scorecardresearch
Sunday, 26 January, 2025
होमखेलभारतीय हॉकी को मैंने जितना दिया, देश ने मुझे उससे ज्यादा लौटाया है : पीआर श्रीजेश

भारतीय हॉकी को मैंने जितना दिया, देश ने मुझे उससे ज्यादा लौटाया है : पीआर श्रीजेश

श्रीजेश ने कहा कि टीम खेलों में इस तरह से अलग पहचान बना पाना और प्रतिष्ठित पुरस्कार पाना आसान नहीं होता, लेकिन उनके सफर से उन्होंने यही सीखा है कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है.

Text Size:

नई दिल्ली: बोर्ड के इम्तिहान में ग्रेस अंक पाने के लिए हॉकी स्टिक थामने से लेकर मेजर ध्यानचंद के बाद पद्मभूषण पुरस्कार पाने वाले दूसरे हॉकी खिलाड़ी बनने तक पी आर श्रीजेश ने लंबा सफर तय किया है और अब उन्हें लगता है कि पिछले 20 साल में भारतीय हॉकी के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया, उससे कहीं ज्यादा देश ने उन्हें लौटाया है .

भारत के महानतम गोलकीपरों में शुमार श्रीजेश को पता ही नहीं था कि मेजर ध्यानचंद (1956) के बाद पद्मभूषण पुरस्कार पाने वाले वह दूसरे हॉकी खिलाड़ी है और इस उपलब्धि ने उन्हें भावुक कर दिया.

श्रीजेश ने पुरस्कार की घोषणा होने के बाद भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘मुझे सुबह खेल मंत्रालय से फोन आया था, लेकिन शाम तक आधिकारिक घोषणा होने का इंतज़ार था. इतने समय सब कुछ फ्लैशबैक की तरह दिमाग में चल रहा था. मैं राउरकेला में हॉकी इंडिया लीग का मैच देख रहा था जब पुरस्कारों की घोषणा हुई .’’

पिछले साल पेरिस ओलंपिक में लगातार दूसरा कांस्य जीतने के बाद खेल से विदा लेने वाले 36 वर्ष के इस महान पूर्व खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मैने पहला कॉल केरल में माता पिता और पत्नी को किया जिनके बिना यह सफर संभव नहीं था. इसके बाद हरेंद्र सर (सिंह ) को फोन किया जिनके मार्गदर्शन में मैने भारत की जूनियर टीम में पदार्पण किया था .’’

श्रीजेश ने कहा ,‘‘ कैरियर से विदा लेने के बाद अब यह सम्मान मिलने से मुझे महसूस हो रहा है कि पिछले 20 साल में भारतीय हॉकी के लिए जो कुछ मैंने किया है, देश उसके लिये मुझे सम्मानित कर रहा है. मैं देश को धन्यवाद बोलना चाहता हूं. जितना मैंने दिया, देश ने मुझे उससे ज्यादा लौटाया है .’’

यह पूछने पर कि ध्यानचंद के बाद यह सम्मान पाने वाले दूसरे हॉकी खिलाड़ी बनकर कैसा लग रहा है, उन्होंने कहा कि वह इस बात से अनभिज्ञ थे, लेकिन बाद में मीडिया के जरिये ही पता चला तो यकीन नहीं हुआ.

भारत की अंडर 21 पुरुष टीम के कोच बने श्रीजेश ने कहा, ‘‘मुझे पता नहीं था कि मैं ध्यानचंद जी के बाद यह पुरस्कार पाने वाला दूसरा हॉकी खिलाड़ी हूं. सपने जैसा लग रहा है. भारत का हॉकी में इतना सुनहरा इतिहास रहा है और हमने इतने महान खिलाड़ी विश्व हॉकी को दिए हैं. ऐसे में ध्यानचंद जी के बाद मुझे यह पुरस्कार मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. मैं खुद को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं .’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस साल हरमनप्रीत सिंह को खेलरत्न मिला और मुझे पद्म पुरस्कार, यह हॉकी के लिए बहुत बड़ा सम्मान है .’’

श्रीजेश ने कहा कि टीम खेलों में इस तरह से अलग पहचान बना पाना और प्रतिष्ठित पुरस्कार पाना आसान नहीं होता, लेकिन उनके सफर से उन्होंने यही सीखा है कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है.

