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Friday, 5 September, 2025
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‘हम खुद के सहारे’ — बाढ़ से दिल्ली के इलाके प्रभावित, नुकसान और हताशा का सिलसिला जारी

12,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं, और कुछ इलाकों में तो शरणार्थी शिविर भी बाढ़ में डूब गए हैं. पंप लगातार पानी निकाल रहे हैं, डॉक्टर पहुंचे हुए हैं, खाना बांटा जा रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.

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नई दिल्ली: मोरी गेट पर 33 साल की नीतू सरवोदय विद्यालय में बने एक राहत कैंप में मेडिकल टीम के सामने खड़ी थीं. उन्होंने तेज़ सिरदर्द और हाथों में सुन्नपन की शिकायत की. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मुझे डर लग रहा है. मैं कुछ खा नहीं पा रही हूं. ऐसा लगता है जैसे बिल्कुल भी ताक़त नहीं बची.”

बिहार की रहने वाली लेकिन लगभग दो दशक से दिल्ली में रह रही नीतू अब दो दिनों में दूसरी बार बेघर हो चुकी हैं. 2 सितंबर को उनका घर पूरी तरह डूबने के बाद उन्हें और उनके परिवार को यमुना बाज़ार में एक अस्थायी टेंट कैंप में ले जाया गया. 3 सितंबर की रात तक वह टेंट भी पानी में डूब गया और उन्हें फिर से शिफ्ट होना पड़ा.

“जब पानी आता है तो वह सिर्फ़ एक समस्या नहीं लाता,” उन्होंने पिछली बड़ी बाढ़ की मुश्किलें याद करते हुए कहा. “सारा सामान बिखर जाता है, फिर मिट्टी साफ करनी पड़ती है, घर साफ करना पड़ता है, सामान फिर से खरीदना पड़ता है. पिछली बार हमारा लगभग 2 लाख रुपये का नुकसान हुआ था. टीवी, फ्रिज, कूलर, होम थिएटर, सब कुछ चला गया. मैंने कभी ज़िंदगी में इतना पानी नहीं देखा था.”

दिल्ली के सर्वोदय विद्यालय के राहत शिविर में 33 वर्षीय नीतू | मृणालिनी ध्यानी | दिप्रिंट

दिल्ली में यमुना का पानी 3 सितंबर रात 10 बजे 207.43 मीटर तक पहुँच गया. यह 1963 में रिकॉर्ड शुरू होने के बाद तीसरा सबसे ऊंचा स्तर है. 2 सितंबर को यह 206 मीटर के ख़तरे के निशान को पार कर गया था.

केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक़, गुरुवार दोपहर 3 बजे यमुना का स्तर 207.45 मीटर था. यह हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से 1,32,295 क्यूसेक, ओखला बैराज से 2,44,478 क्यूसेक और वज़ीराबाद बैराज से 1,93,090 क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद हुआ.

यमुना बाज़ार, गीता कॉलोनी, मजनूं का टीला, कश्मीरी गेट, गढ़ी मंडू और मयूर विहार समेत कई इलाकों में पानी भर गया, जिससे लगभग 12,000 लोग बेघर हो गए.

स्थानीय लोगों के लिए यह नज़ारे जुलाई 2023 की डरावनी यादें ताज़ा कर रहे हैं, जब नदी ने पूरे मोहल्ले डुबो दिए थे. “उस समय तो एक ही दिन में पानी भर गया था. कुछ भी बाहर नहीं निकाला जा सका. हम छह-सात दिन भूखे और परेशान रहे,” नीतू ने याद किया.

बार-बार बेघर होना

3 सितंबर को दिप्रिंट ने देखा कि यमुना बाज़ार के पूरे रिहायशी इलाकों की ज़मीनी मंज़िलें पानी में डूबी हुई थीं. कुछ लोग ज़रूरी सामान निकालने के लिए तैरकर बाहर आए, तो कुछ लोग बार-बार निकासी की अपील के बावजूद दूसरी मंज़िल पर ही रुके रहे.

लेकिन शाम तक तटबंधों पर बनाए गए अस्थायी कैंप भी नहीं बचे. एक आरडब्ल्यूए सदस्य के मुताबिक, पास के श्मशान की दीवार गिरने से पानी अंदर आ गया और सैकड़ों लोगों को फिर से शिफ्ट होना पड़ा.

निगमबोध घाट पर अपने घर के बाहर एक व्यक्ति. भूतल पूरी तरह से जलमग्न है | मृणालिनी ध्यानी | दिप्रिंट

ज़्यादातर लोगों को एनडीआरएफ, सिविल डिफेंस, डीडीएमए और दिल्ली पुलिस की टीमों ने बचाया.

“लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाने के लिए कई बसें और पुलिस वैन लगाई गई थीं,” एक डीडीएमए अधिकारी ने कहा. गुरुवार दोपहर तक 225 बेघर लोगों को मोरी गेट स्थित सरवोदय विद्यालय में शिफ्ट किया गया था, अधिकारी ने बताया.

स्कूल के ऑडिटोरियम को शेल्टर बना दिया गया है, जबकि बाहर और भी अस्थायी टेंट लगाए गए हैं. खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं, लेकिन लोगों में घबराहट बनी हुई है.

“मुझे कुछ खाया नहीं जा रहा, मैं बहुत टेंशन में हूं,” नीतू ने कहा. “मेरे बच्चे का पैर जल गया था और अब पानी की वजह से चोट और बढ़ गई है. 15 दिन हो गए—पानी आता-जाता रहता है. ऊपर से बारिश हो रही थी और नीचे से बाढ़.”

एक और निवासी मंजी देवी स्कूल में गद्दे पर बैठी थीं. उन्होंने निराश होकर कहा, “नुकसान तो है, लेकिन हम क्या कर सकते हैं. हम यमुना के पास रहते हैं, कुछ नतीजे तो झेलने ही पड़ेंगे.”

कुछ लोग सरकारी कैंपों से दूर ही रहे. एक परिवार जिसने अपना कुछ सामान—एक गाड़ी, एक खाट—बचाया था, यमुना बाज़ार अंडरपास के ऊपर बने फुटपाथ पर चला गया, तो कुछ लोग लाल किले के पास के पार्कों में चले गए.

“हमने बसों का इंतज़ार नहीं किया. जैसे ही पानी घुटनों तक आया, मैंने सामान बांधा और निकल पड़ी,” 42 साल की रेखी ने कहा, जो अपने पति और तीन बच्चों के साथ यमुना बाज़ार में रहती हैं. “हम स्कूल में कितना सामान ले जा सकते थे? बच्चे भी हैं. हमने कुछ सामान घर की छत पर छोड़ दिया, जो लगभग डूब चुकी थी. लेकिन चूंकि वह टिन की छत है, ज़्यादा बोझ नहीं डाल सकते थे. तो कुछ चीज़ें साथ लाए, कुछ बैटरी रिक्शे से ले आए और बाकी हाईवे से पैदल लेकर आए.”

उनके लिए अब सबसे बड़ी चिंता बीमारियों की है. “इस हालात में मुझे मच्छरों से ज़्यादा डर लग रहा है. मेरे बच्चे हैं. हमें 2023 की बाढ़ के बाद वादा किया गया मुआवज़ा भी नहीं मिला. हमें सरकार पर भरोसा नहीं है, हमें पता है कि हमें खुद ही संभालना होगा,” उन्होंने कहा.

पास ही 46 साल के हेमंता लाल किले के पास एक पार्क में गाड़ी पर बैठे थे. उन्होंने भी निराश होकर वही कहा. “उस वक्त बस यही ज़रूरी था कि जान बच जाए. जान बच जाएगी तो वापस कमा लेंगे और खरीद लेंगे.”

हेमंता अपने घर में बाढ़ आने के बाद लाल किले के पास एक पार्क में अपनी गाड़ी पर सारा सामान लेकर बैठी हैं | मृणालिनी ध्यानी | दिप्रिंट

सरकार क्या कर रही है

तबाही के बावजूद कई निवासियों ने माना कि हालात और भी खराब हो सकते थे. उन्होंने इसका श्रेय 2023 की बाढ़ के बाद मजबूत किए गए ऊंचे तटबंधों को दिया, जिनकी वजह से और बड़ी आपदा टली.

13 जुलाई 2023 को यमुना ने अपना पुराना रिकॉर्ड 207.49 मीटर तोड़ दिया था और 208.66 मीटर तक पहुंच गई थी—इतना ऊंचा पानी कभी दर्ज नहीं हुआ था. लाल किले की दीवारें तक डूब गई थीं. मठ मार्केट, कश्मीरी गेट, सिविल लाइंस और वज़ीराबाद से मजनूं का टीला तक के निचले इलाकों से 25,000 से ज़्यादा लोगों को निकालना पड़ा था. 2,700 से अधिक टेंटों में लाखों लोगों को राहत कैंपों में रखा गया था.

“वह साल हमारी कल्पना से भी बदतर था,” 45 साल की हीरा देवी ने कहा, याद करते हुए कि कैसे उनका परिवार रेलवे क्रॉसिंग के पास सोया था क्योंकि शेल्टर भी डूब गए थे. “हमारे पास खाना-पानी कुछ नहीं था. कम से कम इस बार सरकार ने खाने का इंतज़ाम किया है.”

यमुना बाज़ार में एक अस्थायी छतरी विस्थापितों को आश्रय प्रदान करती है | मृणालिनी ध्यानी | दिप्रिंट

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने राहत कैंपों का दौरा किया और निवासियों को भरोसा दिलाया. “दिल्ली सरकार और सभी विभाग पूरी तरह अलर्ट हैं. हालात की पूरे दिन निगरानी की जा रही है,” उन्होंने एक्स पर पोस्ट में कहा. गुप्ता ने बताया कि पिछले छह महीनों में यमुना और नालों की बड़े पैमाने पर सफाई से पानी रुका नहीं. “सभी गेट खुले हैं और पानी बिना रुके उसी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, जितनी तेजी से आ रहा है.”

बाढ़ग्रस्त इलाकों से लोगों को सुरक्षित निकालने के अलावा पानी का स्तर घटाने के लिए भी कोशिशें जारी हैं. अतिरिक्त पानी निकालने और नाली की सफाई तेज़ करने के लिए बड़े पंप लगाए जा रहे हैं. जब दिप्रिंट ने दौरा किया, तो यमुना बाज़ार में दो-तीन बड़े पंप चल रहे थे.

पानी के दोबारा अंदर आने से रोकने के लिए, खासकर उल्टी धाराओं से, अहम नालों और निचले हिस्सों के चारों ओर रेत की बोरियां लगाई गई हैं.

दिल्ली के निगमबोध घाट के पास बाढ़ में डूबे अपने घर से गाड़ी बाहर खींचता एक व्यक्ति | मृणालिनी ध्यानी | दिप्रिंट

एक डॉक्टरों की टीम को यमुना बाज़ार, गीता कॉलोनी, परशुराम एन्क्लेव, प्रधान एन्क्लेव और मजनूं का टीला जैसे बाढ़ प्रभावित इलाकों में तैनात किया गया है ताकि ज़रूरी दवाएं—जैसे जिंक टैबलेट, पैरासिटामोल, डब्ल्यूएचओ की सिफारिश वाली ओआरएस और आई ड्रॉप्स—पर्याप्त मात्रा में दी जा सकें.

दिल्ली स्वास्थ्य विभाग की एक सलाह में कहा गया है, “सभी दवाएं और ज़रूरी सामान, जैसे बीपी मॉनिटरिंग मशीन और स्टेथोस्कोप, संबंधित मेडिकल ऑफिसर अपने डिस्पेंसरी से या ज़रूरत के हिसाब से मंगवाएंगे.”

अस्थायी घर डूबे

यमुना बाजार से कुछ किलोमीटर दूर, गीता कॉलोनी में जो परिवार पहले फ्लाईओवर के नीचे रहते थे, अब फ्लाईओवर पर आ गए हैं. यहां दोनों तरफ एक दर्जन से ज्यादा अस्थायी तंबू लगे हैं. नीचे की झुग्गियां पूरी तरह डूब गई हैं. महिलाएं बाढ़ के पानी में कपड़े धो रही हैं. बच्चे उसमें कूद-फांद कर रहे हैं, जैसे यह स्विमिंग पूल हो.

लेकिन 48 साल की जमीला खातून के लिए यह नजारा दुखद है. 13 साल की उम्र से दिल्ली में रह रही जमीला ने कहा, “2023 के बाद हमें अब हैरानी नहीं होती. हमारे बच्चे कई दिनों से स्कूल नहीं गए हैं. हमारा ज्यादातर सामान फिर से खो गया है. सरकार का दिया खाना पूरे परिवार के लिए काफी नहीं है.”

पति और बेटे को पहले ही खो चुकीं जमीला ने कड़वाहट के साथ कहा, “प्रधानमंत्री कहते हैं—जहां झुग्गी, वहां घर. क्या यही घर है जिसका मतलब था? उन्हें पहले से बेहतर तैयारी करनी चाहिए थी.”

उनके तंबू से थोड़ी दूर, दो बुजुर्ग सड़क पार खड़े टैंकर की ओर इशारा करते हैं. उनमें से एक बोला, “देखो उस टैंकर को, सुबह से खड़ा है, लेकिन पानी नहीं है.” दूसरा बोला, “यही मुश्किल है, और आने वाले दिनों में यह और खराब होगी.”

जल्दी में घर छोड़ने वाले लोग अब भी अपना छोड़ा हुआ सामान खोज रहे हैं. गुरुवार को 28 वर्षीय राकेश तैरकर अपने आधे डूबे घर तक पहुंचा. न फर्नीचर के लिए और न राशन के लिए, बल्कि अपनी बेटी के स्कूल के जूतों के लिए.

“हमें कल सब कुछ बाहर निकालने का समय नहीं मिला,” वह भीगे कपड़ों में सूखी जमीन पर आते हुए बोला. “मेरी बेटी को उसके जूते चाहिए. वह पहले ही स्कूल मिस कर चुकी है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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