कोलंबो, 13 मई (भाषा) रानिल विक्रमसिंघे ने शुक्रवार को छठी बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाल लिया हालांकि विपक्षी दलों एसजेपी और जेवीपी ने घोषणा की कि वे नए प्रधानमंत्री को कोई समर्थन नहीं देंगे क्योंकि उनकी नियुक्ति के दौरान लोगों की आवाज का सम्मान नहीं किया गया।
यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता विक्रमसिंघे (73) ने बृहस्पतिवार को श्रीलंका के 26वें प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली जब देश में सोमवार से कोई सरकार नहीं थी। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने देश में हिंसा भड़कने के बाद इस्तीफा दे दिया था।
विक्रमसिंघे इससे पहले पांच बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। तत्कालीन राष्ट्रपति आर. प्रेमदासा की हत्या के बाद उन्हें पहली बार 1993 में प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था।
समाचार फर्स्ट वेबसाइट की एक खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद विक्रमसिंघे ने कोलंबो में वालुकरमाया राजा महा विहार का दौरा किया और इस दौरान उन्होंने कहा कि गोटबाया के खिलाफ संघर्ष जारी रहना चाहिए और वह संघर्ष में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
खबर में उनके हवाले से कहा गया है, ‘पुलिस उन्हें कुछ नहीं करेगी, और संघर्ष जारी रहना चाहिए।’
अनुभवी रानिलसिंघे को राजपक्षे परिवार का करीबी माना जाता है। लेकिन उन्हें अभी विपक्ष या आम जनता का विशेष समर्थन नहीं है। यह देखा जाना है कि क्या वह 225 सदस्यीय संसद में अपना बहुमत साबित कर पाते हैं।
इस बीच, विपक्षी दल समागी जन बालवेगया (एसजेबी) के महासचिव आर. एम. बंडारा ने शुक्रवार को कहा कि वे विक्रमसिंघे को कोई समर्थन नहीं देंगे।
एसजेबी के पास 225 सदस्यीय संसद में 54 सीट हैं और शुक्रवार को पार्टी के पदाधिकारी नेता राष्ट्रपति के खिलाफ प्रस्ताव और वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करने के लिए प्रतिपक्ष के कार्यालय में बैठक करेंगे।
जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) और तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) ने भी उनकी नियुक्ति का विरोध करते हुए कहा कि यह असंवैधानिक है। 225 सदस्यीय संसद में जेवीपी के पास 3 जबकि टीएनए के पास 10 सीट हैं।
जेवीपी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के फैसले का मजाक उड़ाते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति की कोई वैधता नहीं है और इसका कोई लोकतांत्रिक मूल्य नहीं है।
उन्होंने कहा, “विक्रमसिंघे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने प्रधान मंत्री का पद संभाला, सरकारें बनाईं, और इसके बावजूद पिछले आम चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सके। उनके पास, संसद में प्रवेश करने के लिए आवश्यक वोट भी नहीं थे। अगर चुनाव का इस्तेमाल लोगों की सहमति को मापने के लिए किया जाता है, तो चुनावों ने स्पष्ट किया है कि उनके पास कोई जनादेश नहीं है और इसलिए लोगों ने उन्हें खारिज कर दिया था।’’
भाषा अविनाश माधव
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