भारत के लिये 336 मैच खेल चुके इस दिग्गज ने कहा, ‘‘मैं बचपन से खेलता आ रहा हूं और एक आम धारणा होती है कि अच्छा खेलने पर अर्जुन पुरस्कार मिलता है और कैरियर में शिखर पर पहुंचने पर खेलरत्न मिल सकता है. मैं टीम खेलों की बात कर रहा हूं क्योंकि व्यक्तिगत वर्ग में तो अभिनव बिंद्रा या पी वी सिंधू ने काफी कम उम्र में खेलरत्न पाया लेकिन टीम खेल में 18 खिलाड़ियों को तो नहीं मिल सकता ना.’’

तिरूवनंतपुरम के जीवी राजा स्पोटर्स स्कूल में 12 वर्ष की उम्र में पहली बार हॉकी खेलने वाले श्रीजेश ने कहा, ‘‘मैंने 2004 में जूनियर खिलाड़ी के तौर पर पदार्पण किया और 2024 में पेरिस ओलंपिक में कांस्य जीतने तक खेला. टोक्यो और पेरिस ओलंपिक में कांस्य ओलंपिक में हारकर भी आए, एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेल में पदक जीते. इसके पीछे काफी बलिदान भी दिए मसलन कम उम्र से घर परिवार से दूर रहा, लेकिन अब लग रहा है कि वह सभी बलिदान व्यर्थ नहीं गए .

मैदान पर हमेशा ऊर्जा का संचार करने वाले इस खिलाड़ी ने कहा, ‘‘अपने सुनहरे सफर में मैने यही सीखा कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है. अगर आपके भीतर इच्छाशक्ति है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं. सिर्फ कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है और यही सही तरीका भी है .’’

भारत की दीवार कहे जाने वाले श्रीजेश अब कोच के रूप में नए अवतार में हैं और महान खिलाड़ी वाली छवि को वह मैदान पर नहीं ले जाते .

यह पूछने पर कि क्या पैड पहनकर गोलपोस्ट के सामने खड़े होने या जीतने पर कभी उस पर चढ जाने का मन करता है, जूनियर एशिया कप 2024 विजेता कोच ने कहा, ‘‘हैरानी की बात है कि मैं कुछ भी मिस नहीं कर रहा हूं. शायद इसलिए भी क्योंकि खेल से जुड़ा हुआ हूं. जितना खेलना था, उतना खेल चुका है और अब कोचिंग में शुरुआती कदम रख रहा हूं और इसमें भी सर्वश्रेष्ठ करना चाहता हूं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं मैदान पर ही हूं, लेकिन गोलपोस्ट के सामने नहीं, साइड में हूं. अभी भी मैदान पर चिल्ला ही रहा हूं. मुझे अभी तक लगा नहीं कि पैड पहनकर गोलपोस्ट के सामने खड़ा हो जाऊं या कभी गोलपोस्ट पर चढ जाऊं. अगर हॉकी को पूरी तरह से छोड़ दिया होता तो शायद लगता .’’

श्रीजेश ने आगे कहा, ‘‘कोच के रूप में लीजैंड खिलाड़ी वाला रूप भूल जाता हूं. मैं यही सोचता हूं कि कोचिंग में नया हूं और अभी बहुत कुछ सीखना है. मैं परफेक्शन चाहता हूं, लेकिन फिर खुद से कहता हूं कि मैं कोच हूं, खिलाड़ी नहीं और खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार लाना मेरा काम है. मैं खिलाड़ी श्रीजेश को घर पर छोड़कर कोच श्रीजेश बनकर मैदान पर जाता हूं.’’

श्रीजेश ने कहा कि भारतीय हॉकी खिलाड़ियों को पहचान और सम्मान मिल रहा है, लेकिन एक खिलाड़ी होने के नाते उन्हें लगता है कि मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न मिलना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘‘हॉकी खिलाड़ियों को सम्मान मिल रहा है. हरमनप्रीत को खेल रत्न, वंदना कटारिया , रानी रामपाल या धनराज भाई को पद्मश्री मिला, लेकिन जब ध्यानचंद जी की बात आती है तो एक हॉकी खिलाड़ी होने के नाते मुझे लगता है कि उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए. सबसे पहले उन्होंने अपनी हॉकी की वजह से भारत को दुनिया में पहचान दिलाई थी.’’

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments