नयी दिल्ली, 11 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआई) के संचालन की ‘खेदजनक स्थिति’ पर नाराजगी व्यक्त करते हुए शुक्रवार को प्रशासक की नियुक्ति का आदेश दिया जो पदाधिकारियों के बजाय प्रबंधन का कार्य संभालेगा।
अदालत ने इसके साथ ही कहा कि खेल संस्था से उसका विश्वास उठ गया है।
राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता और खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित मनिका बत्रा की याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि इस खिलाड़ी द्वारा लगाये गये मैच फिक्सिंग के आरोपों की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट से पता चलता है कि टीटीएफआई ‘अपने अधिकारियों के हितों का बचाव करता है’ और ‘खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के बजाय, टीटीएफआई उन्हें अपनी शर्तों पर चलाना चाहता है।’
न्यायाधीश ने कहा कि यह देश अपने खिलाड़ियों पर गर्व करता है और जो लोग यह नहीं जानते हैं कि खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है उन्हें ‘बाहर होना चाहिए।’
प्रशासक का नाम उनकी नियुक्ति से संबंधित अन्य प्रासंगिक विवरणों के साथ अदालत के आदेश में दिया जाएगा।
बत्रा को पिछले साल एशियाई टेबल टेनिस चैंपियनशिप के लिये भारतीय टीम में नहीं चुना गया था। उन्होंने राष्ट्रीय कोच सौम्यदीप रॉय पर अपनी एक निजी प्रशिक्षु के हाथों ओलंपिक क्वालीफायर मैच गंवाने के लिये दबाव बनाने का आरोप लगाया था।
अदालत ने रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर टिप्पणी की कि टीटीएफआई का आचरण ‘प्रथम दृष्टया दोषपूर्ण नजर आता है’ और हितों के स्पष्ट टकराव के बावजूद राष्ट्रीय कोच की नियुक्ति की गयी थी।
न्यायमूर्ति पल्ली ने कहा, ‘‘जांच होनी चाहिए। आप हितों के टकराव में कोच की नियुक्ति कर रहे हैं। आपके कोच एक निजी अकादमी चला रहे हैं। यह क्या हो रहा है? आपके पास एक राष्ट्रीय कोच है जो अपने नाम पर एक अकादमी चला रहा है और उसे एक मैच हारने के लिये कह रहा है।’’
उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था में सुधार आवश्यक है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘रिपोर्ट खेदजनक स्थिति का खुलासा करती है। अदालत ने प्रतिवादी नंबर एक (टीटीएफआई) और प्रतिवादी नंबर तीन (राष्ट्रीय कोच) के काम करने के तरीके को लेकर समिति द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों पर गौर किया है।’’
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि यदि अदालत जरूरत पड़ने पर आगे की जांच के लिये स्वतंत्र समिति नियुक्त करती है तो सरकार को कोई आपत्ति नहीं है।
अदालत ने कहा कि अभी वह टीटीएफआई के संचालन के लिये केवल प्रशासक की नियुक्ति करेगी। अदालत ने इसके साथ ही आगे किसी भी तरह की जांच के संबंध में आदेश टाल दिया।
न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘इन लोगों को बाहर होना चाहिए। ये लोग यह नहीं समझते हैं कि खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, उन्हें कैसा सम्मान मिलना चाहिए। ये लोग (खिलाड़ी) देश की शान हैं। इन लोगों (टीटीएफआई अधिकारियों) को निलंबित किया जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान परिस्थितियों में अदालत के पास प्रशासक नियुक्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। प्रतिवादी नंबर एक की कार्यकारी समिति को अब कोई भी निर्णय लेने या प्रशासक के कामकाज में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। ’’
अदालत ने इसके साथ ही अपने आदेश में स्पष्ट किया कि अभी कई टूर्नामेंटों का आयोजन होना है इसलिए उम्मीद है कि वर्तमान प्रबंधन प्रशासक को हर तरह से मदद करेगा।
न्यायमूर्ति पल्ली ने कहा, ‘‘महासंघ से अदालत का विश्वास हिल गया है। उसे इस तरह से काम नहीं करना चाहिए।’’
अदालत ने याचिकाकर्ता के अलावा टीटीएफआई और अन्य पक्षों को तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने की स्वतंत्रता दी और मामले को आगे की सुनवाई के लिये 13 अप्रैल को सूचीबद्ध किया।
टीटीएफआई की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ वकील अनुपम लाल दास ने प्रशासक नियुक्त करने का विरोध किया।
पिछले साल नवंबर में अदालत ने मनिका बत्रा के राष्ट्रीय कोच पर लगाये गये मैच फिक्सिंग के प्रयासों के आरोपों की जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी।
इस खिलाड़ी ने अपनी याचिका में दावा किया था कि टीटीएफआई अपनी चयन प्रक्रिया गैर पारदर्शी तरीके से चला रहा है तथा उनके जैसे कुछ खिलाड़ियों को निशाना बना रहा है।
भाषा पंत नमिता
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