परेशान करने वाली झलक पेश करता है।
शराब और हत्या के बारे में हम क्या जानते हैं?
हत्या और शराब के बारे में हमारी ज़्यादातर जानकारी पुलिस रिपोर्ट, फोरेंसिक टॉक्सिकोलॉजी और अदालती कार्यवाही से जुड़ी है। ये उपयोगी तो हैं, लेकिन सीमित हैं। इनमें अक्सर इस बारे में विस्तृत जानकारी का अभाव होता है कि कितनी शराब पी गई, कब और किस पृष्ठभूमि में।
स्व-रिपोर्ट डेटा – अपराधी स्वयं अपनी मनःस्थिति और शराब के सेवन के बारे में क्या कहते हैं, इस तस्वीर को और गहराई प्रदान करता है।
हालांकि इसमें कुछ खामियां हैं लेकिन ऐसे आंकड़े हमें संख्याओं से परे हत्याकांड के मनोवैज्ञानिक और परिस्थितिजन्य पहलू को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं।
अध्ययन में क्या पाया गया
जिन 205 अपराधियों का साक्षात्कार लिया गया उनमें से जिन लोगों ने अपराध से पहले शराब पी थी, उनमें कुछ विशिष्ट विशेषताए थीं।
शराब से जुड़ी हत्याएं अधिकतर रात में होती हैं, सार्वजनिक स्थानों जैसे कि पब या पार्क में घटित होती हैं, इनमें अक्सर बड़े उम्र के अपराधी शामिल होते हैं, और ये हत्याएं आमतौर पर चाकू से की जाती हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये घटनाएं जरूरी नहीं कि लंबे समय से योजनाबद्ध हों।
बल्कि, इनमें आवेगशीलता के कई संकेत होते हैं- अचानक, भावनात्मक रूप से प्रेरित और अक्सर प्रतिक्रिया स्वरूप होने वाली हिंसा। यहां शराब का प्रभाव एक भूमिका निभा सकता है, क्योंकि हमारे अध्ययन में पाया गया कि शराब पीने वालों और न पीने वालों के आत्म-नियंत्रण के स्तर समान थे।
आत्म-नियंत्रण वह क्षमता है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आवेगों, भावनाओं और क्रियाओं को नियंत्रित करता है ताकि दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके, और इसे आमतौर पर अपराध से बचाव के रूप में देखा जाता है।
यह दर्शाता है कि शराब लोगों के व्यवहार पर हावी हो सकती है।
शराब से जुड़ी हत्याओं का उम्र, लिंग या आपराधिक इतिहास नहीं था। बल्कि यह था कि क्या अपराधी को लगातार शराब की लत थी।
शराब की लत से निपटना सिर्फ़ स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है – यह एक सार्वजनिक सुरक्षा का मुद्दा भी है।
कुछ मामलों में शराब ने हिंसा को जन्म नहीं दिया, बल्कि उसे अवसर प्रदान किया।
हम क्या कर सकते हैं? शराब से जुड़ी हत्याओं के चरित्र को समझना अधिक प्रभावी अपराध रोकथाम रणनीतियों को विकसित करने में मदद कर सकता है।
कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
रात के समय और सार्वजनिक स्थानों पर सतर्कता: चूंकि ये हत्याएं अधिकतर रात में सार्वजनिक स्थानों पर होती हैं, इसलिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सतर्कता की भूमिका हो सकती है—विशेष रूप से उन जगहों के आसपास जहां शराब की आपूर्ति होती है, जैसे बार, क्लब आदि।
भविष्य में क्या समाधान
यह शोध आसान समाधान तो नहीं सुझाता, लेकिन एक महत्वपूर्ण सच्चाई को पुष्ट करता है: हत्या को रोकना सिर्फ़ हिंसक लोगों को पकड़ने के बारे में नहीं है, बल्कि उन परिस्थितियों को समझने के बारे में है जो हिंसा की संभावना पैदा करती है।
जिन लोगों ने इतना बड़ा अपराध किया है उनकी बात सुनकर, हम शायद यह सीख पाएं कि इसे शुरू से ही कैसे रोका जा सकता है।
(द कन्वरसेशन) शोभना माधव
माधव
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