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Friday, 8 November, 2024
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लड़ाई के कारण बिगड़ते हालात के बीच अफगान सरकार तालिबान को कुचलने के लिए IAF की मदद चाहती है

काबुल को जहां यह लगता है कि नई दिल्ली की तरफ से केवल हवाई ताकत के जरिये ही मदद की जा सकती है, वहीं भारत के अफगानिस्तान की जंग में शामिल होने की संभावना नहीं है क्योंकि वह ऐसे ‘आतंकवाद-विरोधी मैकेनिज्म’ में भरोसा नहीं करता है.

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काबुल: अफगानिस्तान में अब जबकि पिछले कुछ दिनों में सरकारी बलों और तालिबान विद्रोहियों के बीच जारी लड़ाई और भी ज्यादा तेज हो गई है तब अशरफ गनी सरकार ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए भारत से ‘सशक्त हवाई सहयोग’ मांगा है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

अपना नाम न छापने की शर्त पर अफगानिस्तान सरकार के एक शीर्ष सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि अफगान सरकार की सबसे बड़ी चिंता यह है कि 31 अगस्त तक एक बार अमेरिकी सेना की पूरी तरह वापसी हो गई तो तालिबान ‘निश्चित तौर पर’ अपनी जंग को और तेज कर देगा और ऐसे में काबुल की तरफ से इस बात पर खासा जोर दिया जा रहा है कि नई दिल्ली से वायु सेना की मदद मिल जाए.

अफगानिस्तान सरकार चाहती है कि भारतीय वायु सेना (आईएएफ) देश में आए और अफगान वायु सेना की मदद करे. हालांकि, अमेरिकी सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के प्रमुख जनरल केनेथ मैकेंजी ने स्पष्ट किया कि अमेरिका 31 अगस्त के तुरंत बाद मदद करेगा.

यद्यपि वायुसेना की मदद का अनुरोध नया नहीं है, लेकिन गनी सरकार इस बात से ‘बेहद चिंतित’ है कि तालिबान अब देशभर में अपनी हिंसक कार्रवाइयां तेज कर देगा क्योंकि यह काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है. अभी यह मजार-ए-शरीफ तक पहुंच गया है, जहां सोमवार को लड़ाई तेज हो गई.

माना जाता है कि हाल ही में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमार और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बीच एक फोन कॉल के दौरान इस मामले पर चर्चा हुई थी.

हालांकि, ऐसा लगता है कि नई दिल्ली ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसकी तरफ से ‘इतना बड़ा कदम’ उठाया जाना मुमकिन नहीं होगा क्योंकि भारत कभी भी इस प्रकार के ‘आतंकवाद विरोधी मैकेनिज्म’ में विश्वास नहीं करता रहा है.

दोहा में ट्रोइका प्लस बैठक

सबकी निगाहें अब एक बार फिर दोहा पर टिकी हैं क्योंकि कतर की राजधानी ‘ट्रोइका प्लस’ के तहत शांति प्रक्रिया को लेकर एक और बैठक की मेजबानी करने को तैयार है जो कि अफगान सरकार के प्रतिनिधियों और तालिबान नेताओं के बीच इंट्रा-अफगान डॉयलाग का हिस्सा है.

ट्रोइका प्लस बैठक, जिसे एक्टेंडेट ट्रोइका के तौर पर भी जाना जाता है, को मॉस्को की तरफ से बुलाया गया है और यह अमेरिका, रूस, पाकिस्तान और चीन के बीच होगी.

सूत्रों के मुताबिक, मॉस्को की मूल योजना भारत के साथ-साथ उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान समेत सभी क्षेत्रीय हितधारकों को बुलाने की थी. हालांकि, ऐसा हो नहीं पाया और अब ऐसा लगता है कि दोहा में मंगलवार से शुरू होने जा रही बैठक में कुछ ‘कड़े फैसले’ लेने होंगे क्योंकि तालिबान अपनी आक्रामकता को तेजी से बढ़ाता जा रहा है.

विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया के डिप्टी डायरेक्टर और सीनियर एसोसिएट माइकल कुगेलमैन कहते हैं, ‘हवाई क्षमता अफगानिस्तान में जारी संघर्ष में अहम भूमिका निभाती है, और अमेरिकी वायु शक्ति—जो लंबे समय तक यहां के हालात बदलने में सक्रिय रही है—को जल्द ही जंग के मैदान से हटा लिया जाएगा. इसलिए इसमें कोई अचरज की काबुल इस तरह के समर्थन के लिए भारत पर निर्भर करेगा, जो क्षेत्र में उसके सबसे करीबी मित्रों में से एक है. लेकिन तालिबान की बढ़ती ताकत को लेकर अपनी गंभीर चिंताओं के बावजूद नई दिल्ली के लिए ऐसी कोई सहायता करना काफी महंगा सौदा है.’


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उन्होंने कहा, ‘भारत कभी ऐसा नहीं चाहेगा कि उसे अफगानिस्तान की जंग में घसीटा जाए, और इसकी वजह से पाकिस्तान के साथ उसके पहले से ही तनावपूर्ण रिश्ते और भी ज्यादा खराब हों. अफगानिस्तान में भारतीय हवाई ताकत का इस्तेमाल एक गेमचेंजर और क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ाने वाला साबित होगा जिससे नई दिल्ली बचना ही पसंद करेगी.’

ट्रोइका प्लस बैठक, जो ऐसे समय हो रही है जब अफगानिस्तान में जबर्दस्त खूनखराबा जारी है, के संदर्भ में कुगेलमैन ने कहा कि भले ही इन संवादों से अपेक्षित नतीजे नहीं मिलते हो लेकिन क्षेत्रीय शक्तियों को आपस में बात करने और समाधान खोजने की दिशा में बढ़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘एकदम ठप पड़ चुकी शांति प्रक्रिया को फिर शुरू करने के लिए ताजा क्षेत्रीय कूटनीतिक प्रयासों से पल्ला झाड़ लेना तो आसान है लेकिन ये बैठकें काफी अहमियत रखती हैं. और अब अमेरिकी वापसी के समय तो ये और भी अधिक मायने रखती हैं. अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों को तो पीछे हटने की सुविधा हासिल हैं और उन्हें पता है कि युद्ध के कारण आगे आने वाले नतीजों से उन पर कोई सीधा असर नहीं पड़ेगा. क्षेत्रीय ताकतों के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘क्षेत्रीय समाधान आवश्यक हैं, भले ही वे दिखाई न दें. यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि एक बार फिर अमेरिका अफगानिस्तान के बारे में साझा चिंताओं पर सहयोग करने के लिए रूसी और चीनी प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपने तनाव को घटा रहा है. यह निराशाजनक स्थिति के बीच उम्मीद की एक किरण की तरह है.’

ट्रोइका प्लस की आखिरी बैठक इस साल अप्रैल में हुई थी जिसमें अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया गया था.

इस बीच, भारत की अध्यक्षता में रविवार को अफगानिस्तान मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा गया कि ‘तालिबान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बात सुननी चाहिए.’

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